राज्य में शिवसेना की अगुवाई में सरकार बन गई है और भाजपा विपक्ष में है। लेकिन राज्य में दो महीने पहले नजारा कुछ अलग था। भाजपा सत्ता में थी और कांग्रेस और एनसीपी विपक्ष में थे। भाजपा ने शिवसेना के साथ चुनाव लड़ा। लेकिन चुनाव के बाद राज्य की फिजा ही बदल गई। अब भाजपा विपक्ष में है और शिवसेना विपक्षी दलों के साथ सत्ता में।
मुंबई। महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनने के बाद विधायकों की निष्ठा भी बदलने की आशंका है। राज्य में चुनाव से पहले भाजपा में आए कांग्रेस और एनसीपी विधायक अब घर वापसी करना चाहते हैं। माना जा रहा है कि बेहतर भविष्य के लिए भाजपा में आए ये विधायक अब पार्टी से अलविदा कहने की तैयारी में हैं। माना जा रहा है कि एक दर्जन विधायक और सांसद घर वापसी करना चाहते हैं।
राज्य में शिवसेना की अगुवाई में सरकार बन गई है और भाजपा विपक्ष में है। लेकिन राज्य में दो महीने पहले नजारा कुछ अलग था। भाजपा सत्ता में थी और कांग्रेस और एनसीपी विपक्ष में थे। भाजपा ने शिवसेना के साथ चुनाव लड़ा। लेकिन चुनाव के बाद राज्य की फिजा ही बदल गई। अब भाजपा विपक्ष में है और शिवसेना विपक्षी दलों के साथ सत्ता में। चुनाव से पहले करीब एक दर्जन कांग्रेस और एनसीपी के विधायकों ने पार्टी का दामन छोड़कर भाजपा का हाथ पकड़ा।
क्योंकि इस विधायकों को माहौल देखकर लग रहा था कि राज्य में भाजपा फिर से सत्ता में वापसी करेगी। हालांकि उस वक्त एनसीपी के प्रमुख शरद पवार ने पार्टी का साथ छोड़ने वाले विधायकों से कहा था कि वह पछताएंगे। लिहाजा चुनाव के बाद उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई है। राज्य में फिर से भाजपा की सरकार नहीं बनने के कारण भाजपा में आए विधायक परेशान है। क्योंकि एक तरफ नए होने के कारण भापजा के नेता उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं। वहीं सत्ता में आने के बाद उनके खिलाफ कुछ कार्यवाही होने का डर सता रहा है।
लिहाजा ये विधायक घर वापसी करना चाहते हैं। इसके लिए इन विधायकों ने अपने करीबी लोगों के जरिए दोनों दलों के बड़े नेताओं को साधना शुरू कर दिया है। ये विधायक इस बात का आश्वासन चाहते हैं कि घर वापसी के बाद उनकी सीट पर होने वाले चुनाव के लिए उन्हें या फिर उनके परिवार के सदस्य को टिकट दिया जाए। क्योंकि भाजपा का साथ छोड़ने के बाद उनकी सदस्यता चली जाएगी। फिलहाल मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा के करीब एक दर्जन विधायक घर वापसी की तैयारी में है। अगर ऐसा होता है तो राज्य में भाजपा की ताकत कम होगी और गठबंधन सरकार मजबूत होगी।