कांग्रेस की इस जीत में एक रिटायर नौकरशाह ने बड़ी भूमिका निभाई है। जबकि रमन सिंह की राज्य की सत्ता पर 15 साल से काबिज सरकार को डुबोने में भी एक नौकरशाह ने भी बड़ी भूमिका निभाई। इन दोनों नौकरशाहों की खास बात ये है कि दोनों अलग अलग मुख्यमंत्रियों के प्रमुख सचिव रह चुके हैं और ‘सुपर सीएम’ के नाम से मशहूर थे।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बन रही है। मुख्यमंत्री के नाम पर अभी फैसला नहीं हुआ है। लेकिन कांग्रेस की इस जीत में एक रिटायर नौकरशाह ने बड़ी भूमिका निभाई है। जबकि रमन सिंह की राज्य की सत्ता पर 15 साल से काबिज सरकार को डुबोने में भी एक नौकरशाह ने भी बड़ी भूमिका निभाई। इन दोनों नौकरशाहों की खास बात ये है कि दोनों अलग अलग मुख्यमंत्रियों के प्रमुख सचिव रह चुके हैं और ‘सुपर सीएम’ के नाम से मशहूर थे।
सबसे पहले बात करते हैं कि कांग्रेस की। कांग्रेस की जीत का श्रेय जाहिर तौर पर राज्य के कांग्रेसी नेताओं को दिया जा रहा है। लेकिन रणनीति बनाने वाले राज्य के प्रभारी पीएल पुनिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। राजनैतिक तौर पर यूपी से ताल्लुक रखने वाले पुनिया बाराबंकी से कांग्रेस के सांसद रह चुके हैं। वह यूपी कैडर के 1971 बैच आईएएस थे और रिटायर होने के बाद उन्होंने बसपा के बजाय कांग्रेस का दामन थाम कर सबका चौंका दिया था। पुनिया मायावती के प्रमुख सचिव भी रह चुके हैं और राज्य के मुख्य सचिव भी। जब पुनिया राज्य में मायावती के प्रमुख सचिव थे तो उन्हें सुपर सीएम कहा जाता था। उनकी इजाजत के बगैर कोई बड़ा फैसला नहीं होता था।
पीएल पुनिया राज्यसभा के सांसद होने के साथ ही अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं। पुनिया को कांग्रेस ने राज्य में कांग्रेस का प्रभारी बनाया था और उन्होंने स्थानीय मुद्दों को रमन सरकार के खिलाफ हथियार बनाया। पुनिया को महज चार महीने पहले ही छत्तीसगढ़ का प्रभार दिया गया था। उन्होंने संकटमोचक बनकर राज्य में कांग्रेस को सत्ता पर पहुंचाया। जब पुनिया को राज्य का प्रभार दिया गया था तब अजीत जोगी की नई राजनैतिक पार्टी बनी थी, जो पुराने कांग्रेस नेता थे और मौजूदा बड़े नेताओं से नाराज थे, वह जोगी के संपर्क में थे।
लिहाजा संगठन में बागियों को रोकना उनकी प्राथमिकताएं थी। बहरहाल संगठन खड़ा करने में पीएल पुनिया का प्रशासनिक अनुभव काम आया। जाहिर है जो भी राज्य में मुख्यमंत्री के पद पर काबिज होगा, उसे पुनिया के प्रशासनिक अनुभवों का फायदा जरूर मिलेगा।
वहीं दूसरी तरफ राज्य में रमन सरकार को डुबोने के लिए उनके प्रमुख सचिव अमन कुमार सिंह को बड़ा कारण माना जा रहा है। अमन कुमार सिंह सीएम रमन सिंह के प्रमुख सचिव के पद पर थे और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने से पहले ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। सिंह 1995 बैच के आईआरएस(कस्टम और एक्ससाइज) अफसर थे। रमन सिंह से निकटता के कारण वह राज्य में प्रतिनियुक्ति में गए और रमन सिंह के सचिव बने।
हालांकि बाद में उन्होंने आईआरएस की नौकरी छोड़ दी। इसके बाद उन्हें सीएम का प्रमुख सचिव नियुक्त किया गया। अमन कुमार सिंह के बारे में कहा जाता था कि उनका राज्य की सत्ता पर सीएम से भी ज्यादा दखल था। जिसके कारण राज्य के ज्यादातर नौकरशाह उनसे नाराज थे। आमतौर पर अपना प्रमुख सचिव नियुक्त करना सीएम का अधिकार होता है। लेकिन इस पद पर ज्यादातर आईएएस अफसर ही होते हैं। आईआरएस अफसर होने के बावजूद राज्य के नौकरशाहों खासतौर से आईएएस और आईपीएस को अमन कुमार सिंह से मिलने के लिए इंतजार करना पड़ता था। जिसको लेकर नौकरशाहों ने सीएम से भी शिकायत की थी, लेकिन उन्होंने कभी उनकी शिकायतों को तवज्जो भी नहीं दी।
इसके साथ ही अमन कुमार सिंह नीति निर्धारक भी थे और रमन सरकार की नीतियों को जनता तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी उनकी थी। अमन कुमार सिंह के पास सूचना और जनसंपर्क विभाग के प्रमुख सचिव थे। लेकिन वह राज्य सरकार की नीतियों को प्रसारित करने में विफल साबित हुए। राज्य की नौकरशाही रमन सिंह की सरकार जाने से ज्यादा अमन कुमार सिंह की विदाई से ज्यादा खुश हैं। ये भी कहा जा रहा है कि अमन कुमार सिंह कि विदाई के लिए राज्य के नौकरशाहों में मिठाई भी बांटी गयी हैं। अमन कुमार सिंह को राज्य का सुपर सीएम कहा जाता था। कुछ समाचार पत्रों में उन्हें देश के सबसे ताकतवार नौकरशाह का भी तमगा दिया गया है।