भारतीय जनता पार्टी ने विपक्षी दलों के बड़े नेताओं को उनके क्षेत्रों में घेरने की रणनीति को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है। इसी रणनीति के तहत पार्टी रायबरेली में सोनिया गांधी के खिलाफ आगामी लोकसभा चुनाव में कुमार विश्वास को मैदान में उतार सकती है। कुमार आप में अरविंद केजरीवाल से नाराज चल रहे हैं और कुछ समय से उनकी भाजपा से नजदीकियां भी बढ़ी हैं। असल में भाजपा के रणनीतिकारों की योजना के मुताबिक राज्य के मुख्य विपक्षी दलों के खिलाफ बड़े चेहरों को उतारने की है। ताकि लोकसभा चुनाव में बड़े नेता अपने चुनाव क्षेत्रों से बाहर न निकल पाए।
-लोकसभा चुनाव में बड़े नेताओं को उनके क्षेत्र में घेरने की रणनीति पर काम कर रही भाजपा
भारतीय जनता पार्टी ने विपक्षी दलों के बड़े नेताओं को उनके क्षेत्रों में घेरने की रणनीति को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है। इसी रणनीति के तहत पार्टी रायबरेली में सोनिया गांधी के खिलाफ आगामी लोकसभा चुनाव में कुमार विश्वास को मैदान में उतार सकती है। कुमार आप में अरविंद केजरीवाल से नाराज चल रहे हैं और कुछ समय से उनकी भाजपा से नजदीकियां भी बढ़ी हैं।
असल में भाजपा के रणनीतिकारों की योजना के मुताबिक राज्य के मुख्य विपक्षी दलों के खिलाफ बड़े चेहरों को उतारने की है। ताकि लोकसभा चुनाव में बड़े नेता अपने चुनाव क्षेत्रों से बाहर न निकल पाए। इससे एक तरफ उन्हें अपनी सीट पर टक्कर मिलेगी साथ ही वह अन्य प्रत्याशियों के क्षेत्रों पर फोकस नहीं कर पाएंगे। कुमार विश्वास अमेठी में आप के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। कुमार विश्वास को लेकर पार्टी नेताओं का कहना है कि वह अरसे से पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के संपर्क में हैं और जल्द ही उन्हें जल्द ही भाजपा का सदस्य बनाया जा सकता है।
विश्वास फिलहाल आम आदमी पार्टी में हैं, लेकिन पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल से उनकी अदावत जगजाहिर है। वह अकसर केजरीवाल के खिलाफ मोर्चे खोलते रहते हैं। भाजपा का रायबरेली से विश्वास को लड़ाने का मकसद रायबरेली के साथ ही अमेठी सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को घेरना भी है। पिछले पांच सालों में विश्वास की लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ है और वह खुलेतौर पर अपनी पार्टी के खिलाफ भी बोलते रहते हैं। लोकसभा चुनाव में विश्वास अमेठी से आप के प्रत्याशी थे और उन्हें 25 हजार 527 वोट मिले थे और वह चौथे स्थान पर रहे। थे। जबकि दूसरे नंबर पर रहीं स्मृति ईरानी को 3 लाख 748 वोट मिले थे।
राहुल गांधी को इस चुनाव में 4 लाख 8 हजार 651 वोट मिले थे। अगर दोनों के वोटों को जोड़ दिया जाए तो ये राहुल गांधी को मिले वोट के बराबर ही होते हैं। रायबरेली में ब्राह्मण और ओबीसी कुर्मी पटेल की संख्या लगभग बराबर है। जो किसी को भी जिताने में निर्णायक भी हैं। विश्वास ब्राह्मण हैं। लिहाजा विश्वास के जरिए ब्राह्मण वोट बैंक को साधना भाजपा के लिए आसान होगा। जबकि कुछ महीने पहले अमेठी के दिग्गज कांग्रेसी नेता दिनेश सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया था। सिंह ग्रामीण इलाके में लोगों के बीच लोकप्रिय हैं।
लिहाजा सोनिया गांधी को टक्कर देना आसान हो गया है। हालांकि सोनिया गांधी अपनी सेहत के चलते रायबरेली ज्यादा नहीं आ पाती हैं। पिछले दो साल के दौरान सोनिया महज दो बार ही रायबरेली के दौरे पर गयी हैं। यहां तक कि यूपी के विधानसभा चुनाव के दौरान भी सोनिया ने रायबरेली में प्रचार नहीं किया था। बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को गांधी परिवार के गढ़ रायबरेली में पहली रैली करने जा रहे हैं। इसे एक तरह से भाजपा की तरफ से कांग्रेसी गढ़ में चुनावी शंखनाद कहा जा सकता है। मोदी यहां रेल कोच फैक्ट्री से आधुनिक रेलकोचों को विभिन्न जगहों के लिए रवाना करेंगे।
जबकि इससे पहले वह प्रयागराज भी जाएंगे। असल में तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली जीत को लेकर भाजपा ने अपनी रणनीति को तेजी से लागू करना शुरू कर दिया है। क्योंकि पहले भाजपा ये मानकर चल रही थी कि तीन राज्यों में उसका प्रदर्शन अच्छा होगा और वह सरकार बनाएगी। जबकि परिणाम उसकी अपेक्षा से उलट थे। भाजपा ने रायबरेली के साथ ही अमेठी सीट पर भी अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू दिया है। रायबरेली में स्मृति ईरानी के चुनाव लड़ने की संभावना है और वह काफी अरसे से वहां पर सक्रिय भी हैं। ईरानी हर दूसरे-तीसरे महीने अमेठी आती रहती हैं।