मायावती ने लोकसभा में बनाया रिकार्ड, एक साल में बदले पांच नेता

By Team MyNation  |  First Published Jan 26, 2020, 8:14 AM IST

लोकसभा चुनाव में बसपा को मुस्लिमों ने काफी संख्या में वोट दिया और उसके तीन मुस्लिम सांसद भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे। जिसके बाद मायावती को लगा कि मुस्लिमों के बल पर वह राज्य की सत्ता पर काबिज हो सकती है। लिहाजा उसने कुछ समय पहले ही लोकसभा में पार्टी का नेता दानिश अली को नियुक्त किया। दानिश अली अमरोहा से लोकसभा सांसद हैं और पहले जनता दल सेकुलर के महासचिव हुआ करते थे।

नई दिल्ली। पिछले साल लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में दस सीट जीतकर सबको चौंकाने वाली बहुजन समाज पार्टी ने अभी से दो साल बाद उत्तर प्रदेश में होने विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। बसपा प्रमुख मायावती को उम्मीद है कि सोशल इंजीनियरिंग के जरिए वह राज्य की सत्ता पर काबिज हो सकती है। लिहाजा पार्टी ने 'ब्राह्मणों को लुभाने के लिए अंबेडरनगर के सांसद को लोकसभा में दल का नेता रितेश पांडे को बनाकर एक इतिहास भी बना दिया है। क्योंकि मायावती महज एक साल में लोकसभा में चार बार पार्टी का नेता बदला है।

लोकसभा चुनाव में बसपा को मुस्लिमों ने काफी संख्या में वोट दिया और उसके तीन मुस्लिम सांसद भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे। जिसके बाद मायावती को लगा कि मुस्लिमों के बल पर वह राज्य की सत्ता पर काबिज हो सकती है। लिहाजा उसने कुछ समय पहले ही लोकसभा में पार्टी का नेता दानिश अली को नियुक्त किया। दानिश अली अमरोहा से लोकसभा सांसद हैं और पहले जनता दल सेकुलर के महासचिव हुआ करते थे।

दानिश अली को लोकसभा में नेता का पद संभाले कुछ ज्यादा समय नहीं हुआ था कि अब मायावती ने दानिश अली के स्थान पर रितेश पांडे को लोकसभा में पार्टी का नेता नियुक्त किया है। असल में पार्टी को लग रहा है कि वह एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग के जरिए राज्य की सत्ता पर काबिज हो सकती है। लिहाजा वह राज्य में ब्राह्मण कार्ड खेलना चाहती है। वहीं मुस्लिमों को रिझाने के लिए पार्टी ने उत्तर प्रदेश का दायित्व मुनकाद अली को सौंपा है।

फिलहाल बसपा की नजर उत्‍तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर है। वह एक बार फिर से दलित-ब्राह्मण और मुस्लिम समीकरण  के जरिए सत्ता पर वापसी करना चाहती है। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव एक भी सीट नहीं जीती थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में दस सीटें जीतकर उसने सभी दलों को चौंका दिया था। हालांकि लोकसभा चुनाव के लिए बसपा ने सपा के साथ चुनाव गठबंधन किया था। लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया था।
 

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