सीबीआई में शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार का मामला इन दिनों सुर्खियों में है। आरोप दो शीर्ष अधिकारियों के बीच है। इस संस्था के निदेशक आलोक वर्मा और स्पेशल डॉयरेक्टर राकेश अस्थाना सवालों के घेरे में हैं। दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है।
सीबीआई विवाद मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया निष्पक्ष जांच के लिए आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना दोनों का छुट्टी पर जाना जरूरी था। कोर्ट ने वकीलों को फटकार लगाते हुये कहा कि आप में से कोई सुनवाई योग्य नही है।
साथ ही मुख्य न्यायाधीश ने आलोक वर्मा द्वारा लिफाफे में दी गई रिपोर्ट लीक होने पर नाराजगी जाहिर की। मुख्य न्यायाधीश ने नाराज होकर वर्मा के वकील फली नरीमन को रिपोर्ट देकर पूछा ये जवाब बाहर कैसे लीक हुआ। वही फली नरीमन ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि रिपोर्ट लीक नही हुई है। मीडिया में वह रिपोर्ट छपी है जो आलोक वर्मा ने सीवीसी को अपना जवाब दिया था।
जिसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई 29 नवंबर तक के लिये टाल दिया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने इस मामले से संबंधित दायर अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्रीय सतर्कता आयोग की गोपनीय रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में आलोक वर्मा को देने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ आरोपों पर केंद्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट काफी विस्तृत है और इसके निष्कर्षो में कुछ ‘अनुकूल' और कुछ ‘बहुत ही प्रतिकूल' हैं जिनकी आयोग द्वारा आगे जांच करने की जरूरत है।
इससे पहले अदालत ने कहा था कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर सीवीसी रिपोर्ट में कई प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं। कुछ आरोपों पर आयोग ने जांच के लिए और वक्त भी मांगा था।
दूसरी ओर सीबीआई अधिकारी मनीष कुमार सिन्हा ने अपने तबादला नागपुर किए जाने के आदेश को रद्द करने की कोर्ट से अनुरोध किया है। अपनी याचिका में सीबीआई के डीआईजी एमके सिन्हा ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल पर सीबीआई के काम में दखल देने का आरोप लगाया है। सिन्हा ने यह भी दावा किया है कि अजित डोभाल ने सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच में हस्तक्षेप किया और यहां तक कि उन्होंने अस्थाना के आवास में की वाली तलाशी अभियान को भी रोकने के निर्देश दिए थे।
सीबीआई के दो शीर्ष अफसरों के रिश्वतखोरी विवाद में फंसने के बाद केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर को ज्वाइंट डायरेक्टर नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम प्रमुख नियुक्त कर दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा और अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद नागेश्वर राव पर नीतिगत फैसला लेने पर रोक लगा रखा है।
कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया था कि जब तक कोर्ट इस मामले में फैसला नही दे देता है तब तक नागेश्वर राव कोई भी नीतिगत फैसला नही करेंगे।
खुद को छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी से जांच करने को कहा था। आलोक वर्मा पर जांच ब्यूरो के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने आरोप लगाये थे जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में प्राथमिकी दर्ज की गयी है।
गौरतलब है कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने हैदराबाद के व्यापारी सतीश सना से 3 करोड़ रुपए की कथित रिश्वत लेने के आरोप में सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ केस दर्ज करवाया था। इसके बाद राकेश अस्थाना ने सीबीआई निदेशक पर ही इस मामले में आरोपी को बचाने के लिए 2 करोड़ रुपए रिश्वत लेने का आरोप लगाया था।
दोनों अफसरों के बीच की ये लड़ाई सार्वजनिक हो गई तो केंद्र सरकार ने इसमें दखल दिया और उन्हें छुट्टी पर भेज दिया। वहीं कई अफसरों का ट्रांसफर भी कर दिया गया है। जिसके बाद सीबीआई अधिकारी मनोज कुमार सिन्हा सहित कई अधिकारियों ने ट्रांसफर रद्द करने की सुप्रीम कोर्ट से मांग की है।