मंड्या में चर्चा है कि ‘डोड्डा गौदारा मौमागा’ यानी देवगौड़ा के पोते या ‘मंड्या दा सोसे’ यानी मंड्या की बहू में से बाजी कौन मारेगा। गन्ने का खेत हो या सड़क किनारे चाय की दुकान, हर जगह चर्चा यही है कि जेडीएस के उम्मीदवार की हालत बहुत अच्छी नहीं है।
मंड्या। कर्नाटक की मंड्या लोकसभा सीट से कौन जीतेगा? वोक्कालिगा के गढ़ में यह लाख टके का सवाल बना हुआ है। यहां मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी के बेटे निखिल को निर्दलीय उम्मीदवार सुमलता अंबरीश कड़ी टक्कर दे रही हैं।
यहां चर्चा का विषय है कि ‘डोड्डा गौदारा मौमागा’ यानी देवगौड़ा के पोते या ‘मंड्या दा सोसे’ यानी मंड्या की बहू में से बाजी कौन मारेगा। गन्ने का खेत हो या सड़क किनारे चाय की दुकान, हर जगह चर्चा यही है कि जेडीएस के उम्मीदवार की हालत बहुत अच्छी नहीं है।
मंड्या को ‘सक्कारे नाडू’ यानी गन्ने की भूमि के तौर पर जाना जाता है और कावेरी की राजनीति का यह गढ़ है और वर्तमान चुनाव ने इसे सनसनीखेज नाटक से कम नहीं बना रखा है।
चुनाव मैदान में करीब 22 उम्मीदवार हैं लेकिन सीधा मुकाबला कांग्रेस-जेडीएस के संयुक्त उम्मीदवार निखिल और भाजपा समर्थित सुमलता के बीच है। निखिल (31) पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा के परिवार से तीसरी पीढ़ी के नेता हैं। वहीं सुमनलता (55) अभिनेता-नेता दिवंगत एमएच अंबरीश की पत्नी हैं।
मंड्या के मतदाता स्पष्ट रूप से बंटे हुए हैं और दोनों उम्मीदवार अपने परिवार की राजनीतिक विरासत पर निर्भर हैं। गौड़ा परिवार हासन जिले से है और मंड्या में कई लोग निखिल की उम्मीदवारी को वंशवादी राजनीति थोपे जाने के तौर पर देख रहे हैं।
गेज्जलगेरे में सड़क किनारे चर्चा के दौरान 58 वर्षीय ईरप्पा ने कहा, ‘गौड़ा परिवार अपनी वंशवादी राजनीति मंड्या पर क्यों थोप रहा है? क्या यहां से उनके पास पार्टी का कोई योग्य उम्मीदवार नहीं है? चन्नापटना और रामनगर के बाद मंड्या को भी परिवारवाद के तहत लाया जा रहा है।’
किसान निंगप्पा ने सुमनलता और अंबरीश की प्रशंसा की और पूछा कि अगर निखिल सांसद बन जाते हैं तो अचानक विकास कैसे हो जाएगा जबकि जिले से आठ विधायक और तीन मंत्री बनने के बावजूद विकास नहीं हुआ।
निखिल की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उन्हें गठबंधन की सहयोगी कांग्रेस का यहां समर्थन नहीं मिल रहा है। कई कांग्रेसी कार्यकर्ता सुमनलता का समर्थन कर रहे हैं। हाल ही में कांग्रेस ने मंड्या में अपने सात ब्लॉक अध्यक्षों को निलंबित किया है।
दरअसल, मंड्या समेत ओल्ड मैसूर इलाके में कांग्रेस और जेडीएस पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। मई 2018 में विधानसभा चुनावों के बाद दोनों दलों ने मिलकर यहां सरकार बनाई। लेकिन कांग्रेस के कार्यकर्ता इस फैसले से असहमत हैं। लोकसभा सीटों के तहत हुए बंटवारे में कांग्रेस 21 और जेडीएस सात सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
चुनाव आयोग के अनुसार, मंड्या सीट पर 17,11,534 वोटर हैं। इनमें से 8,54,859 पुरुष, 8,56,525 महिलाएं और 150 उभयलिंगी हैं।