रिक्शा चालक की बेटी ने देश के लिए जीता सोना, मां की प्रतिक्रिया देख आंखें छलछला जाएंगी

By Arjun Singh  |  First Published Aug 30, 2018, 3:33 PM IST

बीमार गरीब रिक्शा चालक की बेटी के सफलता के सुनहरे आकाश पर छा जाने के पीछे संघर्ष की एक लंबी कहानी है। जकार्ता में बेटी इतिहास रच रही थी और इधर, जलपाईगुड़ी में उनके परिजन भावनाओं के ज्वार को थामे इस लम्हे को देख रहे थे। 
 

भारत की स्वप्ना बर्मन ने जकार्ता एशियाई खेलों में महिलाओं की हेप्टाथलोन स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। वह इस स्पर्धा में गोल्ड जीतने वाली देश की पहली महिला एथलीट हैं। बीमार गरीब रिक्शा चालक की बेटी के सफलता के सुनहरे आकाश पर छा जाने के पीछे संघर्ष की एक लंबी कहानी है। यही नहीं उन्हें दोनों पैरों में छह-छह उंगलियां होने के चलते भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इससे उनकी लैंडिंग पर असर पड़ता है। 

अपनी जीत के बाद स्वप्ना ने कहा, 'मेरा सपना पूरा हो गया। मेरे सर की आशा पूरी हो गई। 2014 से मुझे इंजरी थी। कंपटीशन से पहले भी मुझे काफी दिक्कत हो रही थी। मुझे दांत में काफी दर्द हो रहा था। मैं एक बार सोच रही थी कि नहीं खेलूंगी, लेकिन फिर ख्याल आया कि चार साल की प्रैक्टिस, इतने लोगों की आशाओं का क्या होगा। इसलिए मुझे ये करना ही था। सब लोगों का आशीर्वाद था, इसलिए मैं जीत पाई।' 

जकार्ता में बेटी इतिहास रच रही थी और इधर, जलपाईगुड़ी में उनके परिजन भावनाओं के ज्वार को थामे इस लम्हे को देख रहे थे। स्वप्ना के जीतने के बाद पश्चिम बंगाल के न्यूजलपाईगुड़ी स्थित उनके घर के बाहर लोगों का जमावड़ा लग गया और हर तरफ मिठाइयां बांटी जाने लगीं। बेटी की सफलता से मां बाशोना इतनी भावुक हो गईं कि रोने लगीं। उन्होंने बेटी की जीत के लिए पूरे दिन प्रार्थना की और जब बेटी ने मेडल जीता तो दुर्गा मां का शुक्रिया अदा करने उनके मंदिर में चली गईं। स्वप्ना के पिता पंचम बर्मन रिक्शा चलाते हैं लेकिन वह कुछ समय से बीमार हैं। बेटी की जीत के बाद उनकी मां ने कहा, 'यह उसके लिए आसान नहीं था। हमारे लिए बेटी की जरूरत पूरी करना बहुत मुश्किल था। उसे हर चीज संघर्ष से मिली। लेकिन कभी कोई शिकायत नहीं की। एक वक्त स्वप्ना को अपने लिए जूतों तक के लिए संघर्ष करना पड़ा।' उन्होंने कहा, '...मां दुर्गा ने मेरे सपने पूरे कर दिए हैं। मुझे हमेशा से यह भरोसा था कि वह मेरी प्रार्थनाओं का प्रतिफल देगी। आज उसने दे दिया। मेरी बेटी ने मेडल जीता है। मैं और मेरे पति बहुत खुश हूं।'

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21 साल की स्वप्ना ने दो दिन तक चली सात स्पर्धाओं में 6026 अंक के साथ सोने का तमगा जीता। हालांकि वह फाइनल से पहले चोट और दांत के दर्द से परेशान थीं। उन्होंने दाड़ पर पट्टी बांधकर इसमें हिस्सा लिया। उन्होंने ऊंची कूद (1003 अंक) और भाला फेंक (872 अंक) में पहला तथा गोला फेंक (707 अंक) और लंबी कूद (865 अंक) में दूसरा स्थान हासिल किया। वहीं 100 मीटर (981 अंक, पांचवां स्थान) और 200 मीटर (790 अंक, सातवां स्थान) दौड़ में उनका प्रदर्शन प्रभावशाली नहीं रहा। लेकिन कुल अंकों में वह अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे रहीं।  सात स्पर्धाओं में से आखिरी स्पर्धा 800 मीटर की दौड़ थी। इससे पहले, बर्मन को चीन की क्विंगलिंग वांग पर 64 अंक की बढ़त मिली हुई थी। उन्हें इस आखिरी स्पर्धा में अच्छा प्रदर्शन करने की जरूरत थी। स्वप्ना ने इसमें चौथा स्थान हासिल कर गोल्ड जीत लिया। बर्मन से पहले बंगाल की सोमा बिस्वास तथा कर्नाटक की जेजे शोभा और प्रमिला अयप्पा ही एशियाई खेलों में इस स्पर्धा में पदक जीत पाई थीं। बिस्वास और शोभा बुसान एशियाई खेल (2002) और दोहा एशियाई खेल (2006) में क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रही थीं। जबकि प्रमिला ने ग्वांग्झू (2010) में कांस्य पदक जीता था।

जानिये क्या होता है हेप्टाथलोन

हेप्टाथलोन में एथलीट को कुल 7 स्टेज में हिस्सा लेते हैं। पहले चरण में 100 मीटर फर्राटा रेस होती है। दूसरा हाई जंप, तीसरा शॉट पुट, चौथा 200 मीटर रेस, 5वां लांग जंप और छठा जेवलिन थ्रो होता है। इस इवेंट के सबसे आखिरी चरण में 800 मीटर रेस होती है। इन सभी खेलों में एथलीट को प्रदर्शन के आधार पर अंक मिलते हैं, जिसके बाद पहले, दूसरे और तीसरे स्थान के एथलीट का फैसला किया जाता है। 
 

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