बस्तर और महाराष्ट्र क्षेत्र में माओवादियों का नेटवर्क फैलाने का कर रहे थे काम। गढ़चिरौली हमले में भी थी तलाश।
महाराष्ट्र पुलिस ने दो बड़े माओवादी कमांडरों को गिरफ्तार किया है। दोनों माओवादियों का बड़ा नेटवर्क चला रहे थे और सुरक्षा बलों पर कई बड़े हमलों की साजिश में शामिल थे। दोनों हैदराबाद से माओवादी कमांडर के तौर पर काम कर रहे थे।
सूत्रों के अनुसार, गिरफ्तार किए गए माओवादी कमांडरों की पहचान नर्मदा उर्फ सुजाताक्का और उसके पति किरण कुमार उर्फ किरण दादा के तौर पर हुई है।
दोनों पति-पत्नी बस्तर और महाराष्ट्र क्षेत्र में माओवादियों का नेटवर्क फैलाने का काम कर रहे थे। सूत्रों के अनुसार, दोनों ने बड़ी संख्या में युवाओं की माओवादी संगठनों में भर्ती की। किरण और उसके पति को साल 2006 में दक्षिणी बस्तर की डिवीजन कमेटी में सेक्रेटरी बनाकर भेजा गया। उन्हें आदिवासियों की भर्ती में अहम भूमिक दी गई। इन दोनों की गिरफ्तारी नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली में हुए उस हमले के सिलसिले में हुई है, जिसमें एक आईईडी धमाके में 16 कमांडो की जान चली गई थी। इस संबंध में दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।
दोनों पति-पत्नी 52 मामलों में वांछित थे और उन पर 25 लाख रुपये का ईनाम था। नर्मदा 20 साल के गुमनाम जगह पर छिपी हुई थी। वह माओवादियों की गुरिल्ला कमांडर थी। वह यह भी तय करती थी कि माओवादियों के कैडर में से कौन जमीन पर काम करेगा और कौन भूमिगत रहेगा।
बताया जाता है कि वह सुरक्षा बलों के खिलाफ सभी ऑपरेशन की अगुवाई कर रही थी। वह छत्तीसगढ़, झारखंड, गढ़चिरौली समेत सभी राज्यों में नक्सली कमांडरों से लगातार मिलती रहती थी। सुजाताक्का सुकमा, दंतेवाड़ा और गढ़चिरौली में सुरक्षा बलों पर हुए जानलेवा हमले में लिप्त थी। उसी ने इस साल भाजपा विधायक भीमा मडावी पर हुए नक्सली हमले की साजिश रची थी। उसका नाम दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएन साईबाबा के खिलाफ पुलिस द्वारा किए गए केस में भी आया है। वह पुणे पुलिस की ओर अर्बन नक्सल के खिलाफ दर्ज किए गए केस में शामिल नक्सलियों के साथ भी मिलकर काम कर रही थी।
वहीं दूसरी तरफ उसका पति किरण कुमार 1999 से गुपचुप तरीके से काम कर रहा था। उसने कई बार राज्य स्तरीय कमेटी की अगुवाई की। वह माओवादियो की पत्रिका प्रभात औ दूसरी नक्सली साहित्य का संपादक भी रहा है। वहीं सुजाताक्का पिछले कुछ साल से बीमार बताई जाती है। वह कैंसर से पीड़ित है और जंगलों में उसे उपचार नहीं मिल पा रहा था।