आज हम आपको एक ऐसे शख्स से परिचित करा रहे हैं, जिन्होंने सरकारी स्कूल की टाट-पट्टी पर शुरुआती पढ़ाई की। अपनी मेधा के दम पर जेएनयू तक पहुंचे और अब एक नामी गिरामी यूनिवर्सिटी के कुलपति हैं।
चित्रकूट। कहते हैं कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। छोटे शहरों-कस्बों-गावों से निकली प्रतिभाओं ने अपनी मेधा के दम पर कठिन से कठिन लक्ष्य हासिल किया है। ऐसे ही एक शख्स हैं, यूपी के मिर्जापुर के प्रेमघन मार्ग (तिवराने टोला) के रहने वाले डॉ. शिशिर कुमार पांडेय। शुरुआती पढ़ाई टाट-पट्टी वाले सरकारी स्कूल से हुई। गांव के पास स्थित सरकारी स्कूल से इंटरमीडिएट किया। अब वह जगदगुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय, चित्रकूट के कुलपति हैं।
पिता से प्रभावित, टीचर बनने की थी इच्छा
माई नेशन हिंदी से बात करते हुए डॉ. शिशिर कुमार पांडेय कहते हैं कि पिता डॉ भवदेव पांडेय की सादगी, धैर्य और निष्ठा से प्रभावित था। इसलिए इच्छा अध्यापक बनने की थी। साल 1985 में पहला जेआरएफ पास किया। उस समय मिजोरम के आईजोल में आल इंडिया रेडियो में एक प्रोग्राम देखता था। फिर जेएनयू में एंट्रेस दिया तो नतीजे पक्ष मे रहें और फिर वहीं से साल 1989 में हिंदी से एमफिल और 1995 में पीएचडी किया।
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में बने असिस्टेंट प्रोफेसर
एक समय ऐसा भी आया। जब उन्होंने पढ़ाई के दौरान नौकरी की तलाश की। उन्हें जॉब के आफर भी मिले। पर उसमे लीक से हटकर लाभ पहुंचाने की पेशकश की गई थी। उन्होंने ऐसी नौकरी करने से साफ इंकार कर दिया और अपनी प्रतिभा के दम पर जॉब के लिए प्रयास करते रहें। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और साल भर के अंदर ही केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिल गई तो जिंदगी ने स्पीड पकड़ ली।
पिता डॉ भवदेव पांडेय भी थे अध्यापक
डॉ. शिशिर कुमार पांडेय ने एआईएच डीडीयू, गोरखपुर से हिंदी-संस्कृत विषय में बीए और डीडीयू से ही संस्कृत में एमए किया। डा. पांडेय अब तक लखनऊ में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के हिंदी प्रोफेसर एवं आधुनिक भाषा संकाय प्रमुख के पद पर कार्यरत थे। देश विदेश में उनके नाम ढेरों उपलब्धियां दर्ज हैं। उनके पिता डॉ भवदेव पांडेय भी अध्यापक थे। उन्हें हिंदी गौरव सम्मान से भी नवाजा गया था।
रूस की इन 6 यूनिवर्सिटीज में रहें विजिटिंग प्रोफेसर
प्रोफेसर शिशिर कुमार पाण्डेय ने रूस के मॉस्को में 6 विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में काम किया। उनमें मॉस्को स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशनशिप (एमजीआईएमओ यूनिवर्सिटी), पत्रकारिता संकाय, मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी, इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन अफ्रीकन स्टडीज “द लोमोनोसोव मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी मॉस्को”, रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी फॉर ह्यूमेनिटीज़, प्रैक्टिकल ओरिएंटल मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी और बोर्डिंग स्कूल नंबर 19 शामिल हैं।
इंडियन एंबेसी में भी कार्यरत रहे
भारतीय संस्कृति वाले एशियाई देशों की भावनाओं से भी भली-भांति परिचित प्रोफेसर शिशिर कुमार पांंडेय विदेश में भी कार्यरत रहे। साल 2008 से 2010 तक विदेश मंत्रालय की प्रतिनियुक्ति पर रूस में पोस्टिंग मिली। उस दौरान मास्को स्थित भारतीय दूतावास के सांस्कृतिक केंद्र में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप काम किया। एक वर्ष तक 'रूस में भारतीय वर्ष के उत्सव' की तैयारी के लिए बनाई गई विभिन्न समितियों के सदस्य के रूप में काम किया। भारतीय दूतावास के प्रतिनिधि के रूप में रूस के विभिन्न हिस्सों में भारतीय संस्कृति से संबंधित तमाम कार्यक्रमों का उद्घाटन किया। भारतीय दूतावास में ICCR छात्रवृत्ति से संबंधित मामलों को भी निपटाया।