दारुल उलूम का फतवा, औरतों का मर्दों के साथ बारात में जाना नाजायज

By Team MyNationFirst Published Dec 26, 2018, 2:13 PM IST
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दारुल उलूम देवबंद से जारी हुए फतवे में कहा गया है कि ढोल-बाजा व मर्द-औरतों का एक साथ बारात में जाना शरीयत इस्लाम में नाजायज है। इससे बचना वाजिब है वरना सख्त गुनहगार होंगे।

सहारनपुर--इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद ने विवाह समारोह में पुरुषों के साथ महिलाओं के खाना खाने को नाजायज बताने के बाद अब बारात में औरतों के जाने को भी नाजायज बताया गया है।

साथ ही नसीहत की गई है कि इस अमल से बचना वाजिब है, वरना सख्त गुनाहगार होंगे। बता दें कि इससे पहले देवबंद के मुफ्तियों ने मुसलमानों को क्रिसमस पर बधाई देना नाजायज बताया था।

देवबंद के गांव फुलासी निवासी एक व्यक्ति ने दारुल उलूम देवबंद से लिखित सवाल किया था कि आम तौर पर घर से निकाह के लिए जब दुल्हा निकलता है तो उसे बारात कहते हैं।

कई जगह बारात में ढोल बाजा भी बजाया जाता है और दुल्हे को घोड़े पर बैठाया जाता है। दुल्हे के साथ बारात में मर्दों के अलावा औरतें भी जाती हैं जहां पर्दे का भी एहतेमाम नहीं होता है। क्या इस तरह बारात ले जाने की शरीयत इजाजत देती है।

पूछे गए सवाल के जवाब में दारुल उलूम देवबंद से जारी हुए फतवे में कहा गया है कि ढोल-बाजा व मर्द-औरतों का एक साथ बारात में जाना शरीयत इस्लाम में नाजायज है। इससे बचना वाजिब है वरना सख्त गुनहगार होंगे।

फतवे में कहा गया है कि अगर दुल्हन को रुखसत कराकर लाने के लिए जाना हो तो दुल्हे के साथ घर के दो या तीन लोग चले जाएं काफी हैं।

जामिया हुसैनिया के वरिष्ठ उस्ताद मुफ्ती तारिक कासमी ने दारुल उलूम से जारी फतवे पर रोशनी डालते हुए कहा कि शरीयत ए मुहम्मदिया में बारात का ही कोई तसव्वुर नहीं है। बारात में काफी तादाद में औरतों मर्दों को ले जाने की कोई नजीर मोहम्मद साहब की जिंदगी से नहीं मिलती है।

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