दोनों पक्षों में समझौता वार्ता लखनऊ से लेकर हनुमानगढ़ी तक चली। पर उसमें कोई सहमति नहीं बन सकी तो कोर्ट ने भी कहा कि दोनों पक्षों में समझौता संभव नहीं है। फिर अदालत ने बहस की प्रक्रिया शुरु की और 9 नवम्बर 2019 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
अयोध्या। अयोध्या राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होगी। करीबन 500 वर्षों बाद रामलला अपने मंदिर में विराजमान होंगे। आयोजन की तैयारियां युद्ध स्तर पर की जा रही हैं। पूरी अयोध्या नगरी को राम के रंग से सजाया जा रहा है। अयोध्या को इस तरह से बनाया जा रहा है कि नगर में एंट्री करते ही रामभक्तों को एहसास हो कि वह श्रीराम जन्मभूमि पहुंच गए हैं। पीएम नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होंगे।
मंदिर निर्माण को लेकर क्यों चली लम्बी लड़ाई
श्रद्धालु आने वाली 26 जनवरी से नये मंदिर में रामलला के दर्शन कर पाएंगे। इसको लेकर दुनिया भर के राम भक्तों में उत्साह है। जिस मंदिर में रामलला के दर्शन के लिए भक्त आतुर हैं। उस मंदिर का इतिहास भी काफी दिलचस्प है। काफी लंबी कानूनी लड़ाई के बाद राम मंदिर बन रहा है। वैसे आपको बता दें कि अयोध्या में करीबन 5 हजार मंदिर हैं। उनमें से 95 प्रतिशत मंदिर सीताराम के हैं तो आखिर में राम मंदिर निर्माण को लेकर इतनी लंबी लड़ाई क्यों चली। आइए इस बारे में जानते हैं।
श्रीराम जन्मभूमि को लेकर था विवाद
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के मुताबिक पूरी लड़ाई श्रीराम जन्मभूमि को लेकर थी, क्योंकि जन्मभूमि की अदला बदली नहीं हो सकती। मंदिर तो पूरे देश में लाखों की संख्या मे हैं। पर यह मंदिर भगवान राम का जन्मस्थल माना जाता है। विवाद इसी जन्मभूमि को लेकर था।
विवादित इमारत की जगह पर मंदिर थी या मस्जिद? यही था विवाद
आज जहां राम मंदिर बन रहा है। वहां पहले तीन गुंबदों वाली मस्जिद सी दिखने वाली एक इमारत थी। यह इमारत देखने में ही पूरी तरह मस्जिद की तरह लगती थी। हिंदू पक्ष का दावा था कि इसी इमारत की जगह श्रीराम जन्म स्थान था। उधर, मुस्लिम पक्ष इस स्थान को मस्जिद बताता रहा। हिंदू पक्ष का तर्क था कि पहले इस जगह पर मंदिर था। जिसे तोड़कर मस्जिद बनवाई गई। मुस्लिम पक्ष का जवाब था कि यहां सिर्फ मस्जिद थी, न ही कुछ तोड़ा गया और न ही यहां कुछ था। अब इसी पर विवाद शुरु हो गया कि यहां मंदिर था या फिर मस्जिद।
500 साल पहले जय राजकुमारी ने उठाया था तलवार
विहिप के पदाधिकारी कहते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि की लड़ाई हमारे सम्मान के लिए थी। 500 साल पहले जय राजकुमारी ने इसी को लेकर तलवार उठाई। उन्हें लड़ाई की क्या जरुरत थी। वह तो कई मंदिर बनवा सकती थीं। पर यह जगह हमारी थी और हमारा सवाल था कि आप यहां कैसे घुस गए। इसलिए यह हमारे इज्जत की लड़ाई बन गई थी।
तीन मंदिर तोड़े गए
विहिप के पदाधिकारी कहते हैं कि मुगलकाल में स्वर्गद्वारी मंदिर और त्रेता के ठाकुर के मंदिर तोड़े गए। हालांकि चर्चा सिर्फ राम मंदिर को लेकर ही है, क्योंकि हिंदुओं का दावा है कि यह भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है। वैसे दावा यह भी किया जाता है कि हिंदुओं के 3000 मंदिर तोड़े गए।
इसे संयोग ही कहा जाएगा कि 6 दिसम्बर वह तारीख थी। जिस दिन श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। उसी दिन विवादित ढांचा गिरा। यह जानकारी हुई तो सबकी आंखे खुल गईं। वैसे यह लड़ाई फिर अदालत में काफी लम्बे समय तक चली। हाईकोर्ट के फैसले के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। फिर सुप्रीम कोर्ट के आर्डर के बाद राम मंदिर का निर्माण शुरु हुआ।
दस्तावेजों के ट्रांसलेट होने के बाद कार्रवाई ने पकड़ी तेजी
अदालती लड़ाई में अलग अलग मामलों को 1995 में एक आदेश के बाद एक साथ क्लब कर दिया गया। हाईकोर्ट में सुनवाई चलती रही। करीबन दशक भर तक सुनवाई के बाद फैसला आया तो दोनों पक्षों को बहुत भाया नहीं और दोनों ही पक्षों ने फिर 2011 में देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाजा खटखटाया। चूंकि कोर्ट में अंग्रेजी में अनुवाद करके ही दस्तावेज जमा किए जाते हैं। इसमें लंबा समय लगा। योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद इन दस्तावेजों के ट्रांसलेट कराए जाने की प्रक्रिया तेजी से आगे बढी। ये दस्तावेज संस्कृत, पारसी, फ्रेंच, हिंदी और उर्दू में थे। सभी दस्तावेज अदालत में जमा होने के बाद प्रक्रिया ने तेजी पकड़ी।
2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
दोनों पक्षों में समझौता वार्ता भी लखनऊ से लेकर हनुमानगढ़ी तक चली। पर उसमें कोई सहमति नहीं बन सकी तो कोर्ट ने भी कहा कि दोनों पक्षों में समझौता संभव नहीं है। फिर अदालत ने बहस की प्रक्रिया शुरु की और 9 नवम्बर 2019 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। तीन गुंबदों वाली इमारत हिंदू पक्ष को दी गई। कोर्ट के आदेश के बाद श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया गया।
ये भी पढें-राम मंदिर के लिए कहां से क्या पहुंच रहा? ससुराल और ननिहाल से आ रहें क्या उपहार...