उत्तर प्रदेश में इस बार आधा दर्जन से ज्यादा छोटे दलों ने राष्ट्रीय या फिर क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावी गठजोड़ किया है। अपना दल के अनुप्रिया पटेल के गुट ने बीजेपी के साथ तो कृष्णा पटेल गुट ने कांग्रेस के साथ के साथ गठबंधन किया। यही नहीं महान दल ने भी कांग्रेस से गठजोड़ किया। वहीं निषाद पार्टी ने बीजेपी के साथ गठजोड़ कर समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ा है। वहीं यूपी में बीजेपी सरकार को समर्थन दे रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने बीजेपी से अपने गठजोड़ को तोड़कर राज्य के पूर्वांचल की 22 सीटों पर अकेले प्रत्याशी उतारे हैं।
वर्तमान लोकसभा चुनाव अब अपने अंतिम चरण में है। सातवें चरण के बाद सबकी नजर चुनावों के नतीजों पर होगी। लेकिन इस चुनाव में बड़े राजनैतिक दलों के साथ ही अग्नि परीक्षा तो छोटे दलों की भी होगी। लिहाजा चुनाव नतीजे ये तय करेंगे कि ये राजनैतिक दल किसी बड़े में अपनी पार्टी का विलय कराएंगे या फिर महज वोटकटवा बनकर रह जाएंगे। उत्तर प्रदेश में करीब आधा दर्जन छोटे दलों ने विभिन्न राजनैतिक दलों के साथ चुनावी गठबंधन कर अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश की है।
उत्तर प्रदेश में इस बार आधा दर्जन से ज्यादा छोटे दलों ने राष्ट्रीय या फिर क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावी गठजोड़ किया है। अपना दल के अनुप्रिया पटेल के गुट ने बीजेपी के साथ तो कृष्णा पटेल गुट ने कांग्रेस के साथ के साथ गठबंधन किया। यही नहीं महान दल ने भी कांग्रेस से गठजोड़ किया। वहीं निषाद पार्टी ने बीजेपी के साथ गठजोड़ कर समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ा है। वहीं यूपी में बीजेपी सरकार को समर्थन दे रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने बीजेपी से अपने गठजोड़ को तोड़कर राज्य के पूर्वांचल की 22 सीटों पर अकेले प्रत्याशी उतारे हैं।
सुभासपा के अध्यक्ष ओपी राजभर का कहना है कि उन्हें बीजेपी ने उचित सीटें नहीं दी। जिसके कारण उन्होंने यूपी में बीजेपी से नाता तोड़ लिया है। यही नहीं बीजेपी ने पूर्वांचल में दखल रखने वाली निषाद पार्टी से भी चुनावी गठबंधन किया। बीजेपी ने निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को बीजेपी के सिंबल पर टिकट दिया है।
हालांकि 2017 में यूपी में हुए लोकसभा उपचुनाव में निषाद पार्टी ने एसपी के साथ गठबंधन किया था और प्रवीण निषाद गोरखपुर से उसी के सिंबल पर जीते थे। फिलहाल छोटे दलों में अपना दल के दोनों गुट, निषाद पार्टी, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) लोकदल, जन अधिकार मंच, जनसत्ता दल, पीस पार्टी शामिल हैं।
अगर बात सुभासपा की करें तो उसने 2004 के लोकसभा चुनाव में पीस पार्टी के साथ गठबंधन बनाया। उसके बाद उनसे अफजाल अंसारी की अगुवाई में बने कौमी एकता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और इसमें पार्टी को ठीक वोट मिले। आंकड़ों के मुताबिक सुभासपा को 2012 के विधानसभा चुनाव में 25 से 49 हजार तक वोट मिले।
जिसके कारण उसकी ताकत राज्य में बढ़ी और इसकी देखते हुए 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उससे गठजोड़ किया। लेकिन 2017 तक विधानसभा चुनाव में खाता न खोल पाने वाली पार्टी चार सीटें जीत का सदन में पहुंची और उसे योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री का कोटा भी मिला। कभी बसपा से अलग होकर सोनेलाल पटेल ने अपना दल की स्थापना की। उनकी मौत के बाद पार्टी की कमान उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल ने संभाली।
वहीं अपना दल ने 2012 में विधानसभा चुनाव जीतकर पार्टी ने विधानसभा में अपनी इंट्री की। कुर्मी वोटों को देखते हुए बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने करार किया और अपना दल दो सीटें जीतने में कामयाब रही और अनुप्रिया पटेल केन्द्र में राज्यमंत्री बनी। इसके बाद विधानसभा चुनाव में अपना दल ने 9 सीटें जीती। जो कांग्रेस से संख्या में ज्यादा थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में अपना दल को 1 फीसदी वोट मिले।
वहीं कभी यूपी में 2014 के विधानसभा में चार सीट जीतकर आने वाली पीस पार्टी अपने राजनैतिक वजूद को बचाने में अभी तक नाकामयाब रही। पूर्वांचल के मुस्लिमों में खासी पैठ बना चुकी पीस पार्टी ने इस बार शिवपाल की पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया। लेकिन पार्टी के ज्यादातर नेता पार्टी को छोड़कर अन्य दलों में जा चुके हैं। फिलहाल अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही पीस पार्टी फिर चुनाव मैदान में है।
वहीं कभी मायावती के करीबी रहे बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी जन अधिकार पार्टी भी इस बार कांग्रेस के साथ मिलकर चुनावी मैदान में हैं। कांग्रेस ने बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या को चंदौली संसदीय सीट मैदान में उतारा है। कभी समाजवादी पार्टी के दिग्गज रहे शिवपाल सिंह यादव ने एसपी से अलग होकर अपनी पार्टी पिछले साल बनाई।
शिवपाल ने कांग्रेस से चुनावी गठजोड़ करने की कोशिश की थी। लेकिन कांग्रेस ने इसके लिए मना कर दिया। फिलहाल शिवपाल सिंह राज्य में अकेले चुनाव लड़ रहे हैं और उनकी अग्निपरीक्षा भी है। शिवपाल सिंह यादव फिरोजाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन अपनी पहली परीक्षा में वह कितने सफल होते हैं ये तो 23 मई के बाद ही मालूम चलेगा। लेकिन शिवपाल एसपी-बीएसपी गठबंधन को जरूर नुकसान पहुंचा रहे हैं। हालांकि इस बार लोकसभा चुनाव से पहले रघुराज सिंह राजा भैया ने अभी अपनी पार्टी जनसत्ता का गठन किया था। लेकिन चुनाव के दौरान ही पार्टी कोई प्रचार नहीं दिखा।