प्रदेश में खत्म होने की कगार पर खड़े हो चुके संगठन को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी फिर से खड़ा करना चाहते हैं। लिहाजा कांग्रेस अब प्रदेश की कमान किसी युवा, अनुभवी या ब्राह्मण नेता के हाथ में दे सकती है। क्योंकि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर राष्ट्रीय राजनीति में आना चाहते हैं।
-लोकसभा चुनाव से पहले संगठन में बदलाव कर सकतें है राहुल
-राजबब्बर राष्ट्रीय राजनीति में जाने के इच्छुक
तीन हिंदीभाषी राज्यों में कांग्रेस को मिली जीत के बाद कांग्रेस उत्तर प्रदेश पर फोकस कर है। प्रदेश में खत्म होने की कगार पर खड़े हो चुके संगठन को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी फिर से खड़ा करना चाहते हैं। लिहाजा कांग्रेस अब प्रदेश की कमान किसी युवा, अनुभवी या ब्राह्मण नेता के हाथ में दे सकती है। क्योंकि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर राष्ट्रीय राजनीति में आना चाहते हैं।
राज्य में जल्द ही कांग्रेस के संगठन में बदलाव हो सकता है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राजबब्बर राज्य में विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से ही केन्द्रीय राजनीती में जाने के इच्छा जता चुके हैं। लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें कुछ वक्त तक इस पद पर बने रहने को कहा था। बहरहाल राजबब्बर राज्यसभा सांसद हैं और अगले साल होने वाले लोकसभा लड़ना चाहते हैं। राजबब्बर फिरोजाबाद और आगरा से कांग्रेस के लोकसभा सांसद रह चुके हैं। असल में तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली जीत में सामान्य वर्ग की बड़ी भूमिका मानी जा रही है। लिहाजा उत्तर प्रदेश में ही कांग्रेस किसी ब्राह्मण पर दांव खेलना चाहती है। लिहाजा राज्य कांग्रेस में बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। इसके साथ ही राज्य में नेताओं में गुटबाजी का दौर शुरू हो गया है। सभी नेता अपने-अपने आकाओं के योगदान को गिना रहे हैं।
कांग्रेस आलाकमान भी लोकसभा चुनाव से पहले राज्य के संगठन में बदलाव करना चाहती है। इसके लिए हालांकि पहले कुछ नाम चर्चा में थे। लेकिन तीन राज्यों में मिली जीत के बाद इन नेताओं का नाम फिर चर्चा में आ रहा है। असल में राज्य कांग्रेस के मुखिया के लिए जतिन प्रसाद और प्रमोद तिवारी का नाम सबसे आगे चल रहा है। दोनों नेता राज्य में कांग्रेस के बड़े नेता माने जाते हैं और ब्राह्मण वर्ग से आते हैं। जतिन प्रसाद शाहजहांपुर से लोकसभा सांसद रहे चुके हैं और राहुल के करीबी माने जाते हैं। जबकि प्रमोद तिवारी राज्य में कई बार विधायक चुके हैं और राज्यसभा से सांसद भी।
इसी बीच छत्तीसगढ़ के प्रभारी पीएल पुनिया का नाम भी सुर्खियों में है। पुनिया को छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत का रणनीतिकार माना जा रहा है। लिहाजा कांग्रेस उन पर भी बड़ा दांव खेल सकती है। राज्य में अनुसूचित जाति का करीब 21 फीसदी वोट बैंक है। लिहाजा कांग्रेस पुनिया के नाम पर भी अपनी सहमति दे सकती है। हालांकि एससी वोट बैंक बसपा का कोर वोटर माना जाता है, लिहाजा उसको तोड़ना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है और अब तो भाजपा भी राज्य के दलित वोटरों को लुभाने के लिए कई कार्यक्रम चला रही है। ऐसा माना जा रहा है कि तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत में उच्च वर्ग का भाजपा से नाराज होना है।
बहरहाल नेताओं के समर्थक सोशल मीडिया के जरिए अपनी वफादारी जता रहे हैं। हालांकि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के बीच होने वाले गठबंधन पर भी नजर लगाए हुए है। अगर ये दोनों दल गठबंधन बनाकर कांग्रेस को साथ लेकर चलते हैं तो कांग्रेस की मुश्किलें काफी हद तक आसान हो जाएंगी। अगर ये दोनों दल कांग्रेस से दूरी बनाकर चलते हैं तो कांग्रेस को अपने संगठन को धार देनी होगी।