सवर्ण आरक्षण रद्द करने की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश का आया बड़ा फैसला

By Gopal K  |  First Published Jan 25, 2019, 1:30 PM IST

सवर्णों को नौकरियों में आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार किया है। हालांकि इस मामले में यूथ फॉर इक्विलिटी और जनहित अभियान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब जरुर मांगा है।

हालांकि मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने 10% आरक्षण पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है। 
वहीं कारोबारी तहसीन पूनेवाला कि ओर से दायर याचिका पर अभी सुनवाई होनी बाकी है। जिनकी याचिका में कहा गया है कि केन्द्र सरकार का यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है और आर्थिक आधार पर आरक्षण नही दिया जा सकता। 

तहसीन पूनावाला ने अपनी याचिका में कहा है कि इस संविधान संशोधन से आरक्षण के बार
में इंदिरा साहनी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले में प्रतिपादित मानदंड का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि इस फैसले में स्पष्ट किया गया था कि आरक्षण के लिए पिछड़ेपन को सिर्फ आर्थिक आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता है। 

पूनावाला ने याचिका में यह भी कहा है कि संविधान पीठ ने आरक्षण की अधिकतम सीमा फीसदी निर्धारित की थी, और आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान इस सीमा को लांघता है। याचिका में इज़ नए कानून पर रोक लगाने की मांग की गई है। 

आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिये 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पारित किया गया था और इसे राष्ट्पति की मंजूरी भी मिल चुकी है। सामाजिक न्याय मंत्रालय इस संविधान संशोधन कानून को लागू करने संबंधी अधिसूचना भी जारी कर चुका है। 

लोकसभा और राज्यसभा से इस बिल के पास होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे सामाजिक न्याय की जीत बताया और कहा था कि यह देश की युवा शुक्ति को अपना कौशल दिखाने के लिए व्यापक मौका सुनिश्चित करेगा तथा देश मे एक बड़ा बदलाव लाने में सहायक होगा। 


1950 के बाद यह संविधान का 124 वां संशोधन बिल है। 6 मौके ऐसे भी आए, जब सुप्रीम कोर्ट को लगा कि संविधान में किया गया संशोधन असंवैधानिक है। इसलिए बिल निरस्त कर दिए गए। ताजा उदाहरण जजों की नियुक्ति के लिए आयोग के गठन का है। 

सरकार ने अप्रैल 2015 में इसके लिए संविधान में संशोधन किया था। अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कॉलेजियम प्रणाली बहाल कर दी थी।

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