उत्तराखंड में 'घोस्ट विलेज' बने सरकार के लिए वरदान

By Team MyNation  |  First Published May 15, 2020, 3:03 PM IST

असल में उत्तराखंड में हजारों की  संख्या में गांब खाली हो गए थे। रोजगार के सिलसिले में दूसरे राज्यों में जाने वालों ने गांवों  की तरफ रूख नहीं किया। जिसके बाद ये गांव आबादी विहीन हो गए थे। लेकिन अब इन गांवों में रौनक दिख रही है। ये गांवों वर्षों से खाली पड़े थे, लेकिन अब यहां पर लोगों का आना शुरू हो गया है। इसके साथ ही सरकार के लिए ये गांव वरदान साबित हुए हैं। क्योंकि सरकारी स्कूलों के अतिरिक्त राज्य सरकार के पास प्रवासियों को ठहराने की कोई व्यवस्था  नहीं है। 

नई दिल्ली।  कोरोना संकट के बीच उत्तराखंड में हजारों की संख्या में प्रवासी राज्य में लौट रहे हैं। वहीं राज्य सरकार के लिए राज्य में खाली हो गए गांव वरदान साबित हो रहे हैं। क्योंकि सरकार प्रवासियों के 14 दिनों की क्वारंटिन के लिए इन्हीं गांवों का इस्तेमाल कर रही है। वहीं खाली पड़े गांवों में अब रौकन देखी जा रही है। राज्य में करीब 75 हजार से अधिक प्रवासी वापस लौट चुके हैं ।

असल में उत्तराखंड में हजारों की  संख्या में गांब खाली हो गए थे। रोजगार के सिलसिले में दूसरे राज्यों में जाने वालों ने गांवों  की तरफ रूख नहीं किया। जिसके बाद ये गांव आबादी विहीन हो गए थे। लेकिन अब इन गांवों में रौनक दिख रही है। ये गांवों वर्षों से खाली पड़े थे, लेकिन अब यहां पर लोगों का आना शुरू हो गया है। इसके साथ ही सरकार के लिए ये गांव वरदान साबित हुए हैं। क्योंकि सरकारी स्कूलों के अतिरिक्त राज्य सरकार के पास प्रवासियों को ठहराने की कोई व्यवस्था  नहीं है।

लिहाजा सरकार इन गांवों में सहूलियतें मुहैया करा कर प्रवासियों को इन्हीं में क्वारंटिन कर रही है। पौड़ी जिले के रिखणीखाल ब्लॉक के बीपीओ एसपी थपलियाल ने कहा राज्य के बाहर से आने वाले लोगों के कारण सुनसान गांवों में चहरकदमी देखी  जा रही है और इनकी  उपयोगिता  बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि स्कूल भवनों या पंचायत भवन जहां प्रवासियों को मुख्य रूप क्वारंटिन किया जा रहा है। उनके मुताबिक पौड़ी जिले में परित्यक्त घरों में कम से कम 576 प्रवासियों रह रहे हैं और राज्य सरकार द्वारा 14 दिनों के लिए बाहर से आने वाले प्रवासियों को इन्हीं घरों में क्वारंटिन कर रही है।

माना जा  रहा है कि राज्य में 75 हजार से ज्यादा प्रवासी कोरोना लॉकडाउन में पहुंचे हैं और तीस फीसदी लोग अब राज्य छोड़कर नहीं जाना चाहते हैं। जबकि पचास फीसदी राज्य छोड़कर अन्य प्रदेशों में रोजगार के लिए जा सकते हैं।
 

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