इस समय जम्मू कश्मीर किसी की सरकार नहीं है और वहा पर राज्यपाल शासन है। इसी को देखते हुए जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा था कि वह शीर्ष अदालत ने अगली सरकार बनने तक इस मसले पर सुनवाई टालने का अनुरोध करेंगे।
जम्मू कश्मीर से अनुच्छे 35 हटाने को लेकर दायर अर्जी पर सुनवाई अब अगले साल तक के लिए टल गई है। सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ इस मामले पर शुक्रवार को सुनवाई करते हुए इसे टालने का आदेश दिया। इस पर अब सुनवाई अगले साल 19 जनवरी को होगी।
इस समय जम्मू कश्मीर किसी की सरकार नहीं है और वहा पर राज्यपाल शासन है। इसी को देखते हुए जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा था कि वह शीर्ष अदालत ने अगली सरकार बनने तक इस मसले पर सुनवाई टालने का अनुरोध करेंगे।
इससे पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट कहा था कि वो विचार करेगा कि क्या अनुच्छेद 35ए संविधान के मूलभूत ढांचे का उल्लंघन तो नहीं करता है, इसमे विस्तृत सुनवाई की जरूरत है। सुनवाई के दौरान जम्मू और कश्मीर सरकार ने मामले की सुनवाई दिसंबर तक टालने की मांग की थी हालांकि इस मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कोई गौर नहीं किया था।
अनुच्छेद 35(A) भारतीय संविधान का वह हिस्सा है जो संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता। इसी अनुच्छेद को समाप्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएँ दाखिल की गई हैं। पहली याचिका वी द सिटीज़न और वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूज़ी एक्शन कमेटी नाम की संस्थाओं ने दाखिल की है। दूसरी याचिका चारुवली खन्ना और सीमा राजदान भार्गव नाम की महिलाओं ने दाखिल की है जिसमें गैर-कश्मीरी से शादी करने के चलते होने वाले भेदभाव का मसला उठाया गया है। उन्होंने इसे सीधे-सीधे संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के अधिकार का हनन बताया है।
अनुच्छेद 35(A) दरअसल अनुच्छेद 370 से ही जुड़ा है। अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेषाधिकार देता है जो अन्य राज्यों से भिन्न है। अनुच्छेद 370 के अनुसार संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिए केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए। अनुच्छेद 35(A) को संविधान में शामिल करने के लिए इसे संसद से पारित नहीं करवाया गया बल्कि पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सीधे राष्ट्रपति सें इस पर हस्ताक्षर करा लिया और उसके बाद इसे अनुच्छेद 370 के उपबंध के रूप में जोड़ दिया गया। लेकिन सरकार ने सीधे-सीधे इसका ज़िक्र संविधान में नहीं करते हुए परिशिष्ट में किया ताकि इसको लोगों की नज़रों से बचाया जा सके। यह देश की संसद, नागरिकों और संविधान के साथ धोखा है।