कभी ट्यूशन फीस तक के पैसे नहीं, फिर US में नौकरी, कैसे बने 600 करोड़ की कम्पनी के मालिक? 

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Apr 1, 2024, 3:37 PM IST

कभी ट्यूशन फीस देने तक के पैसे नहीं थे। एनआईटी से बीटेक किया। साल 2008 में न्यूयॉर्क गए। 2019 तक नौकरी की। भारत लौटें, घर बेचकर पूंजी जुटाई और वेस्ट मटेरियल से कटोरी, पत्तल बनाने का काम शुरू किया। अब 600 करोड़ की कंपनी है। हम बात कर रहे हैं इकोसोल फाउंडर राहुल सिंह की।

छत्तीसगढ़ के भिलाई के एक मीडिल क्लास फैमिली में जन्मे राहुल सिंह की शुरूआती पढ़ाई सरकारी स्कूल से हुई। इंजीनियरिंग परीक्षाओं की तैयारी में जुट गए। तब उनके पास ट्यूशन फीस के पैसे तक नहीं थे। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सेल्फ स्टडी कर एनआईटी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी) में दाखिला पाने में कामयाब रहें। जमशेदपुर से एमबीए की डिग्री ली और मॉं-पिता के सपनों को पूरा करने के लिए साल 2008 में नौकरी करने न्यूयॉर्क चले गए। साल 2019 तक अलग-अलग कम्पनियों में नौकरी की। फिर भारत लौटें और पेड़ के पत्तों से पत्तल और प्लेट बनाने का काम शुरू कर दिया। कम्पनी का नाम रखा इकोसोल होम (EcoSoul Home)। अब 600 करोड़ रुपये का कारोबार है।

इस वजह से वापस आए भारत

साल 2016-17 की एक घटना की वजह से उन्हें भारत वापस लौटने के लिए सोचना पड़ा। उस समय राहुल अमेरिका में एक कम्पनी के ग्लोबल हेड थे। उनका भाई भी विदेश में ही रहता था। उधर, मॉं और पिता भिलाई में रहते थे। एक दिन पिता को दिल का दौरा पड़ा। तब दोनों भाई विदेश में थे। पैरेंट्स की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। यह देखकर छोटा भाई भारत वापस आया और कुछ महीनों बाद वह भी देश लौटने का प्लान करने लगे। उनके सामने दिक्कत यह थी कि वह न्यूयॉर्क में अपना घर परचेज कर चुके थे। 

वेस्ट मटेरियल को 'गोल्ड' में कनवर्ट करने का आया ख्याल

अब राहुल सिंह के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि वह भारत लौटकर क्या करेंगे? फिर उन्हें वेस्ट मटेरियल से प्रोडक्ट्स बनाने का ख्याल आया, क्योंकि वह अपने गांव में अक्सर डिस्पोजेबल आइटम्स देखते थे। वेस्ट को क्वालिटी प्रोडक्ट बनाकर एक्सपोर्ट करने का विचार आया। फिर उन्होंने काम शुरू करने के लिए शुरूआती पूंजी अपना घर बेचकर जुटाई और EcoSoul की शुरूआत कर दी। राहुल ने सबसे पहले प्रोडक्ट बनाकर एक्सपोर्ट करना शुरू किया। पर वह समय कोविड महामारी का था। जब लॉकडाउन लगा था। उसकी वजह से रॉ मटेरियल की कॉस्ट बढ़ गई। उसकी वजह से भारी नुकसान उठाना पड़ा। तीन महीने जमीन पर सोने पड़ें।

अब 10 से ज्यादा देशों में निर्यात

बहरहाल, समय के साथ राहुल सिंह इस झटके से भी उबरे। शुरूआती दिनों में इको-फ्रेंडली पत्तल-कटोरी बनाने वाले कारीगर और मैन्यूफैक्चरर से संपर्क साधा। पर तब हालात ऐसे थे कि इस काम से जुड़े ज्यादातर लोग उन्हें अपने पास बिठाते भी नहीं थे। हालांकि कुछ लोगों ने उनकी बात समझी और उनका साथ दिया। वर्तमान में वह 10 से ज्यादा देशों में अपना उत्पाद निर्यात कर रहे हैं। 150 से ज्यादा निर्माता उनसे कनेक्ट हैं। उनकी कम्पनी में करीबन 100 लोग काम कर रहे हैं। जिनमें ज्यादातर महिलाए शामिल हैं। बांस के पल्प, पत्तों, पाम लीफ आदि से 43 से ज्यादा प्रोडक्ट्स बनाते हैं। ऑनलााइन भी अपना प्रोडक्ट बेचते हैं। 600 करोड़ रुपये का व्यावसायिक साम्राज्य है।

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