लखनऊ. पुराने लखनऊ की तंग गलियों में एक घर शमा परवीन का है जो घरेलू ज़िम्मेदारियों के साथ साथ क्रोशिया के धागों को अपने हाथ में लपेट कर उँगलियाँ चलती रहती हैं। इन धागो से वो क्रोशिया के बैग बनाती हैं,1996 में उनकी शादी हबीबुर्रहमान से हुई थी जो ज़री का काम करते थे, दो बच्चे हैं बेटी बड़ी है बेटा  छोटा है।  पूरे लखनऊ में क्रोशिया से बैग बनाने वाली शमा इकलौती कारीगर हैं।  माय नेशन हिंदी से बात करते हुए उन्होंने बताया की अरसे बाद क्रोशिया की सूई हाथ में पकड़ी है, दो बच्चे हैं उनके मुस्तकबिल का सवाल है। 
 
मशीन ने छीन  लिया हाथ के कारीगरों की कमाई 
शमा कहती हैं उनके शौहर हबीबुर्रहमान जरी का काम करते थे लेकिन मशीन के ज़माने में हाथ के कारीगरों की रोज़ी रोटी सबसे ज़्यादा कमज़ोर हुई है चाहे वो चिकनकारी का काम करने वाले कारीगर हों या ज़रदोज़ी के।  हबीबुर्रहमान भी इसी मशीन के सताए हुए हैं। हुनर होते हुए भी मेहनत की कमाई निकालना मुश्किल होता है, कोविड ने इन कारीगरों के पेट पर डबल लात मार दी लेकिन इसी मुश्किल वक़्त में शमा शौहर के लिए एक मज़बूत स्तम्भ की तरह उठ खड़ी हुईं और पुराने शौक को स्टार्टअप की शक्ल देना शुरू कर दिया।
 
शमा ने पहली बार में खरीदा 2000 का सामान 
बेटी के कहने पर शमा ने साल 2020 में क्रोशिया से बैग बनाना शुरू किया,वो कहती हैं इस दौर में सबसे बड़ी चीज़ ढूंढ़ने का काम है मज़बूती , हमारे वक़्त में सुई धागा सब मज़बूत होता था, अब तो चार बार चलाने पर टूट जाता है, पुराने लखनऊ के याहिया गंज, नखास चौक की बाजार से सबसे मज़बूत डोरी ढूंढा, ताकि खरीदार को शिकायत न रहे।  2000 रूपये का सामान खरीद कर लाईं और  दस बैग बनाए, शमा ने सोच लिया था की हम अपने बैग किसी एग्जीबिशन में लगाएंगे। घंटाघर के पास की एक एग्जीबिशन में शमा ने अपने दस बैग लगाए और दस के दस बिक गए। इस सेल से शमा का हौसला बढ़ गया। 
 
सोशल मीडिया पर बनाया पेज 
शमा के इस काम में उनकी बेटी तयबा साथ देती है, तयबा ने ' रोप डीड' नाम से इंस्टाग्राम पर पेज बनाया, इस पेज को तयबा ही मैनेज करती है, एक दिन इस पेज पर मुंबई की एक बड़ी  इन्फ्लुएंसेर की नज़र पड़ी उसे बैग्स पसंद आये और उसने फ़ौरन दो बैग आर्डर कर दिए, इस आर्डर के  साथ उसने दो रेफरेंस भी दे दिए जिससे शमा की बिक्री हो गयी, शमा कहती हैं 2000  के कच्चे सामान खरीदे थे, तीस हज़ार की कमाई हो गयी।  
 
अफोर्डेबल प्राइस में हैं बैग 
शमा के बैग की शुरआत 680  रुपये से है, वो कहती हैं लागत से ज़्यादा मेहनत लगती है, आँखों से पानी गिरने लगता है , उँगलियाँ एठने लगती हैं, उसी में घर का खाना बनाना, कपड़ा धोना वगैरह भी मैनेज करना पड़ता है। कम से कम प्राइज़ रखा है ताकि लोग खरीद सकें, हमारी यूएसपी हमारा काम ही है तो बेहतर काम से  इस उम्र में बिज़नेस के मैदान में उतरे हैं, अब तक सब ठीक ही रहा है तो उम्मीद है आगे भी ठीक ही रहेगा। 
 
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