घाटी के छावनी इलाके में गोल्फ़ मैदानों को आर्मीचीफ़ ने दिखाई लाल झंडी

 |  First Published Jul 6, 2018, 11:27 AM IST

आर्मीचीफ़ जनरल विपिन रावत ने जन भावना का सम्मान करते हुए श्रीनगर के कैंटोन्मेंट इलाके में अधिकारियों के गोल्फ़ खेलने पर पाबंदी लगा दी है। सैन्यप्रमुख के मुताबिक जहां जवान आतंकवादियों से लड़ रहे हैं वहां कोई गोल्फ़ नहीं खेल सकता।

कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ रहे जवानों के सम्मान में छावनी इलाके में अफ़सरों के गोल्फ़ खेलने पर पाबंदी लगा दी गई है। यह आदेश सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने दिया है। जनरल रावत आतंकवादियों के हमले में शहीद हुए जवानों के श्रद्धांजलि देने श्रीनगर पहुंचे थे।
सेना के गोपनीय सूत्रों ने माई नेशन को बताया कि “बादामी बाग छावनी में एक तरफ सेना प्रमुख कुछ अधिकारियों के साथ शहीद जवानों के पार्थिव शरीर को नमन करने के लिए इंतज़ार कर रहे थे तो दूसरी तरफ़ कुछ अधिकारी गोल्फ़ खेलने में व्यस्त थे”।
सूत्र ने बताया कि कुछ अफ़सरों की असंवेदनशीलता के कारण ही आर्मी चीफ़ ने तुरंत प्रभाव से अपना ये आदेश जारी किया।
इस आदेश के बाद 15 कोर में तैनात कोई भी अधिकारी अगर गोल्फ़ खेलना चाहता है तो उसे आस-पास के गोल्फ़ कोर्स का रुख़ करना पड़ेगा। वहां खेलने के लिए ज़रूरी फ़ीस भी उसे देनी पड़ेगी पर छावनी के गोल्फ़ कोर्स में कोई ऐसी गतिविधि अब नहीं होगी।
सेना के सूत्रों का कहना है श्रीनगर मुख्यालय के 15 कोर में तैनात अधिकांश अधिकारी आतंकवाद विरोधी अभियान में लगे हैं उन्हें इस संभ्रांत खेल के लिए समय तक नहीं मिलता। कुछ अधिकारी ऐसे भी जो नॉन ऑपरेशनल कामों में लगे हैं, उनकी आवाजाही गोल्फ़ कोर्स में होती है। जनरल रावत के इस फ़ैसले से कुछ अधिकारी नाख़ुश बताए जा रहे हैं हालांकि ज़्यादातर अधिकारी इसके समर्थन में हैं। उनका मानना है कि आतंकवादियों से संघर्ष के दौरान कुछ अफ़सरों का गोल्फ खेलना असंवेदनशील है।
घाटी में सैन्य अधिकारियों के गोल्फ़ खेलने पर पहले भी पाबंदी लग चुकी है। उरी हमले में 20 जवानों की शहादत के बाद तत्कालीन आर्मीचीफ़ दलबीर सुहाग ने तुरंत प्रभाव इस खेल पर रोक लगा दी थी लेकिन ये फ़ैसला उरी तक ही सीमित रहा।

गोल्फ सेना और सरकार के बीच एक विवादित मुद्दा भी रहा है। सीएजी की तरफ़ से कई बार देश भर के छावनी परिषद में बने लगभग 100 गोल्फ़ मैदानों को बंद करने की बात कही गई लेकिन केंद्र सरकार और सीएजी के निर्देश को छावनी के संबंधित ऑथोरिटी के तरफ़ से झांसा दिया गया। छावनी की तरफ़ से गोल्फ़ मैदानों को नया नाम ‘पर्यावरण पार्क’ दे दिया गया। सबसे बड़ी बात तो ये कि गोल्फ़ कोर्स और गोल्फ़ का आनंद सिर्फ़ अधिकारी ही ले पाते हैं, जवानों के पास ना तो वक्त होता है और न ही वो मैदान तक पहुंचने की तमाम औपचारिकताएं पूरी कर पाते हैं।
 

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