एमपी के मंदसौर जिले के रहने वाले दीपक धनोतिया का बचपन मुश्किलों के बीच गुजरा। 12वीं तक नवोदय विद्यालय में पढ़ें। 12 हजार रुपये सैलरी पर जॉब करने वाले इस शख्स ने बिजनेस की दुनिया में झंडे गाड़ दिए। 9 साल में उनकी कम्पनी 'शॉपकिराना' का टर्नओवर एक हजार करोड़ रुपये है।
इंदौर। गांव में बिजली बमुश्किलन 2 घंटे ही आती थी। रात में पिता के साथ खेतों की सिंचाई करते थे। जमीन भी बहुत ज्यादा नहीं थी। इसीलिए पिता ने परिवार चलाने के लिए खेती-बारी के साथ गांव में किराने की दुकान खोली। सामान लाने के लिए दूर शहर तक जाना पड़ता था। मिडिल क्लास फैमिली की इन्हीं मुश्किलों के बीच पले बढ़ें दीपक धनोतिया ने इंजीनियरिंग की और जॉब करने लगे। उसी दरम्यान ई-कामर्स कंपनियां भारत में अपना कारोबार शुरु कर रही थीं तो दीपक ने सोचा कि अगर कस्टमर अपने जरुरत के सामान घर पर मंगवा सकता है तो दुकानदार क्यों नहीं? इसी सोच के साथ साल 2014 में 'शॉपकिराना' ऑनलाइन प्लेटफॉर्म शुरु कर दिया। छोटे दुकानदारों को एक ऐप की मदद से ग्रॉसरी सामान पहुंचाने लगे। अब, उनकी कंपनी से 300 शहरों के एक लाख से अधिक दुकानदार जुड़े हैं। कंपनी का टर्नओवर एक हजार करोड़ है।
खेती करना मुश्किल, 12वीं तक नवोदय विद्यालय में पढ़ें
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के सेमली रूपा गांव में दीपक धनोतिया का बचपन बीता। साल 2002-03 का समय था। जब खेती करना भी मुश्किल था। गांव में बिजली दो घंटे के लिए आ जाए तो बड़ी बात समझी जाती थी। रात में पिता के साथ खेत में सिंचाई करने जाना पड़ता था। पढ़ाई में तेज दीपक 5वीं तक गांव के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ें। गांव में गरीबी इस कदर थी कि स्कूल के 40 बच्चों में से सिर्फ एक दीपक ही बचे थे, क्योंकि अन्य लोगों के पास स्कूल की 20 रुपये फीस देने की की भी कैपिसिटी नहीं थी। बहरहाल, 12वीं तक नवोदय विद्यालय में में पढ़ें।
2009 में ग्रेजुएशन के बाद 12 हजार रुपये की नौकरी
गांव में स्कूल, बिजली, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं थीं। पढ़ाई के लिए एक प्राइवेट स्कूल तक 3-4 किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता था। पिता के किराने की दुकान ज्यादातर उधारी पर चलती थी। किसान जरुरत के सामान ले जाते थे और फसल कटने पर भुगतान करते थे। 12वीं के बाद जब साल 2004 में कुछ रिलेटिव के पास इंदौर आएं। तब उनके सामने सबसे बड़ी उलझन थी कि वह क्या करें और क्या न करें? इसका जवाब पाने के लिए एक साल तक इंदौर में भटके। तब उनके पास साइकिल भी नहीं थी। मोबाइल रिपेयरिंग काम सीखने की भी सोची। पर किस्मत ने साथ दिया और साल 2005 में इंजीनियरिंग में एडमिशन हो गया। 2009 में ग्रेजुएशन के बाद 12 हजार रुपये सैलरी पर पहली नौकरी ज्वाइन की।
2014 में शुरु किया 'शॉपकिराना' प्लेटफॉर्म
साल 2014 में भारत में ई-कामर्स कंपनियां अपना कारोबार फैला रहीं थी। चूंकि बचपन से ही दीपक छोटे किराने की दुकानदारों की समस्याएं देखकर बड़े हुए थे। इसलिए उन्हें दुकानदारों की समस्याओं को सॉल्व करने का उपाय सूझा। अपने साथ नौकरी कर रहे सुमित घोरावत और ऐड कंपनी चलाने वाले तेजस के साथ 'शॉपकिराना' प्लेटफॉर्म शुरु कर दिया। शुरुआती दिनों में आर्डर इकट्ठा करने के लिए इंदौर के छोटे दुकानदारों का दरवाजा खटखटाया। आर्डर मिलना शुरु हुआ तो उत्साह बढ़ा। वह टियर-2, 3, 4 सिटी छोटे दुकानदारों को चावल-दाल, बिस्किट समेत 200 से अधिक ग्रॉसरी प्रोडक्ट्स उपलब्ध कराते हैं।
300 सिटीज में बिजनेस, एक लाख से ज्यादा दुकानदार जुड़ें
मौजूदा समय में उनकी कंपनी से एक लाख से ज्यादा दुकानदार जुड़े हैं। यूपी, एमपी और गुजरात समेत अन्य राज्यों के 300 से ज्यादा शहरों में उनका बिजनेस फैल चुका है। लगभग 200 से अधिक कंपनियों के साथ सामान लेने के लिए कॉन्टैक्ट कर चुके हैं। पहले साल यानि 2014 में उनकी कंपनी का टर्नओवर एक करोड़ रुपये था, जो अब 9 साल बाद बढ़कर 1000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। उनके लिए एक हजार से ज्यादा लोग काम भी कर रहे हैं। किसाना किराना के नाम से खुद का ब्रांड भी लाए हैं। किसानों से सीधे अनाज परचेज करते हैं। उस अनाज को यदि कोई खरीदता है तो उसका एक छोटा सा हिस्सा किसानों को भी डोनेट करते हैं।