जीसैट-7ए सैटेलाइट के जरिये वायुसेना के सभी जमीनी रडार स्टेशन, एयरबेस और अवॉक्स आपस में जुड़ जाएंगे। इससे वायुसेना की नेटवर्क आधारित युद्ध क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी।
वायुसेना की मारक क्षमता को कई गुना बढ़ाने वाले जियो ऑरबिट सैटेलाइट जीसैट-7ए का बुधवार को श्रीहरिकोटा से लांच कर दिया गया। जीएसएलवी - एफ 11 इस सैटेलाइट को लेकर अंतरिक्ष में रवाना हुआ। इस सैटेलाइट के सफल लांच के बाद वायु सेना की संचार प्रणाली को और मजबूती मिल गई है। इस सफल लांच के बाद इसरो ने एक ट्वीट में कहा, 'मिशन पूरा, आपके सहयोग के लिए शुक्रिया।'
🇮🇳 Mission Accomplished! 🇮🇳
Thank You for your support. pic.twitter.com/DmERVxSa8Y
इस सैटेलाइट के जरिये वायुसेना के सभी जमीनी रडार स्टेशन, एयरबेस और अवॉक्स आपस में जुड़ जाएंगे। इससे वायुसेना की नेटवर्क आधारित युद्ध क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी। 26 घंटों की उलटी गिनती के बाद बुधवार शाम चार बज कर 10 मिनट पर जीएसएलवी-एफ11 इस सैटेलाइट को लेकर रवाना हुआ। इस उपग्रह का निर्माण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने किया है। इसका वजन 2,250 किग्रा है। यह आठ साल तक सेवा देगा। यह भारतीय क्षेत्र में केयू बैंड में संचार सेवाएं मुहैया करेगा। इसरो ने बताया कि जीएसएलवी - एफ 11 चौथी पीढ़ी का प्रक्षेपणयान है। यह यान तीन चरणों वाला है। यह श्रीहरिकोटा से 2018 का सातवां प्रक्षेपण है और इसरो के लिए जीएसएलवी- एफ 11 का 69 वां मिशन है।
वायुसेना के लिए क्यों खास
जीसैट-7ए वायुसेना के एयरबेस इंटरलिंक होंगे। इससे ड्रोन ऑपरेशन में मदद मिलेगी। ड्रोन ऑपरेशन वायुसेना की जमीनी पहुंच में इजाफा करेगा। भारत, अमेरिका से प्रीडेटर-बी या सी गार्डियन ड्रोन हासिल करना चाहता है। ये ड्रोन अधिक ऊंचाई पर सैटेलाइट की मदद से काफी दूरी से दुश्मन पर हमला करने की क्षमता रखते हैं।
जीसैट-7ए की खूबियां
जीसैट-7ए में 4 सोलर पैनल हैं जिनके जरिये करीब 3.3 किलोवाट बिजली पैदा की जा सकती है। इससे पहले इसरो जीसैट-7 भी लांच कर चुका है। इसका लांच 2013 में किया गया था। यह नौसेना के लिए तैयार किया गया था। यह सैटेलाइट नौसेना के युद्धपोतों, पनडुब्बियों और विमानों को कम्युनिकेशन में मदद देता है। आने वाले समय में वायुसेना को एक और सैटेलाइट जीसैट-7सी मिल सकता है।
भारतीय सेना के मददगार सैटेलाइट
भारत के पास करीब 13 सैन्य उपग्रह हैं। इनमें से ज्यादातर रिमोट-सेंसिंग हैं। ये धरती की निचली कक्षा में मौजूद रहते हैं और तस्वीरें लेने में मदद करते हैं। हालांकि कुछ उपग्रह ऐसे भी हैं, जिन्हें धरती की भू-स्थैतिक कक्षा (जियो ऑरबिट) में स्थापित किया जाता है। इनका इस्तेमाल निगरानी, नेविगेशन और कम्युनिकेशन के लिए होता है। ये रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट सेना द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ की गई सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भी मददगार साबित हुए थे।