कौन थे हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन? खेती की बदल दी तस्वीर, जानिए उनसे जुड़ी 10 बड़ी बातें

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Sep 28, 2023, 2:36 PM IST

देश में जब भी हरित क्रांति की चर्चा होगी तो एमएस स्वामीनाथन का जिक्र किए बगैर पूरी नहीं हो सकती। देश के एग्रीकल्चर सेक्टर में क्रांति लाने वाला इस शख्स ने 98 साल की उम्र में बुधवार (28 सितंबर, 2023) को चेन्नई में आखिरी सांस ली।

नई दिल्ली। देश में जब भी हरित क्रांति की चर्चा होगी तो एमएस स्वामीनाथन का जिक्र किए बगैर पूरी नहीं हो सकती। देश के एग्रीकल्चर सेक्टर में क्रांति लाने वाले इस शख्स ने 98 साल की उम्र में बुधवार (28 सितंबर, 2023) को चेन्नई में आखिरी सांस ली। उनका पूरा नाम मोनकोंबू संबासिवन स्वामीनाथन था। उन्हीं की अगुवाई में देश में हरित क्रांति परवान चढ़ी। चावल और गेहूं की जो उन्नत किस्में उन्होंने तैयारी की। उन किस्मों ने देश की तकदीर बदल दी। आइए जानते हैं उनके बारे में विस्तार से।

दुनिया के पहले विश्व खाद्य पुरस्कार के लिए भी हुए थे नामित

केरल के कुंभकोणम में 7 अगस्त 1925 को जन्मे स्वामीनाथन ने 1960 के दशक में देश में गेहूं और चावल की उच्च उपज देने वाली किस्मों को विकसित किया। उन्हें दुनिया के पहला विश्व खाद्य पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। इस शख्स ने उस समय देश को बड़ी कठिनाई से उबरने में अहम भूमिका निभाई। जब देश भयंकर अकाल से जूझ रहा था। उनकी गेहूं और चावल की तैयार की गई नई किस्मों ने कुछ ही समय में देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ा दिया। खेती-किसानी में देश आत्मनिर्भर बना। देश के लाखो नागरिकों को भोजन के लिए अनाज मुहैया हो सका।

रेमन मैग्सेसे समेत मिले ये पुरस्कार

उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण के अलावा 1971 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। एसएम स्वामीनाथन को 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार भी मिला। एच के फिरोदिया पुरस्कार के साथ लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार और इंदिरा गांधी पुरस्कार से भी नवाजा गया।

एमएस स्वामीनाथन से जुड़ी 10 बड़ी बातें

1. महात्मा गांधी के अनुयायी और सर्जन रहे एमएम स्वामीनाथन के के पिता एम के सांबशिवन स्वदेशी आंदोलन और तमिलनाडु में मंदिर प्रवेश आंदोलन में शामिल हुए। इस घटना ने कम उम्र में ही स्वामीनाथन के मन में सेवा के बीज बो दिए। 

2. पैतृक शहर से मैट्रिक के बाद मेडिकल स्कूल में दाखिला लिया। पर 1943 में बंगाल में पड़े भीषण अकाल के बाद कृषि अनुंसधान के क्षेत्र में आ गए।
 
3. तिरुवनंतपुरम के महाराजा कॉलेज से जूलॉजी में ग्रेजुएशन के बाद मद्रास कृषि कॉलेज से कृषि विज्ञान में ग्रेजुएशन किया। 

4. पादप प्रजनन और आनुवंशिकी में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। फिर नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) आ गए।

5. यूपीएससी क्लियर किया। पर आलू आलू आनुवंशिकी पर शोध जारी रहा। नीदरलैंड के वैगनिंगेन कृषि विश्वविद्यालय में यूनेस्को फ़ेलोशिप का आप्शन चुना। 

6. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर से 1952 में पीएचडी की। विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में एक रिसर्चर के रूप में काम करने गए और 1954 में भारत लौटे।

7. साल 1972 और 1979 के बीच एमएस स्वामीनाथन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक रहे। राष्ट्रीय पादपपशु और मछली आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो का गठन उन्होंने ही किया। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के परिवर्तन में अहम भूमिका रही।
 
8. हरित क्रांति के दौर में उनके उठाए गए कदमों से अनाच की ज्यादा उपज वाली किस्में विकसित हुईं। खाद और कीटनाशकों के प्रयोग के साथ कीट-प्रतिरोधी फसलों का विकास हुआ। उनके प्रयास का ही नतीजा है कि भारत में हरित क्रांति लागू होने के बाद अकाल का दौर नहीं देखा गया।

9. खाद्य और कृषि संगठन के स्वतंत्र अध्यक्ष (1981 से 1985 तक) रहें। IUCN (प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ) के अध्यक्ष (1984 से 1990 तक) अध्यक्ष रहें। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया के अध्यक्ष (1988 से 1996 तक) रहें। 

10. देश में किसानों की आत्महत्या के मामले देखते हुए सरकार ने साल 2004 में स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) का गठन किया था। केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव भी रहें।

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