कभी 2-4 रुपये के लिए भटकीं, अब सालाना ₹150000 इनकम, घर से शुरू किया था ये काम

By Rajkumar UpadhyayaFirst Published Jun 12, 2024, 1:29 PM IST
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कभी दो-चार रुपये के लिए भटकती थीं। अब पूरे परिवार का पेट पाल रही हैं। हम बात कर रहे हैं झारखंड की आदिवासी महिला दीपाली महतो की। ऑरनामेंटल फिश फार्मिंग ने उनकी किस्मत बदल दी। 1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष कमा रही हैं।

नयी दिल्ली। कभी दो-चार रुपये के लिए भटकती थीं। अब पूरे परिवार का पेट पाल रही हैं। हम बात कर रहे हैं झारखंड की आदिवासी महिला दीपाली महतो की। ऑरनामेंटल फिश फार्मिंग ने उनकी किस्मत बदल दी। 1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष कमा रही हैं। दरअसल, ऑरनामेंटल फिश फार्मिंग को हिंदी में सजावटी मछलियों का पालन कहते हैं। इन मछलियों को लोग अपने घरों और दफ्तरों के एक्वेरियम में सजावट के तौर पर रखते हैं। इन मछलियों का रखना शुभ माना जाता है।

मछली पालन की ट्रेनिंग, 2018 में शुरू किया काम

जमशेदपुर के गोलमुरी की रहने वाली आदिवासी महिला दीपाली महतो आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रही थीं। जब उन्हें पता चला कि वह मछली पालन कर परिवार चला सकती हैं तो झारखंड के डिपार्टमेंट ऑफ फिशरीज सेंटर संपर्क किया। मछली पालन की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी। जहां उन्हें ऑरनामेंटल फिश फार्मिंग के बारे में अच्छी जानकारी मिली। साल 2018 में अपना काम शुरू कर दिया।

बिजनेस की परेशानी का ऐसे निकाला समाधान

शुरूआत दिनों में बिजनेस शुरू करने में परेशानी का सामना करना पड़ा। साल 2020 में कोरोना महामारी के समय काफी दिक्कते हुईं। पर उन्होंने उसका भी तोड़ निकाला। साल 2022 में आदिवासी उप-योजना के तहत उन्हें सहायता मिली। उन्हें एफआरपी सजावटी टैंक, बीज, चारा, एक एरेटर, दवा और अन्य जरूरी चीजें मुहैया कराई गईं। ऑनसाइट डेमो और ट्रेनिंग भी ली। 

450 वर्ग फीट का सजावटी मछली फार्म

पश्चिम बंगाल के हावड़ा स्थित सजावटी मछली गांवों का दौरा कर जानकारी हासिल की। एक्वेरियम निर्माण सहित मछलियों के पालन और प्रजनन से जुड़ी जानकारियां मिलीं। सबसे खास मछलियों के रख रखाव और उनकी जरूरतों का ध्यान रखना था। जिससे मछलियों को बचाकर रखा जा सके। फिर उन्होंने घर के पिछले हिस्से में 450 वर्ग फीट का सजावटी मछली फार्म बनाया। 

सालाना 60-70 हजार रुपये निवेश

मछली फॉर्म में 80 टैंक और 50 एक्वेरियम लगाएं। सालाना 60-70 हजार रुपये निवेश किया। अब 1.5 लाख रुपये सालाना इनकम हो रही है। इस काम ने आदिवासी महिला दीपाली महतो का आत्मनिर्भर बनाया, जो पहले चंद रुपयों की मोहताज थी। आज वह पूरे परिवार का खर्च चलाती हैं। महतो की कहानी लोगों के लिए प्रेरणादायक है। 

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