गुरुग्राम के 9 वर्षीय अवनि दुआ और कृषिव गर्ग ने अल्माटी, कजाकिस्तान में आयोजित विश्व टेबल टेनिस (डब्ल्यूटीटी) यूथ कंटेंडर टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन कर सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा है। 25-28 जुलाई के बीच हुए टूर्नामेंट में अवनि ने स्वर्ण पदक जीता है, जबकि कृषिव क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे और प्रतियोगिता में पांचवें स्थान पर रहें।
गुरुग्राम। गुरुग्राम के 9 वर्षीय अवनि दुआ और कृषिव गर्ग ने अल्माटी, कजाकिस्तान में आयोजित विश्व टेबल टेनिस (डब्ल्यूटीटी) यूथ कंटेंडर टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन कर सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा है। 25-28 जुलाई के बीच हुए टूर्नामेंट में अवनि ने स्वर्ण पदक जीता है, जबकि कृषिव क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे और प्रतियोगिता में पांचवें स्थान पर रहें। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई देने लगते हैं। दोनों युवा खिलाड़ियों की प्रतिभा भविष्य में नया इतिहास रचने को तैयार है।
पीपीटीए के लिए सपना सच होने जैसा
टूर्नामेंट में अवनि और कृषिव का परफार्मेंस कोच कुणाल कुमार और प्रोग्रेसिव टेबल टेनिस अकादमी (पीटीटीए) के लिए एक सपने के सच होने की तरह है। अकादमी ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में कहा है कि अवनि दुआ ने अंडर-11 लड़कियों के वर्ग में गोल्ड मेडल जीता और कृषिव गर्ग अंडर-11 लड़कों के क्वार्टर फाइनल में पहुंचे। यह टेबल टेनिस खेल और देश के लिए गौरवपूर्ण और ऐतिहासिक क्षण है।
अवनि अंडर-11 गर्ल्स वर्ग में भारत में 10वें नंबर पर
एशियानेट न्यूज़एबल के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, अवनि और कृषिव के कोच कुणाल कुमार ने बताया कि अवनि वर्तमान में अंडर-11 लड़कियों की श्रेणी में भारत में 10वें नंबर पर है और हरियाणा में पहले पायदान पर है, जबकि अंडर-13 लड़कियों की श्रेणी में हरियाणा की दूसरे नंबर की खिलाड़ी हैं।
कृषिव अंडर-11 ब्वायज वर्ग में भारत में नंबर 3 पर
कुणाल कहते हैं कि कृषिव अंडर-11 वर्ग में भारत में नंबर 3 और हरियाणा में पहले पायदान पर है। कजाकिस्तान में आयोजित टूर्नामेंट में उनका प्रदर्शन शानदार रहा। वह मैच में 10-4 के महत्वपूर्ण अंतर से आगे थे। पर टूर्नामेंट के दबाव की वजह से उनका प्रदर्शन प्रभावित हुआ, जिससे क्वार्टर फाइनल में हार का सामना करना पड़ा। फिर भी, उनकी प्रतिभा बताती है कि भविष्य में वह खेल में अच्छा करेंगे।
सख्त ट्रेनिंग शिड्यूल और फिर स्कूल की पढ़ाई
कोच कुणाल कहते हैं कि अवनि और कृषिव कड़ी मेहनत करते हैं। स्कूल से भी उन्हें सपोर्ट मिलता है। पैरेंट्स का पूरा सहयोग मिलता है। अकादमी में हर दिन कड़ी ट्रेनिंग होती है। सुबह 6-7 बजे तक टेबल टेनिस की दोनों उभरती प्रतिभाओं की फिटनेस ट्रेनिंग हेाती है। फिर 7-9 बजे उनकी ट्रेनिंग होती है। इसके बाद वह स्कूल जाते हैं। शाम 5 बजे तक दोनों युवा खिलाड़ी अकादमी लौटते हैं, और फिर रात 8 बजे तक उनकी ट्रेनिंग चलती है। उसके बाद घर जाकर अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं। गुरुवार को उनका आफ रहता है। हर रविवार को लीग मैच होते हैं। हम उन्हें मोटिवेट करते हैं और भविष्य में होने वाले टूर्नामेंट के लिए तैयार करते हैं।
प्रज्ञानम स्कूल में प्रवेश फ्री
दरअसल, प्रज्ञानम स्कूल, गुरुग्राम के साथ अकादमी का एक समझौता है। जिसके मुताबिक, देश के टॉप 16 और अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेताओं और प्रतिभागियों को स्कूल में फ्री में प्रवेश दिया जाता है। किताबें और यूनिफार्म सहित 100 फीसदी स्कूल फीस छात्रवृत्ति के तौर पर दी जाती है। इसके अलावा अतिरिक्त सहायता दी जाती है।
खेल और एजूकेशन के बीच बैलेंस बनाना चुनौती
