कश्मीर में सेना इजरायली तकनीक से कर रही आतंकवादियों पर प्रहार

By Gursimran Singh  |  First Published Oct 25, 2018, 11:07 AM IST

कश्मीर घाटी में अधिकतर मुठभेड़ ऐसी जगहों पर होती हैं, जहां आतंकी रिहायशी इलाकों में छिपे होते हैं। खुले जंगलों में मुठभेड़ आसान होती है लेकिन आबादी वाली जगहों पर जानमाल के नुकसान का ध्यान रखना होता है।

जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ पिछले दो दशक से चल रही लडाई में भारतीय सेना ने अब अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। जहां पहले सेना के जवान घर में घुसकर आतंकियों को मार गिराते थे वहीं अब सेना इजरायली तकनीक का सहारा ले रही है।

बता दें कि कश्मीर के आतंकवाद की शुरुआत से ही भारतीय सेना अग्रिम चौकी संभालते हुए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। आतंकियों की बदलती तकनीक और सेना को होते हुए भारी नुकसान को देखते हुए सेना ने अपनी तकनीक में बड़ा बदलाव किया है।

कश्मीर घाटी में अधिकतर मुठभेड़ ऐसी जगहों पर होती हैं, जहां आतंकी रिहायशी इलाकों में छिपे होते हैं। खुले जंगलों में मुठभेड़ आसान होती है लेकिन आबादी वाली जगहों पर जानमाल के नुकसान का ध्यान रखना होता है। ऐसी जगहों पर आतंकियों को मारने के लिए सेना को घरों में घुसना पड़ता था, जहां घात लगाकर छिपे हुए आतंकी कई बार बड़ा नुकसान पहुंचा देते थे। 

सेना ने अपने किसी भी जवान की जान न गंवाने के लिए अब इजरायली तकनीक का सहारा लिया है। इसमें जवान एक गैस सिलेंडर से तेज आग की बौछार उस बिल्डिंग में करते हैं, जहां आतंकी छिपे होते है। इसके बाद आतंकियों को आग से बचने के लिए इमारत से बाहर आना होता है। जैसे ही आतंकी बाहर आते हैं, मुस्तैद जवान उन्हें मार गिराते हैं। 

कुछ समय से सेना द्वारा अपनाई जा रही इजरायली तकनीक का फायदा देखने को मिला है। रिहायशी इलाकों में आतंकियों के खिलाफ होने वाले अभियानों में सेना को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है। 

'माय नेशन' से बात करते हुए सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, सेना को इस तकनीक की काफी लंबे समय से जरूरत थी और अब सेना इसे अपना रही है। उन्होंने बताया कि आतंकी हमेशा सुरक्षा बलों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। यही कारण है कि पिछले दो दशकों में चलाए गए आतंक विरोधी अभियानों में सुरक्षा बलों को काफी नुकसान उठाना पड़ा। इन नई तकनीक से मिल रही सफलता से सेना के जवान भी खुश हैं।

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