मजदूर और उनसे संबंधित मुद्दों पर वामपंथी दल अपना एकाधिकार समझते हैं। लेकिन मोदी सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया है। जिससे देश के सभी मजदूरों का हित सुरक्षित हो गया है। उनको मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी पूरे देश में एक समान हो गई है। यह मजदूरों के हित के लिए मोदी सरकार का सबसे बड़ा कदम है।
नई दिल्ली: देश भर के श्रमिकों का न्यूनतम वेतन और मजदूरी में स्त्री पुरुष के लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने वाला मजदूरी संहिता विधेयक 2019 राज्यसभा में पास हो गया। बिल के पक्ष में 85 और विपक्ष में आठ वोट डाले गए। इस बिल में चार श्रम कानूनों को एक साथ जोड़कर एक नया कानून बनाया गया है। जिसमें भुगतान और बोनस संबंधी मामले निपटाने की बात कही गई है।
इस नए बिल की वजह से मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा और इसके साथ ही कारोबारी माहौल भी और सुगम हो जाएगा। श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने कहा इसका लाभ देश के 50 करोड़ श्रमिकों को होगा। इस बिल को लोकसभा पहले ही 30 जुलाई को मंजूरी दे चुकी है।
राज्यसभा में मजदूरी संहिता विधेयक को चर्चा के लिए पेश करते हुए केंद्रीय मंत्री गंगवार ने कहा, हर श्रमिक को सम्माजनक जिंदगी जीने का अधिकार है। सरकार ने पिछली लोकसभा के दौरान प्रवर समिति की ओर से दी गईं 24 में से 17 सिफारिशों को बिल में शामिल किया है। उन्होंने बताया कि इस मामले में राज्यों के सर्वाधिकार सुरक्षित रहेंगे और केंद्र का उसमें कोई दखल नहीं रहेगा।
इस बिल के मुताबिक तीन पक्षों वाली समिति न्यूनतम वेतन तय करेगी जिसमें ट्रेड यूनियन, श्रमिक और राज्य सरकार के प्रतिनिधि शामिल रहेंगे। इस वेतनमान को पूरे देश में लागू किया जाएगा जो हर श्रमिक का अधिकार होगा। इसमें मासिक, साप्ताहिक और दैनिक आधार पर वेतन भुगतान के मामलों को भी निपटाने में मदद मिलेगी। बिल यह भी सुनिश्चित करेगा कि श्रमिकों के बीच लैंगिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाए।
श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने बिल पर चर्चा के दौरान सदन में जानकारी दी है कि इस बिल के तहत वेतन को नए रूप से परिभाषित किया जाएगा। अभी अलग अलग स्तर पर वेतन की 12 परिभाषाएं हैं।
उधर कांग्रेस ने इस चर्चा के दौरान इसका यह कहते हुए विरोध किया कि 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मौजूदा और पिछली सरकारें अभी तक सिर्फ न्यूनतम वेतन तय करने में जुटी हैं बल्कि उचित वेतन की कोई बात नहीं कर रहा है'।