‘राफेल मामले में दखलअंदाजी से वायुसेना का होगा नुकसान’

By Gopal KFirst Published May 25, 2019, 3:58 PM IST
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राफेल पुनर्विचार मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना लिखित जवाब दाखिल कर दिया है। सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि किसी भी हस्तक्षेप से भारतीय वायु सेना की कार्य प्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है। इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय को कोई दखल नहीं है। इसलिए सभी पुनर्विचार याचिकाएं खारिज की जाएं। 

नई दिल्ली: सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में कहा है कि वायु सेना की सेवाओं और प्रशिक्षण की  सरकार द्वारा बारीकी से निगरानी की गयी है। दाखिल की गई पुनर्विचार याचिकाएं बनावटी और गलत आधारों पर आधारित हैं। राफेल डील में दखलअंदाजी करने और सही करार की बेवजह जांच कराने का प्रयास किया जा रहा है।

सरकार ने यह भी कहा है कि कैग की रिपोर्ट से भी यह स्पष्ट होता है कि सरकार ने सदी दिशा में कदम उठाया है। क्योंकि राफेल की कीमतों से जुड़े सभी आरोपों को कैग ने खारिज कर दिया है। 
इससे पहले याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी लिखित दलीलें सौंप दी थी। भूषण ने कहा था सरकार ने सौदे की प्रक्रिया, रिलायंस और दस्सॉ में समझौते जैसी बातों पर गुमराह किया है। उन्होंने कहा मामला भ्रष्टाचार का है इसलिए कोर्ट सीबीआई को केस दर्ज करने का आदेश दे।

इससे पहले कोर्ट ने मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिका पर 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है। इनकी पुनर्विचार याचिका को नही सुना जाना चाहिये। कोर्ट इसे खारिज करे। जो पहले के लड़ाकू विमान हैं वह काफी पुराने हो गए है। 

लेकिन प्रशांत भूषण ने कहा था कि हम चाहते हैं। सीबीआई राफेल मामले में जांच करे हम यह नही चाहते कि राफेल डील रद्द की जाए। 18 सितंबर को सीसीएस की मीटिंग में डिफेंस डील के 8 महत्वपूर्ण क्लॉज को अनदेखा किया गया था। यहां तक कि एन्टी करप्शन क्लॉज को अनदेखा किया गया।  कोर्ट ने उनकी जांच की मांग पर सुनवाई नहीं की, बल्कि इस आधार पर सुनवाई की कि हम डील को रद्द कराना चाहते हैं। 

उन्होंने कहा कि केंद्र ने कोर्ट के समक्ष उस समय सीएजी की उस रिपोर्ट का हवाला दिया जो उस समय अस्तित्व में ही नहीं थी। उस जानकारी के आधार पर कोर्ट ने फैसला दिया। प्रशांत भूषण ने कहा राफेल विमानों का बेंचमार्क मूल्य तय था। यह 5 बिलियन यूरो तय किया गया था। परंतु राफेल का फाइनल प्राइस उसके बेंचमार्क मूल्य से 55.6% अधिक था और यह समय के साथ बढ़ता गया। 

प्रशांत भूषण ने राफेल डील में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा की जाने वाली समानांतर बातचीत पर भी सवाल उठाया। प्रशांत भूषण का आरोप है कि इस मामले में अनिल अंबानी और सरकार एक दूसरे को लाभ पहुंचाने के लिए जुड़े थे। अम्बानी ने फ्रांस के एक मंत्री की पत्नी को उनकी एक फ़िल्म के निर्माण में वित्तीय मदद दी। इसकी एवज में उन्हें टैक्स में भारी छूट मिली। इन सब मामलों में जांच की जरूरत है। 

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