विवादों में अटक गया था यूपीए का राफेल सौदा, नहीं थी हस्ताक्षर की उम्मीदः वायुसेना

By Ajit K Dubey  |  First Published Sep 12, 2018, 5:20 PM IST

वायुसेना के एक उच्च अधिकारी ने कहा, 2008 का राफेल विमान सौदा  दसॉल्ट एविएशन और उसकी प्रस्तावित भारतीय साझेदार हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बीच 'हल न हो सकने वाले मतभेदों' के चलते अटक गया था।

वायुसेना के एक शीर्ष अधिकारी ने बुधवार को कांग्रेस के इस दावे की हवा निकाल दी कि उनकी पार्टी फ्रांस के साथ 126 राफेल विमानों की खरीद का सौदा करने वाली थी। उक्त अधिकारी ने कहा कि यूपीए के समय चल रही वार्ता राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट एविएशन और उसकी प्रस्तावित भारतीय साझेदार हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच 'हल न हो सकने वाले मतभेदों' के चलते अटक गई थी। 

वायुसेना की मध्य कमान के कमांडर एयर मार्शल एसबीपी सिन्हा ने यहां कहा, 'मध्यम दूरी के बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान यानी एमएमआरसीए का मसला दसॉल्ट एविएशन और एचएएल के बीच हल न किए जाने वाले मतभेदों के चलते अटक गया था। इसमें एचएएल में राफेल विमान के लिए उत्पादन सुविधाओं के निर्माण की खातिर नॉर-रिकरिंग कॉस्ट यानी उच्च आवर्ती लागत का मसला शामिल था। साथ ही इस बात पर भी कोई राय नहीं बन सकी थी कि दोनों प्रस्तावित साझेदारों में से कौन भारत में बनने वाले 108 राफेल विमानों की जिम्मेदारी लेगा। जून 2015 में इसके लिए भेजे गए अनुरोध प्रस्ताव को वापस ले लिया गया।'

वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारी ने साफतौर पर कहा कि विक्रेता द्वारा दिए जाने वाले 18 तैयार विमानों की कीमत की जानकारी थी लेकिन रक्षा मंत्रालय को पूरी डील की कीमत नहीं पता थी। यह मामला प्रोजेक्ट शर्तों और भारत में बनने वाले 108 विमानों की लागत से संबंधित विवाद में फंस गया। 

राहुल गांधी ने हाल ही में दावा किया था कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने 520 करोड़ रुपये प्रति राफेल विमान की दर से फ्रांस के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। उनका कहना है कि मोदी सरकार ने इस विमान के लिए चुकाई जा रही कीमत को बढ़ा दिया ताकि निजी विक्रेताओं को इसका लाभ पहुंचाया जा सके। 

वायुसेना के अधिकारियों द्वारा रखे गए तथ्यों ने यूपीए सरकार के इस सौदे पर हस्ताक्षर किए जाने और तुलनात्मक रूप से कम दाम में विमान खरीदने के दावों की हवा निकाल दी है। भारत अब दोनों देशों की सरकारों के बीच हुए समझौते के तहत राफेल विमानों को खरीद रहा है। 

कांग्रेस का आरोप है कि उसके समय में एक राफेल विमान को 520 करोड़ रुपये में खरीदा जा रहा था, जबकि नरेंद्र मोदी सरकार इसे 1646 करोड़ रुपये में खरीद रही है। इस सौदे में बड़ा घोटाला हुआ है। 

वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि एयर मार्शल सिन्हा द्वारा किए गए खुलासों के बाद साफ हो गया गया कि कांग्रेस का दावा सिर्फ विवाद खड़ा करने से अधिक कुछ नहीं है। 

वायुसेना पुरजोर ढंग से राफेल सौदे का बचाव कर रही है, क्योंकि इसे लेकर चल रहे विवाद से इन विमानों की भविष्य में होने वाली खरीद प्रभावित हो सकती है। उपवायुसेना प्रमुख एयर मार्शल रघुनाथ नांबियार पहले ही कह चुके हैं, 'वायुसेना 126 राफेल रखना पसंद करेगी।' उनसे पूछा गया था कि क्या वे अपने बेड़े में राफेल के दो और स्क्वॉड्रन रखना चाहेंगे। 

एयरमार्शल सिन्हा ने मोदी सरकार द्वारा फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए किए गए करार की भी प्रशंसा की है। उन्होंने कहा कि यह पहली बार है जब विमानों के रखरखाव को परफॉरमेंस आधारित लॉजिस्टिक (पीबीएल) समझौते के तहत कवर किया गया है। अन्यथा बाद में इसे लेकर दिक्कत होती है। 

शुरुआती दौर में एयर मार्शल सिन्हा उस अनुबंध वार्ता समिति के अध्यक्ष थे, जो 36 राफेल विमानों की खरीद पर काम कर रही थी। बाद में एयर मार्शल आरकेएस भदौरिया ने उनकी जगह ली। इस समय, उपवायुसेना प्रमुख एयर मार्शल आर नांबियार वायुसेना के लिए होने वाली खरीद के मामलों को देख रहे हैं। 

हाल ही में नांबियार ने साफ किया था कि मोदी सरकार द्वारा किया गया राफेल सौदा कांग्रेस के समय फ्रांस से चल रही वार्ता से 40 फीसदी सस्ता है। कांग्रेस द्वारा जो दावे किए जा रहे हैं, वो तथ्यों से मेल नहीं खाते। 
 

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