अस्त्र मिसाइल को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने मुख्य लड़ाकू विमानों जैसे सुखोई-30 और एलसीए तेजस के लिए विकसित किया है। यह दुश्मन देशों के विमानों को 60-70 किलोमीटर की दूरी से मार गिराने के लिए हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है।
स्वदेशी हथियारों के इस्तेमाल को आगे बढ़ाने के प्रयास में रक्षा मंत्रालय ने नौसेना को भी अस्त्र मिसाइल प्रणाली से लैस करने का फैसला किया है। अस्त्र हवा से हवा में मार करने वाली स्वदेशी विजुअल रेंज मिसाइल प्रणाली है। नौसेना को अपने युद्धपोतों को दुश्मनों के हथियारों से बचाने के लिए कम दूरी की मिसाइल प्रणाली की दरकार है।
अस्त्र मिसाइल को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने मुख्य लड़ाकू विमानों जैसे सुखोई-30 और एलसीए तेजस के लिए विकसित किया है। यह दुश्मन देशों के विमानों को 60-70 किलोमीटर की दूरी से मार गिराने के लिए हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है।
सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया, 'रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता वाली रक्षा खरीद परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव के मुताबिक, नौसेना को अपने युद्धपोतों की सुरक्षा के लिए 14 सीधे लांच की जाने वाली जमीन से हवा में मार करने वाली रक्षा प्रणाली उपलब्ध कराई जाएंगी। इनमें से चार को वैश्विक टेंडर के आधार पर खरीदा जाएगा, शेष को डीआरडीओ द्वारा विकसित किया जाएगा।'
सूत्रों के अनुसार, 'नौसेना 10 स्वदेशी एसआर-एसएएम खरीदने पर विचार कर रही है। इन जरूरतों के मुताबिक ही डीआरडीओ अस्त्र मिसाइल को विकसित कर रहा है। नौसेना ऐसी मिसाइल प्रणाली चाहती है जो दुश्मन देश की मिसाइल अथवा विमान को 15 किलोमीटर की दूरी पर इंटरसेप्ट कर सके। अस्त्र इस भूमिका में बिल्कुल सटीक बैठती है।'
नौसेना अपने युद्धपोतों को हवाई रक्षा प्रणाली उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रही है। वह अभी इस्राइल से लंबी दूरी की जमीन से हवा में मार करने वाली प्रणाली (एलआर-एमएएम) खरीद रही है। हालांकि उसे कम दूरी की हथियार प्रणाली की भी आवश्यकता है।
इससे पहले, मिसाइल की जरूरत को फ्रांस के साथ संयुक्त उपक्रम के जरिये पूरा किया जा रहा था। लेकिन सेना और वायुसेना के कदम खींच लेने के बाद नेवी के लिए इस परियोजना की लागत काफी बढ़ गई।
अस्त्र मिसाइल कार्यक्रम वायुसेना के लिए काफी सफल रहा है। यह उसकी सभी जरूरतों को पूरा करता है। वायुसेना अब अलग-अलग स्तरों पर इन मिसाइलों की मारक क्षमता को बढ़वाना चाहती है। ताकि इस तरह की मिसाइलों के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भरता खत्म हो सके।