भारतीय जनता पार्टी ने तीन हिंदी भाषी राज्यों में मिली हार के लिए जिम्मेदार नेताओं को राष्ट्रीय राजनीति में उतारने का फैसला किया है. ऐसा कर भाजपा ने एक तीर से दो निशान साधे हैं. पहला एक तो इन नेताओं को राज्य की राजनीति से दूर किया, वहीं राष्ट्रीय राजनीति में लाकर इन नेताओं की नाराजगी दूर की है.
भारतीय जनता पार्टी ने तीन हिंदी भाषी राज्यों में मिली हार के लिए जिम्मेदार नेताओं को राष्ट्रीय राजनीति में उतारने का फैसला किया है. ऐसा कर भाजपा ने एक तीर से दो निशान साधे हैं. पहला एक तो इन नेताओं को राज्य की राजनीति से दूर किया, वहीं राष्ट्रीय राजनीति में लाकर इन नेताओं की नाराजगी दूर की है. लिहाजा राष्ट्रीय बैठक से पहले तीन राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, रमनसिंह और वसुंधरा राजे को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है.
तीन राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों के बाद मिली हार के बाद भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी थी. लेकिन इन तीनों राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री राज्य की राजनीति से बाहर नहीं निकलना चाहते थे. लिहाजा इन नेताओं ने संगठन की कमान अपने हाथ में लेने के साथ ही विधानसभा में विपक्ष के नेता के पद के लिए अपनी अपनी दावेदारी शुरू कर दी थी. हालांकि संघ और भाजपा का राष्ट्रीय इन नेताओं की मांगों को पूरा करने के पक्ष में नहीं था.
मध्यप्रदेश में तो शिवराज अपने आप को राज्य की राजनीति में सक्रिय करने के लिए हार के बाद भी जनता के लिए आभार यात्रा निकाल रहे थे. लेकिन बाद में पार्टी ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी. जिसके कारण शिवराज पार्टी से नाराज भी चल रहे थे. शिवराज प्रदेश अध्यक्ष या फिर नेता विपक्ष के लिए दावेदारी कर रहे थे. लेकिन पार्टी ने उनकी एक नहीं सुनी. जबकि कुछ ऐसे ही हालत राजस्थान के भी थे. जहां वसुंधरा राजे राज्य में संगठन की कमान अपने हाथ में ही रखना चाहती थी.
इसके लिए संघ ने पहले ही साफ कर दिया था कि उन्हें कोई भी पद नहीं दिया जाएगा. जबकि राजे राष्ट्रीय नेताओं पर दबाव बनाए हुए थी. राजे के विरोध में राज्य के नेता भी थे. क्योंकि पार्टी को राज्य में विधानसभा चुनावों में बड़ी बाहर मिली है. इसके लिए सीधे तौर पर राजे को ही जिम्मेदार माना जाता है. क्योंकि पिछले पांच साल में उन्होंने राज्य में सरकार को अपने हिसाब से चलाया.
वहीं छत्तीसगढ़ में भी रमन सिंह राज्य की राजनीति में अपने को सक्रिय रखना चाहते थे. लेकिन भाजपा नेतृत्व इसके लिए तैयार नहीं थे. अगर इन तीनों नेताओं को राज्य की राजनीति में सक्रिय रखा जाता तो लोकसभा चुनाव में अपने अपने करीबियों को टिकट दिलाने के लिए ये नेता पार्टी पर दबाव बनाते. जबकि अब पार्टी राज्य में दूसरी पंक्ति के नेताओं को लाना चाहती है. संघ की यही चाहता है कि राज्य में नए सिरे से संगठन को खड़ा किया जाए.