ब्रिटेन में मंकी पॉक्स के वायरस का पाया जाना दुनिया भर के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता का कारण है। आशंका है कि यातायात की तेज रफ्तार सुविधाओं के चलते इसे फैलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। ब्रिटेन से पहले पिछले साल नाइजीरिया में इस वायरस के फैलने की खबर आ चुकी है।
आज से कोई तीन दशक पहले तक स्मॉल पॉक्स यानी चेचक एक बड़ी महामारी मानी जाती थी। लेकिन इसके टीके की खोज कर ली गई, जिसके बाद कड़ी मशक्कत से चेचक की बीमारी पर काबू पाया गया।
लेकिन दुनिया पर अगले पॉक्स का खतरा मंडराने लगा है। वह है मंकी पॉक्स का। मंकी पॉक्स दरअसल स्माल पॉक्स वायरस का ही करीबी रिश्तेदार है। ब्रिटेन में इसके तीन मामले सामने आए हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर चिंता फैल गई है।
वैज्ञानिकों का कहना है, कि अफ्रीका के जंगली जानवरों से इनसानों में फैले मंकी पॉक्स का वायरस शुरुआत में तो स्थानीय स्तर पर ही फैलता है लेकिन इस दौरान इनसानों में पाए जाने वाले दूसरे वायरस और उनके डीएनए के संपर्क में आने के बाद इस वायरस के आनुवांशिक संरचना में ऐसे बदलाव आएंगे कि यह बहुत तेजी से फैलेगा और खांसी या छींक के जरिए भी इसका संक्रमण होने लगेगा।
ब्रिटेन में मंकी पॉक्स के वायरस का पाया जाना दुनिया भर के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता का कारण है। क्योंकि आशंका है कि यातायात की तेज रफ्तार सुविधाओं के विस्तार के मद्देनजर इसे फैलने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगेगा। ब्रिटेन से पहले पिछले साल नाइजीरिया में इस वायरस के फैलने की खबर आ चुकी है।
सौ साल पहले दुनिया की आबादी डेढ़ अरब थी जो अब सात अरब हो चुकी है। इसके अलावा 100 साल पहले के मुकाबले आज घनी आबादी वाले शहरों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। यही नहीं, हवाई यात्रा के विस्तार के कारण भी लोगों के मिलने-जुलने की बारंबारता बढ़ी है। इन वजहों से इस वायरस से प्रभावित लोगों के दूसरों के संपर्क में आने की संभावना बढ़ गई है।
मंकी पॉक्स के बारे में सबसे पहले 1950 के दशक में पता चला था। अफ्रीका में डॉक्टरों ने कुछ मरीजों में स्माल पॉक्स जैसे लक्षण देखे लेकिन इसका संक्रमण उतना खतरनाक नहीं था। मौजूदा समय में नाइजीरिया मंकी पॉक्स से सबसे ज्यादा प्रभावित है। पिछले साल वहां डेढ़ सौ से ज्यादा केस सामने आए, जिनमें से सात लोगों की मौत हो गई।
मंकी पॉक्स से वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ इतने ज्यादा चिंतित हैं कि उन्हें 100 साल पहले फैले स्पेनिश फ्लू की भयावह यादें सताने लगी हैं। इस फ्लू से 1918 में 50 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे, जिसमें से पांच करोड़ लोगों की जान चली गई थी।