इलेक्ट्रोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित, चुनाव आयोग ने कहा, चंदा देने वालों के नाम गुप्त न रहें

By Gopal K  |  First Published Apr 11, 2019, 2:05 PM IST

12 अप्रैल को फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग से पूछा, क्या वह अपना रुख बदल रहा है। आयोग ने कोर्ट में कहा, लोगों को राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है। 

राजनीतिक दलों को चंदे के लिए जारी चुनावी बाकी वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट इस मामले में 12 अप्रैल को फैसला सुनाएगा। मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने यू-टर्न लेते हुए कहा कि वो चुनावी बॉन्ड के खिलाफ नहीं है। उनका विरोध चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखने को लेकर है। 

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को याद दिलाया कि उसने केंद्र को लिखे अपने पत्र में चुनावी बॉन्ड को प्रतिगामी कदम करार दिया था। कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा था कि क्या आयोग अपना रुख बदल रहा है। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इलेक्टोरल बॉन्ड में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन दानकर्ता के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए क्योंकि लोगों और चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है। 

चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि मतदान के अधिकार का मतलब  एक सूचित विकल्प बनाना है। अपने उम्मीदवार को जानना केवल आधा अभ्यास है। लोगों को उन लोगों के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए जो राजनीतिक दलों को चंदा देते हैं। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा है कि चुनावी बॉन्ड की योजना राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त धन और दान में पारदर्शिता को बढ़ावा देती है। केंद्र सरकार की ओर से यह हलफनामा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी व अन्य द्वारा दायर की गई याचिका के जवाब में दाखिल किया है। 

दो जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड के लिए योजना को अधिसूचित किया था जो कि एक भारतीय नागरिक या भारत मे निगमित निकाय द्वारा खरीदे जा सकते हैं। ये बॉन्ड एक अधिकृत बैंक से ही खरीदे जा सकते हैं और राजनीतिक पार्टी को ही जारी किए जा सकते हैं। पार्टी 15 दिनों के भीत्तर बॉन्ड को भुना सकती है। दाता की पहचान केवल उसी बैंक को होगी जिसे गुमनाम रखा जाएगा। केंद्र सरकार का कहना है कि यह योजना वैध केवाईसी और ऑडिट ट्रेल के साथ बॉन्ड प्राप्त करने की एक पारदर्शी प्रणाली बनाने की परिकल्पना करती है। जो लोग इन बॉन्ड को खरीदते हैं, वे बैलेंस शीट में किए गए ऐसे दान के बारे में बताएंगे। 

चुनावी बॉन्ड योजना दानकर्ताओं को बैंकिंग मार्ग से दान करने के लिए प्रेरित करेगी। यह पारदर्शिता, जवाबदेही और चुनावी सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम सुनिश्चित करेगा। योजना के बारे में बताते हुए केंद्र सरकार का कहना है कि ये बॉन्ड केवल भारतीय स्टेट बैंक से खरीदे जा सकते हैं क्योंकि इसमें खरीदार केवाईसी मानदंडों का अनुपालन करता है। बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों के दौरान केवल 10 दिनों के लिए खरीद के लिए उपलब्ध होंगे। उन्हें 1000 रुपये, 10000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये या एक करोड़ रुपये के गुणको में खरीद जा सकता है। बॉन्ड दाता का नाम बताया नहीं जाएगा। 

बॉन्ड के अंकित मूल्य को आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13 ए के तहत आयकर से छूट के उद्देश्य से योग्य राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त स्वैच्छिक योगदान के माध्यम से आय के रूप में गिना जाएगा। दरअसल पिछले साल 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को चंदे के लिए जारी चुनावी बॉन्ड की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को अपना जवाब दाखिल करने को कहा था। कोर्ट ने यह जवाब एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद मांगा था। 

 वित्त अधिनियम, 2017 को एक मनी बिल के रूप में लागू किया गया था। इसके तहत चुनावी फंडिंग के उद्देश्य से किसी भी अनुसूचित बैंक द्वारा जारी किए जाने वाले चुनावी बॉन्ड की प्रणाली शुरू की गई है। अधिनियम में राजनीतिक चंदे के लिए कंपनी के औसत 3 साल के शुद्ध लाभ की 7.5 प्रतिशत की पिछली सीमा को भी हटा दिया है।

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