आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए बिहार में किए गए सफल प्रयोग के बाद अब भाजपा इस फार्मूले को महाराष्ट्र में लागू करेगी। इससे पहले ये प्रयोग भाजपा उत्तर प्रदेश में लागू कर चुकी है। महाराष्ट्र में उसकी सहगोगी शिवसेना भाजपा से नाराज चल रही है। शिवसेना राममंदिर समेत कई मुद्दों पर सरकार को घेरती आ रही है
आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए बिहार में किए गए सफल प्रयोग के बाद अब भाजपा इस फार्मूले को महाराष्ट्र में लागू करेगी। इससे पहले ये प्रयोग भाजपा उत्तर प्रदेश में लागू कर चुकी है। महाराष्ट्र में उसकी सहगोगी शिवसेना भाजपा से नाराज चल रही है। शिवसेना राममंदिर समेत कई मुद्दों पर सरकार को घेरती आ रही है।
बिहार में पिछले लोकसभा में भाजपा ने रामविलास पासवान और उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लेकिन हाल ही में कुशवाहा एनडीए को छोड़कर यूपीए का हिस्सा बन गए हैं। इसके बाद बिहार में टिकटों के बंटवारे पर नाराज चल रहे राम विलास पासवान ने भी तीखे तेवर अपनाए थे। लेकिन बाद में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ बाचतीत के बाद पासवान के तेवरों में नरमी आयी थी और उसके बाद ये हुआ कि बिहार में पासवान छह सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
अब भाजपा की असल परीक्षा महाराष्ट्र में है। जहां पर हालांकि वह भाजपा के साथ राज्य में सरकार में सहयोगी है। लेकिन उसके बाद भी विपक्षी दलों के जैसे व्यवहार कर रही है। लिहाजा अब भाजपा महाराष्ट्र में बिहार का फॉर्मूले को अपनाने की रणनीति बना रही है। भाजपा महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ चुनाव लड़ने के पक्ष में है, लेकिन शिवसेना इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर रही है। हालांकि शिवसेना पिछले कुछ सालों से भाजपा के खिलाफ तीखे तेवर अपनाए हुए है। असल में तीन राज्यों में सरकार गंवाने के बाद भाजपा पर भी दबाव है कि वह अपने सहयोगी दलों को साथ लेकर चले।
यूपी में विधानसभा चुनाव में मिलकर लड़ी सुभासपा भी भाजपा से नाराज चल रही थी। लेकिन हाल ही में योगी ने पार्टी अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से बैठक कर उन्हें मना लिया है। अब लोकसभा चुनावों को लेकर सहयोगी दलों से संबंध बेहतर करने में जुटी है। बिहार में लोजपा का दबाव काम आया है और अब महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा पर हमलावर है। शिवसेना मंदिर मुद्दे पर केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए अयोध्या में अपना कार्यक्रम कर चुकी है। जिसके बाद विहिप ने वहां पर अपना कार्यक्रम किया। हालांकि भाजपा के नेताओं का मानना है कि अगर दोनों दल पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी साथ लड़ते हैं तो बेहतर परिणाम आएंगे, जबकि अलग-अलग लड़ने पर दोनों को नुकसान होगा।