हॉकी टीम के कप्तान संदीप सिंह 2006 में एक हादसे के बाद चलने-फिरने से भी महरूम हो गए थे। बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हर मुश्किल को पीछे छोड़ते हुए 2008 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी में वापसी की। दृढ़ इच्छाशक्ति की इसी कहानी को पर्दे पर ला रहे हैं अभिनेता दिलजीत दोसांज..
भारतीय सिनेमा बदल रहा है। अब सिल्वर स्क्रीन पर काल्पनिक रोमांस ही सफलता का फार्मूला नहीं रहा। रियलिस्टिक सिनेमा भी दर्शकों को थियेटर तक खींच रहा है। समय के साथ भुला दिए गए नायकों की जिंदगी पर बनी कुछ फिल्मों की सफलता ने इस ट्रेंड को रफ्तार दी है। ‘चक दे इंडिया’, ‘पान सिंह तोमर’ और ‘भाग मिल्खा भाग’ जैसी कामयाब फिल्में इसका उदाहरण हैं। यही नहीं चैंपियन महिला मुक्केबाज मेरीकॉम की जिंदगी पर बनी फिल्म को भी दर्शकों ने काफी पसंद किया। भारत के पूर्व क्रिकेट कप्तान एमएसधोनी की बॉयोपिक भी कामयाब फिल्मों की फेहरिस्त में शामिल है। इस कड़ी को आगे बढ़ाती है पूर्व हॉकी कप्तान संदीप सिंह की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘सूरमा’। एक खिलाड़ी की जिंदगी के उतार-चढ़ाव पर आधारित यह फिल्म 13 जुलाई को रिलीज हो रही है।
बात 2006 की है। संदीप अपने करियर के सबसे चमकदार दौर में थे, लेकिन एक हादसे के बाद वह चलने-फिरने तक से महरूम हो गए। उनसे पहले, ऐसे ही एक हादसे ने स्टार ड्रैग फ्लिकर जुगराज सिंह का करियर खत्म कर दिया था। संदीप के करियर को लेकर भी ऐसी ही अटकलें लगने लगीं थी। बावजूद इसके उनका हौसला नहीं डिगा। हर मुश्किल को पीछे छोड़ते हुए इस चैंपियन खिलाड़ी ने 2008 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी में वापसी की। संदीप की कप्तानी में ही भारत ने 2009 में सुल्तान अजलान शाह कप जीता और 2012 ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई किया।
एक खिलाड़ी के इसी मजबूत इरादे को पर्दे पर लेकर आ रहे हैं अभिनेता दिलजीत दोसांज। पंजाब में नशे के बैकड्रॉप पर बनी फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ में अपने दमदार अभिनय के लिए प्रशंसा बटोरने वाले दिलजीत ने एक खिलाड़ी की अदम्य इच्छाशक्ति को पर्दे पर जिया है। जिंदगी में आए दर्दनाक मोड़ को पीछे छोड़ सफलता की कहानी लिखने वाले संदीप ने ‘माई नेशन’ से अपने जज्बात साझा किए।
संदीप के मुताबिक, ‘सूरमा’ में दूसरी फिल्मों की तरह पर्दे पर छा जाने वाले गाने नहीं हैं, पर ये फिल्म उनकी जिंदगी की कहानी है। दिलजीत ने उनके किरदार को पर्दे पर भरपूर जिया है। रियल लाइफ के किरदार को पर्दे पर जीना हमेशा मुश्किल होता है।
जिंदगी के सबसे कठिन दौर के बारे में पूछने पर संदीप कहते हैं, ‘हादसे के बाद दो साल तक चल फिर भी न पाने से हिम्मत टूट जाती है लेकिन परिवार और चाहने वाले मेरे साथ मजबूती से खड़े रहे। उन्हें भरोसा था कि मैं इस दौर से उबर जाऊंगा। हालांकि, वापसी आसान नहीं होती। मैंने भी इरादा कर लिया था कि जब मैदान पर लौटूंगा तो किसी को उंगली उठाने का मौका नहीं दूंगा। कोई यह नहीं कह सकेगा कि संदीप अनफिट है, कमजोर हो गया है। इसके लिए मैंने बहुत मेहनत की। मैंने उस दौर से ज्यादा ट्रेनिंग की, जब मैं फिट था। ये सब फिर मैदान पर लौटने और खुद को साबित करने के लिए था।’
भले ही यह फिल्म संदीप की मैदान पर वापसी की कहानी कहती है लेकिन भारत-पाकिस्तान मुकाबलों के जिक्र होना लाजिमी है। संदीप इसका जिक्र होने पर मुस्कुराने लगते हैं। पाकिस्तान के खिलाफ उनका रिकॉर्ड शानदार रहा है। अपने कोच हरिंदर सिंह की बात का जिक्र करते हुए संदीप ने कहा, उनका मोटा था, मुकाबला भारत-पाकिस्तान का नहीं बल्कि संदीप बनाम पाकिस्तान है।
संदीप सिंह ने इस फिल्म को टैक्स फ्री करने की मांग की है। उन्होंने कहा, इससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देख सकेंगे। उन्होंने इसके लिए हरियाणा, पंजाब सरकारों, केंद्र सरकार और खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर से भी मदद का अनुरोध किया है। संदीप के अनुसार, क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों पर बनी फिल्मों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इससे युवाओं में इन खेलों के लिए भी रूचि पैदा होगी। हॉकी की चमकदार विरासत को भी आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
पूर्व हॉकी खिलाड़ी मीर रंजन नेगी की जिंदगी पर बनी शाहरुख खान अभिनीत सुपरहिट फिल्म ‘चकदे इंडिया’ से तुलना और बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी की होड़ को संदीप बेमानी बताते हैं। वह कहते हैं, ये फिल्म एक खिलाड़ी की जिदंगी से रूबरू करवाती है। यह देश के लिए खेलने वाले एक खिलाड़ी के समर्पण, परिवार के त्याग की कहानी कहती है।