तिरुपति जाकर पीएम मोदी ईश्वर की आराधना के साथ दक्षिण की जनता को भी लुभाएंगे

By Anindya Banerjee  |  First Published Jun 6, 2019, 5:26 PM IST

दो दिन बाद यानी 9 जून के पीएम नरेन्द्र मोदी दक्षिण भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थल तिरुपति की यात्रा कर रहे हैं। उनकी इस यात्रा का उद्देश्य सिर्फ ईश्वर की आराधना ही नहीं बल्कि दक्षिण की जनता के बीच बीजेपी को स्थान दिलाना भी है। क्योंकि बीजेपी अब दक्षिण में कर्नाटक से आगे पूरे विंध्य क्षेत्र में खुद को मजबूत बनाने की कवायद में जुटी है। 

नई दिल्ली: बीजेपी महासचिव और पत्रकारों के बीच हाल ही में हुई एक बातचीत में, एक पत्रकार ने इस बात को व्यंग्य तौर पर लेते हुए मुस्कुरा दिया कि मोदी सरकार अगले पांच वर्षों में दक्षिण भारत के राज्यों में अपनी सरकार बना लेगी, उसकी मुस्कराहट को देखते हुए बीजेपी के सजग नेता ने जवाब दिया कि "आप ऐसे ही मुस्कुराते थे जब हम दावा करते थे कि हम त्रिपुरा जीतेंगे"।

नरेंद्र मोदी आगामी 9 जून को भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करेंगे, लेकिन इस दर्शन के दौरान वो सिर्फ भगवान वेंकटेश्वर से ही प्राथना नहीं करेंगे बल्कि इसी बहाने दक्षिण भारतीय मतदाताओं पर भी प्रभाव छोड़ेंगे। ये दौरा केवल धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक भी होगा।

भारतीय जनता पार्टी ने कर्नाटक में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है और अब वो इससे आगे के राज्यों की के लिए अपनी रणनीति तय करेगी। इसी मिशन की शुरुआत इस दौरे से शुरू होगी। हालांकि केरल और तमिलनाडु जहाँ लोकसभा चुनावों में बीजेपी का खाता भी नहीं खुला वहाँ इतने दूर की सोचना फ़िलहाल एक सपने जैसा है। लेकिन भाजपा इसे लेकर गंभीर है।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 9 जून को तिरुपति मंदिर का दौरा कर रहे हैं। और यह रणनीति अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा की 'लुक साउथ' रणनीति का हिस्सा है। 23 मई को अपनी विशाल जीत के बाद, वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन के बाद नरेंद्र मोदी की यह दूसरी मंदिर यात्रा होगी। 

तिरुपति ही क्यों?

तिरुपति न केवल पूरे दक्षिण भारत का सबसे पूजनीय तीर्थस्थल है, बल्कि एक वर्ष में 3.5 करोड़ श्रद्धालु यहाँ दर्शन को आते है। भगवान श्री वेंकटेश्वर दक्षिण भारत के सभी राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु के लिए समान रूप से मान्यता रखते हैं। इसीलिए सभी राज्यों के लोगों के बीच यह स्थान आस्था का प्रतीक है और लोगों को आपस में जोड़े रखता है। अन्यथा कई मुद्दों को लेकर इन सभी राज्यों के बीच मतभेद चलता रहता है। जैसे आंध्र प्रदेश अभी भी मानता है कि तेलंगाना राज्य का बनना उसके साथ अन्याय था। तमिलनाडु और कर्नाटक कावेरी के पानी को लेकर सदियों पुरानी लड़ाई लड़ रहे हैं। हालांकि भगवान वेंकटेश्वर से प्रार्थना करते हुए मोदी दक्षिण में बीजेपी के वोटर्स को एकजुट होने की अपील कर सकते हैं।

कर्नाटक से आगे बीजेपी

भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में 28 में से 25 सीटों पर जीत हासिल करके एक  शानदार प्रदर्शन किया लेकिन उम्मीद से परे अन्य दक्षिणी राज्यों में उसका प्रदर्शन काफी खराब रहा। दक्षिणी राज्य-कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और केरल में लोकसभा की 129 सीटें हैं। पुद्दुचेरी और लक्षदीप की सीट को मिलाकर 131 सीटें होती हैं। क्योंकि वेल्लोर में चुनाव रद्द कर दिया गया था, इसलिए इस बार कुल मिलाकर दक्षिण भारत में 130 सीटों पर चुनाव हुआ था।

बीजेपी को इसमें से केवल 30 सीटों पर जीत हासिल हुई जिसमें 25 सीटें सिर्फ कर्नाटक से हैं। बीजेपी के लिए कर्नाटक को छोड़ दक्षिण भारत के बाकि राज्यों में 'मिशन साउथ' को पूरा करना एक कठिन काम होगा।

सूत्रों का कहना है कि जिन दो राज्यों में बीजेपी तत्कालीन नज़र होगी, वह हैं तेलंगाना और केरल। भाजपा को इस बार तेलंगाना में 19.5 प्रतिशत का वोट शेयर मिला है। भाजपा के एक सूत्र का कहना है कि पार्टी का तात्कालिक लक्ष्य इन राज्यों में कांग्रेस पीछे करना है। जिसे लोकसभा चुनाव में 29.5 प्रतिशत वोट शेयर मिला है। 

भाजपा का दूसरा लक्ष्य केरल होगा जहां पर बीजेपी के लिए वोट शेयर में ना के बराबर वृद्धि हुई है। जहाँ भाजपा का वोट शेयर 2014 में 10.45 प्रतिशत था जो इस बार बढ़कर 2019 में 12.93 प्रतिशत हो गया। दोनों राज्यों में बीजेपी का फोकस हिंदू वोट होगा और उसके लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है कि खुद पीएम तिरुपति में प्रार्थना करें?

हालांकि बीजेपी का मिशन साउथ बहुत महत्वाकांक्षी है, लेकिन त्रिपुरा में लेफ्ट की दीवार को तोड़ने या ममता के बंगाल में 18 सीटें जीतना उसके पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए एक मुश्किल लक्ष्य था। हालांकि बीजेपी आधिकारिक रूप से दवा कर रही है कि पीएम की तिरुपति यात्रा उनकी 'आस्था' से जुड़ी है और साथ ही साथ उनकी व्यक्तिगत पसंद है और इसे राजनीति से जोड़कर ना देखा जाए।
 

click me!