कुणाल कहते हैं कि मौजूदा समय में ज्यादातर लोगों की रूचि क्रिकेट में है। टेबल टेनिस खिलाड़ियों को चैलेंज का सामना करना पड़ता है। अकादमी में 150 से ज्यादा बच्चे हैं। हम टैलेंटेड बच्चों की पहचान कर उन्हें जरुरी संसाधन व सुविधाएं मुहैया कराने की कोशिश करते हैं। हालांकि नये खिलाड़ियों के और उनके पैरेंट्स के लिए खेल और एजूकेशन के बीच बैलेंस बनाना चुनौती बना रहता है। हालांकि मौजूदा समय में टेबल टेनिस के प्रति लोगों की धारणा बदली है। केंद्र सरकार के खेलो इंडिया और SAI के TOPS (टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम) प्रोग्राम से कई भारतीय खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी छाप छोड़ना शुरू कर दिया है।
अब टेबल टेनिस टॉप 10 खेलों में शामिल
कोच कुणाल कहते हैं कि हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा और खेल के बीच बैलेंस बनाना है। पैरेंट्स के लिए मुख्य तौर पर चिंता का विषय यही होता है कि उनका बच्चा भविष्य में क्या करेगा। खेल ही एकमात्र ऐसी चीज है, जहां आप दूसरे देश में जाकर गर्व से तिरंगे लहरा सकते हैं। वह टेबल टेनिस खिलाड़ी मनिका बत्रा का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतने के बाद तस्वीर बदल गई है। अब टेबल टेनिस देश में टॉप 10 खेलों में शामिल है। हाल ही में आईपीएल की तरह अल्टीमेट टेबल टेनिस (यूटीटी) खेला गया। कुणाल कहते हैं कि जीवन में आप किसी चीज में सफल होंगे। आप इसका पहले से अनुमान नहीं लगा सकते हैं। यह भी जरूरी नहीं है कि आप सिविल सर्विस एग्जाम की कड़ी तैयारी करें और सफल हो जाएं।
भविष्य में नौकरी सुरक्षित करना चाहते हैं तो खेल आपके लिए नहीं
टेबल टेनिस कोच कुणाल ने कहा कि यदि आप भविष्य के लिए नौकरी सुरक्षित करना चाहते हैं और पारंपरिक तरीके से जीवन जीना चाहते हैं, तो खेल में आपके लिए कोई जगह नहीं है। परंपरा से परे जाने वाले खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचते हैं।
23 साल की मेहनत के बाद जीता गोल्ड
एक बार फिर वह टेबल टेनिस खिलाड़ी मनिका बत्रा का उदाहरण देते हुए कुणाल कहते हैं कि उन्होंने 3 साल की उम्र में शुरुआत की और 26 साल की उम्र में पदक जीता। उनकी सफलता के पीछे 23 साल की कड़ी मेहनत है। ट्रेनिंग सबसे ज्यादा जरूरी है, हालांकि संसाधनों का अभाव है। पैरेंट्स के पास संसाधन सीमित हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में जब एक युवा खिलाड़ी स्टार बन जाता है, तब उसे स्पांसर मिलते हैं। मुख्य समस्या स्पांसर की सामने आती है। यदि बच्चों को स्पांसर मिलेंगे तो उन्हें अच्छा भोजन मिलेगा। उनकी फिटनेस अच्छी होगी और ट्रेनिंग में भी मदद मिलेगी।
इंटरनेशनल टूर्नामेंट में नहीं खेलने से नुकसान
कुणाल ने कहा कि बैंकॉक, जॉर्डन, दुबई आदि देशों में होने वाले टूर्नामेंट में लगभग 1 से 1.5 लाख रुपये खर्च होता है। कोच का अतिरिक्त खर्च भी होता है। खिलाड़ियों के पैरेंट्स इतने पैसे कहां से जुटाएं। अब अगर बच्चे इन टूर्नामेंटों में नहीं खेलते हैं तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन से चूक जाते हैं।
2028 और 2032 ओलंपिक में शामिल होने चाहते हैं दोनों सितारे
कुणाल कहते हैं कि दोनों उभरते युवा टेबल टेनिस खिलाड़ी भविष्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करने का सपना संजोए हैं। लॉस एंजिल्स में ओलंपिक 2028 और ब्रिस्बेन में 2032 होने वाले ओलंपिक में अवनी और कृषिव शामिल होना चाहते हैं। यह इतना आसान नहीं है। आगे का रास्ता बहुत ही चुनौतीपूर्ण है। पर खेल के प्रति उनका समर्पण और जुनून ऐसा है कि वह अपने सपनों को साकार करने से नहीं चूकेंगे।
हम चाहते हैं कि बच्चे ओलंपिक में खेलें
पीटीटीए कोच कुणाल कहते हैं कि लॉस एंजिल्स में साल 2028 में ओलंपिक है। हम चाहते हैं कि हमारे कुछ बच्चे इसमें जाएं और देश को गौरवान्वित करें। चीन, फ्रांस, जापान के खिलाड़ी विश्व के टॉप 50 सूची में हैं तो भारतीय खिलाड़ी क्यों नहीं हो सकते। मैं चाहता हूं कि अवनि और कृषिव 2028 और 2032 ओलंपिक में खेलें और भारत के लिए पदक जीतें। दोनों प्रतिभाएं इंटरनेशनल लेबल पर देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए तैयार हैं और देश की अन्य प्रतिभाओं के लिए प्रेरणा हैं।