थिएटर में पोस्टर चिपकाया, 90 रु. में की मजदूरी, फिर एक IDEA और चंदू भाई वीरानी ने बनाया करोड़ों का साम्राज्य

By Kavish Aziz  |  First Published Aug 17, 2023, 8:35 PM IST

ऐसे तमाम लोग हैं जिन्होंने जीवन में छोटी शुरुआत के साथ लंबी उड़ान भरी है। गरीबी  की जिंदगी गुज़ार कर करोड़ों का कारोबार किया है। ऐसे ही एक शख्स है चंदू भाई वीरानी जिनके पिता एक किसान थे, चंदू भाई का जीवन बहुत गरीबी में गुजरा लेकिन अपनी मेहनत से आज वह बालाजी वेफर्स कंपनी के मालिक है और उनकी कंपनी का राजस्व 4000 करोड रुपए है।  

गुजरात. चंदू भाई विरानी का जन्म गुजरात के जामनगर के कलावाड़ ताल्लुक में धुन धोराजी गांव  में हुआ था। उनके पिता पोपट भाई किसान थे। एक बार सूखा पड़ने से उनके पिताजी ने अपना खेत बेच दिया और खेत बिकने से मिले बीस हज़ार रुपये अपने बेटे चंदू भाई विरानी, मेघ जी भाई वीरानी और भिखूभाई विरानी को देकर नया बिजनेस शुरू करने को कहा। उस समय चंदू भाई की उम्र सिर्फ 15 साल थी, और अपने पिता की छोटी सी बचत के सहारे वह एक नई शुरुआत की उम्मीद ढूंढ रहे थे।

सिनेमा की कैंटीन में किया 90 रु. की नौकरी 
काम की तलाश में चंदू भाई जामनगर छोड़कर राजकोट आ गए। यहां अपने भाई के साथ मिलकर उन्होंने फॉर्म सप्लाई का कारोबार शुरू किया, जो पूरी तरह से नाकाम रहा। बिजनेस की नाकामी के बाद भी चंदू भाई को उम्मीद थी कि वह कामयाब होंगे। 1964 में रोजगार की तलाश में वो एक दिन एस्ट्रोन सिनेमा की कैंटीन चले गए। कैंटीन में चंदू भाई ने ₹90 वेतन की नौकरी कर लिया। इसके साथ साथ सिनेमा हॉल की फटी सीटों की मरम्मत से लेकर पोस्टर तक चिपकाने का काम किया। इस दौरान किराया ना चुका पाने के कारण उन्हें घर भी छोड़ना पड़ा। लेकिन कुछ समय के बाद चंदू भाई की मेहनत को देखकर साल 1976 में एस्ट्रोन सिनेमा की कैंटीन में 1000 रुपये हर महीने का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया।

 थिएटर में काम करते हुए आया वेफर्स का आइडिया 
थिएटर में काम करते हुए चंदू भाई ने देखा कि वहां वेफर्स की मांग बहुत है और उन्होंने वेफर इंडस्ट्री में हाथ आज़माने का फैसला किया। अपने किराए के घर में उन्होंने 10 हज़ार रुपये की पूंजी के साथ एक टेंपरेरी शेड बनाया और यहां चिप्स बनाना शुरू किया। उनके चिप्स को थिएटर और थिएटर के बाहर अच्छा रिस्पांस मिलने लगा। इस कामयाबी को देखकर चंदू भाई ने 1989 मे 50 लाख रुपये के बैंक लोन के साथ गुजरात की सबसे बड़ी बालाजी आलू वेफर की स्थापना की। शुरुआत में उन्हें साइकिल पर वेफर का बैग रखकर डोर टू डोर जाना पड़ता था। धीरे-धीरे लोगों को वेफर का जायका पसंद आने लगा। वेफर की डिमांड इतनी बढ़ गई कि पहले रिक्शा और उसके बाद ऑटो लेना पड़ा। एक, 10, 12 किलो की आलू छीलने की मशीन भी खरीदना पड़ा। 1992 में चंदू भाई ने अपने भाइयों के साथ मिलकर बालाजी वेफर्स प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना किया।

आज चंदू भाई की कम्पनी में पांच हज़ार लोग काम करते हैं 
कुछ समय बाद बालाजी वेफर ने नमकीन बनाना भी शुरू कर दिया, जिसे आज भी लोग बेइंतेहा पसंद करते हैं । साल 2011 में कंपनी  4 हजार हजार करोड़ रुपए की बन गई। आज बालाजी वेफर्स कंपनी में हजारों लोग नौकरी कर रहे हैं जिसमें 50% महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है।

 

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