ट्विटर के पक्षपाती रवैये के खिलाफ दिल्ली की सड़कों पर उतरे लोग

आक्रोश, सलाह, सूचना और विचारों के 280 शब्दों वाला प्लेटफॉर्म सिर्फ यह तय करने के लिए नहीं हैं कि हम किस प्रकार से कम शब्दों में ऑनलाइन बातचीत करेंगे, बल्कि बातचीत के इस माध्यम असीमित ताकत और प्रभावित करने की क्षमता भी देता है। यही वजह है कि दुनिया भर के बड़े नीति निर्माताओं से लेकर आम लोगों ने भी इस प्लेटफॉर्म पर आना स्वीकार किया है।  जी हां, हम बात कर रहे हैं ट्विटर की। लेकिन अब इस पर एक खास तरह का राजनीतिक झुकाव रखने का आरोप लगाया जा रहा है। 

Twitteratis to take to streets to protest against biased twitter

ट्विटर जो कि मुक्त विचारों पर यकीन करने वाला माना जाता था उसपर अब विचारों को दबाने का आरोप लग रहा है। परिणामस्वरूप, यूथ फॉर सोशल मीडिया डेमोक्रेसी, जो कि मुख्य रूप से दक्षिणपंथी विचारों वाला संगठन है, उसने रविवार को ट्विटर के खिलाफ प्रदर्शन किया। 

संगठन द्वारा जारी की गई एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, "पिछले कुछ महीनों से ट्विटर और फेसबुक व्यवस्थित रूप से ऐसे लोगों की वैचारिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रहे हैं जो गैर-वामपंथी विचारधारा वाले सदस्यों के रुप में जाने जाते हैं। उनके हैंडल को निलंबित करके, उनकी पहुंच को प्रतिबंधित करने की कोशिश की जा रही है।" उनके ट्रेंड्स को ट्रेंड लिस्ट से हटाना भी उसमें से एक कदम है। 
हालांकि, वामपंथी विचारधारा वाले विचारकों और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के आक्रामक, अपमानजनक और धमकी भरे ट्वीट्स की अनदेखी कर दी जा रही है।"

ट्विटर, जो लगातार फेक न्यूज से निपटने के लिए एक मजबूत प्रणाली होने का दावा करता है, अब खुद उसपर चुनिंदा फेक न्यूज फैलाने का आरोप लग रहा है। 

‘यूथ फॉर सोशल मीडिया डेमोक्रेसी’ का आरोप है, कि "... ट्विटर हैंडल की चुनिंदा जांच प्रणाली ने कुछ प्रोपगैंडा चलाने वाले ट्विटर हैंडलों को बार-बार फेक न्यूज फैलाते हुए पकड़े जाने के बावजूद उन्हें वैधता प्रदान कर रखी है। यह ऐसे प्लेटफार्मों की विश्वसनीयता को कम करता है जो फेक न्यूज की चुनौती से निपटने का दावा करता है। 

इसलिए इस संगठन ने आज दिल्ली में साकेत से लाडो सराय तक ट्विटर इस्तेमालकर्ताओं का मौन विरोध करते हुए मार्च निकाला गया। यह पूछे जाने पर कि इसके लिए रविवार का दिन क्यों चुना गया, तो आयोजकों ने कहा कि वह कार्यदिवस के समय बड़े ट्रैफिक जाम का कारण नहीं बनना चाहते थे। 

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अंकुर सिंह जैसे प्रमुख ट्विटर उपयोगकर्ता जिनके खाते को हाल ही में भड़काऊ बताते हुए निलंबित कर दिया गया था, वह भी इस मार्च का हिस्सा हो सकते हैं। ट्विटर पर #BringBackAnkurSingh ट्रेंड करने और ट्विटर को भारी ऑनलाइन आलोचना के बाद 24 घंटे के भीतर अंकुर सिंह के निलंबित अकाउंट को सही करने का फैसला किया गया था। ट्विटर ने एक बयान जारी करके अंकुर से माफी भी मांगी थी।


ट्विटर पर सक्रिय विकास पांडे और अंकित जैन भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल रहेंगे। 

एक संयुक्त बयान जारी करके इस संगठन ने यह आरोप लगाया है कि "एक चुनावी वर्ष के दौरान इस तरह का राजनीतिक पूर्वाग्रह दिखाया जाना भारत में चुनावों को प्रभावित करने का एक प्रयास है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान के अधिकार का उल्लंघन करता है जो भारतीय लोकतंत्र का एक बुनियादी आधार है। बिना किसी पूर्वाग्रह के सभी पर एक जैसे नियम लागू होने चाहिए।  हालांकि, खातों की रिपोर्टिंग और अकाउंट के वेरिफिकेशन के दौरान इस पूर्वाग्रह की झलक बार बार दिखाई देती है। 

इस मुद्दे पर बात करने के लिए मायनेशन ने ट्विटर इंडिया की पॉलिसी डायरेक्टर महिमा कौल से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कई बार कोशिश करने के बावजूद उनसे बात नहीं हो पाई। हमने उनके मोबाइल पर एक मैसेज भी भेजा है जैसे ही ट्विटर से हमारे सवालों का जवाब आ जाएगा हम इस कॉपी में उनका बयान भी लगा देंगे। 

यह पहला उदाहरण है जब जब एक विशाल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के खिलाफ भारत में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। 

ट्विटर पर पहले ही अजीबोगरीब तरीके से ट्विटर हैंडलों को निलंबित करने का आरोप लगाया जा चुका है। इसका एक उदाहरण ट्रू इंडोलॉजी नाम का एक ट्विटर हैंडल है, जिसने कभी किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया। 

इससे पहले भी ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी पर 'घृणा भड़काने' का आरोप लग चुका है। जब वह एक तस्वीर का हिस्सा बने जिसमें एक व्यक्ति के हाथ में तख्ती थी जिसपर लिखा हुआ था 'ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को तोड़ो’। 

यह तस्वीर भारत की एक प्रमुख जातीय समूह को पितृसत्ता से जोड़कर उसका अपमान करने के उद्देश्य से बनाई गई थी। इस तस्वीर के साथ ट्विटर सीईओ की फोटो पर ट्विटर को सफाई देनी पड़ी थी। 

यहां तक कि पिछले साल सितंबर में अमेरिका में रिपब्लिकन ने ट्विटर पर रुढ़िवादियों के खिलाफ पूर्वाग्रह रखने और डेमोक्रेट्स के पक्ष में होने का आरोप लगाया था। रिपब्लिकनों ने जैक डोरसी की इस बात के लिए शिकायत की थी कि अमेरिका में ट्विटर का एल्गोरिदम रूढ़िवादी नजरिए को दबाने की कोशिश करता है। 

और अब भारत में यह ऑनलाइन चर्चा का विशाल माध्यम अमेरिका जैसे ही आरोपों का सामना कर रहा है। 

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