तेलंगाना में जल्दी चुनाव राहुल गांधी को क्यों पड़ेगा भारी, जानिए चार कारण

By Anindya Banerjee  |  First Published Oct 6, 2018, 7:50 PM IST

कांग्रेस के संसाधन सीमित हो रहे हैं। ऐसे में चार राज्यों में चुनाव की कुछ ऐसी तारीखों की घोषणा होने से ज्यादा बुरा इस पार्टी के लिए कुछ हो ही नहीं सकता था।

तेलंगाना में साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 119 सीटों में से केवल 13 मिली थीं, जबकि के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (टीआरएस) ने 90 सीटों के साथ सत्ता हासिल की थी। लेकिन केसीआर के खिलाफ भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोप लगने के बाद कांग्रेस को कुछ बेहतर होने की उम्मीद थी। 
लेकिन जैसा कि देखा जा रहा है, कि केसीआर ने 6 सितंबर को असेंबली को भंग कर दिया था और आज  चुनाव आयोग ने 7 दिसंबर को चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी है, तो कांग्रेस परेशानी में पड़ती दिख रही है। 
कांग्रेस नेता पी.सी.चाको ने माय नेशन से कहा, "हम किसी भी चुनाव से कभी नहीं डरते हैं। हम हमेशा तैयार रहते हैं। "लेकिन उन्होंने समय से पहले चुनाव होने पर अपनी नाराजगी को छिपा भी नहीं सके। उन्होंने कहा:   "यह अजीब बात है कि टीआरएस ने इतनी जल्दी असेंबली को भंग कर दिया। हालांकि सरकार के पास ऐसा करने की शक्ति है, लेकिन इसका उपयोग केवल केवल असामान्य परिस्थितियों में होता है। "
1. यह केसीआर बनाम दूसरे हो गया है
2019 में जब लोकसभा के चुनाव के समय विधानसभा चुनाव की घोषणा होती, तो स्थानीय स्तर की जंग  नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच लड़ाई से प्रभावित होती। जिससे केसीआर को इसका नुकसान हो सकता था। 

लेकिन अब तो केसीआर से सीधा टकराव होगा, जिनकी छवि स्पष्ट तौर पर आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को अलग कराने वाले की है। उनकी भूमिपुत्र की छवि को टक्कर देने वाला कांग्रेस के कमजोर स्थानीय नेतृत्व के पास उस स्तर का कोई नेता नहीं है। दिल्ली से टपकाए गए कांग्रेसियों की छवि बाहरी नेताओं की है। 

सबसे अहम बात तो यह है, कि कांग्रेस का पैसा और संसाधन बाकी चार चुनावी राज्यों मद्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में बिखर जाएगा, वहीं टीआरएस को सिर्फ तेलंगाना पर ही ध्यान केन्द्रित करना है। 

2. अच्छे मॉनसून की वजह से प्रसन्न किसान 
ऐसा नहीं है, कि केसीआर अचानक एक दिन जग गए, और विधानसभा को भंग कर दिया। अपने खिलाफ थोड़े बहुत असंतोष को खत्म करने के लिए उन्होंने सावधानी से कदम उठाए हैं। उनके कुछ बड़े कदमों में से एक किसान कल्याण योजना रही है। जिसकी केसीआर ने न केवल घोषणा की, बल्कि रायथु बंधु योजना को सफलतापूर्वक लागू भी किया। यहां तक कि उनके आलोचक भी इसे स्वीकार करते हैं। 

इस योजना के तहत, दो किस्तों में 58 लाख किसानों को 8,000 रुपये दिए गए हैं। इस योजना ने बड़े पैमाने पर उनका ग्रामीण जनाधार तैयार किया है। भले ही यह राशि कम प्रतीत हो सकती है, लेकिन किसानों द्वारा इसकी खूब सराहना की जा रही है, जिसने केसीआर की किसान समर्थक छवि तैयार कर दी है।


इसके अलावा, इस बार राज्य में अच्छे मॉनसून के चलते जबरदस्त पैदावार हुई है। कुल मिलाकर किसानों की नाराजगी शून्य है। कांग्रेस के पास केसीआर के खिलाफ कोई हथियार नहीं है, अगर चुनाव में अगले साल गर्मियों में होते तो शायद कांग्रेस कुछ फायदा उठा पाती, क्योंकि उस मौसम में किसान परेशान रहते हैं। 

3. महिला परियोजनाओं का वक्त
पिछले साल, मुख्यमंत्री ने 'केसीआर किट' की घोषणा की। एक साधारण योजना जिसके तहत गर्भवती महिलाओं को 12,000 रुपये की वित्तीय सहायता दी जाने लगी। जिसे बड़ी सफलता मिली। साल 2017 के मध्य में,  जब केसीआर ने इसकी घोषणा की, तो कई लोगों ने इसकी उपयोगिता पर सवाल उठाया। लेकिन एक साल के अंदर यानी 2018 के मध्य तक सरकारी अस्पताल में होने वाले बच्चों की सुरक्षित डिलीवरी के साथ इसके अच्छे परिणाम सामने आने लगे।

4. चुनावी तारीखों का दोष 
कांग्रेस के के सामने अब कई दुविधाएं हैं, जिनसे उसे निपटना है। क्या उन्हें मध्य प्रदेश पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, जहां वह काबिज होने के लिए बेचैन है। या फिर मिजोरम का अपना किला बचाएं, जहां उसी तारीख में चुनाव हो रहे हैं। उत्तर-पूर्व में मिजोरम कांग्रेस का आखिरी बचा हुआ गढ़ है। या फिर राजस्थान में ताकत झोंकना, जहां उन्हें संभावनाएं दिखती हैं, या फिर तेलंगाना का हारी हुई बाजी लड़ना। दोनों जगह 7 दिसंबर को चुनाव होने वाले हैं। 

सिमटते हुए संसाधनों वाली एक पार्टी के लिए चार राज्यों में चुनाव की ऐसी तारीखों की घोषणा से ज्यादा बुरा कुछ हो ही नहीं सकता था। 

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