क्या केजरीवाल के भाग्य से फूटेगा कांग्रेस का छीका?

By Sanjay Kumar SrivastavaFirst Published Mar 27, 2019, 2:53 PM IST
Highlights

आम आदमी पार्टी के पास लोकसभा चुनावों में खोने को कुछ भी नहीं है इसलिए वह कांग्रेस के साथ गठबंधन को आतुर है. कांग्रेस-आप के गठबंधन से किसे क्या मिलेगा... 

“उन्होंने तो लगभग मना ही कर दिया है जी.” चांदनी चौक इलाके में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए अरविंद केजरीवाल की कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावना पर कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया थी. चांदनी चौक से आम आदमी पार्टी(आप) के प्रत्याशी पंकज गुप्ता के लिए एक चनावी सभा करने केजरीवाल पहुंचे तो अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने पूछ लिया “आप, कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव क्यों नहीं लड़ती. आप और कांग्रेस अलग-अलग लड़ें तो भाजपा विरोधी वोट बंटेंगे और फायदा भाजपा उठा ले जाएगी जैसा कि 2014 में हुआ था.” इस सवाल के जबाव में केजरीवाल ने कहा कि वह कई बार कांग्रेस से अनुरोध कर चुके हैं लेकिन कांग्रेस को बहुत अभिमान हो गया है. वह गठबंधन को तैयार नहीं है. इसलिए हमारे पास अलग चुनाव लड़ने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. 

तो क्या बात बस इतनी सी है? शायद नहीं. दरअसल गठबंधन होने से यहां आप और कांग्रेस दोनों का नफा-नुकसान है. दोनों दल यह तोल रहे हैं कि नफा अधिक है नुकसान? केजरीवाल ने भांप लिया है कि उन्हें नफा अधिक है. अगर कांग्रेस के साथ उनका गठबंधन होता है तो लोकसभा में खाता खुलने की आस जग जाएगी. मौजूदा परिस्थितियों में माहौल उनके पक्ष में नहीं है. 2014 के चुनावों में आम आदमी पार्टी पंजाब में चार सीटें जीती थी लेकिन उसके चार में से दो सांसदों ने पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाए तो पार्टी ने उन्हें निकाल दिया. 2017 में पंजाब के विधानसभा चुनावों में जहां पार्टी सरकार बनाने की आस लगा रही थी वह पूरी नहीं हुई हालांकि पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी. इसके बाद पंजाब में जितने उपचुनाव हुए उसमें पार्टी कई सीटों पर जमानत तक नहीं बचा पाई. पार्टी के कई विधायक बागी हो चुके हैं और पंजाब के प्रभारी मनीष सिसोदिया के पंजाब दौरे पर उनसे मिलने तक नहीं आते. कुल मिलाकर पंजाब में आम आदमी पार्टी के पास कुछ खास बचा नहीं है. 

दिल्ली में भी निगम चुनावों में आम आदमी पार्टी बुरी तरह धराशायी हो गई. 2015 के विधानसभा चुनावों में 70 में 67 सीटें जीतने वाली आप दिल्ली नगर निगम के 272 सीटों में से 50 सीटें भी नहीं जीत पाई. सिख और पंजाबी बहुत तिलक नगर विधानसभा के उपचुनावों में आम आदमी पार्टी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाई. कांग्रेस को आप से अधिक वोट मिले. 

उसी तरह नगर निगम चुनाव में तीसरे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस को साल 2015 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 11 प्रतिशत अधिक वोट मिले तो आप का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनावों के मुकाबले घटकर आधा रह गया. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 9.7 फीसदी वोट मिले थे जो एमसीडी चुनावों बढ़कर 21.28 फीसदी हो गया है. वहीं विधानसभा चुनाव में 54.3 प्रतिशत पाने वाली आप के एमसीडी चुनाव में वोटों में 26 प्रतिशत की कमी हुई. कांग्रेस ने पंजाब जीतने के बाद गुजरात में पहले से बेहतर प्रदर्शन किया. कर्नाटक में सीटें कम होने के बावजूद फिर से सरकार बनाई और 2018 में हिंदीपट्टी के तीन राज्य जीत लिए. आप ने कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ा था लेकिन इनमें से किसी भी राज्य में पार्टी का शायद ही कोई उम्मीदवार अपनी जमानत तक बचा पाया. दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों में भी पार्टी की बड़ी दुर्दशा हुई. यानी कांग्रेस लगातार उठान पर है. वहीं बवाना उपचुनाव जीतने के अलावा आप के खाते में सिर्फ गिरावट ही आई है. ऐसे में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की आप के साथ गठबंधन में हिचकिचाहट और आप के नेताओं की गठबंधन के लिए बेचैनी समझी जा सकती है.

लेकिन पेंच बस इतना भर नहीं है. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं और दिल्ली के प्रभारी के साथ राहुल गांधी की बैठक में आप के साथ गठबंधन पर गहन चर्चा हुई लेकिन कोई आम सहमति नहीं बन पाई. राहुल ने वोट कराया तो ज्यादातर लोग गठबंधन नहीं करने के पक्ष में दिखे. आप के साथ गठबंधन के पैरोकारों में एक नाम ऐसा था जिसे देखकर सभी हैरान थे. वह थे दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय माकन. जब माकन अध्यक्ष थे तो आप के साथ गठबंधन का मुखरता से विरोध करते थे. आज उनकी जगह शीला दीक्षित आ गई हैं तो माकन ने सुर बदल लिए हैं. पर आखिर ऐसा क्यों है?

दरअसल कांग्रेस और आप का वोट बैंक मुख्य रूप से एक ही है. जो मुसलमान, दलित और गरीब तबका कांग्रेस को सत्ता में बिठाता था अब वह छिटककर आप के पास जा पहुंचा है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष को यह बात समझ में आती है कि यदि आप के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा गया तो उसके पुराने वोट बैंक को फिर से हासिल करने की जो संभावना बनती दिख रही है वह चौपट हो जाएगी. यही हाल कांग्रेस का बिहार और उत्तर प्रदेश में हुआ है. छोटे दलों के साथ समझौते करने से कांग्रेस अपने मूल वोट आधार को गंवाती चली गई. मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित समझती हैं कि इस चुनाव में गठबंधन का मतलब है कि 2020 के विधानसभा चुनावों में अपना वोट बैंक कांग्रेस को थाली में सजाकर परोस देना. जो भी अध्यक्ष की कुर्सी पर होता है उसका ध्यान विधानसभा पर रहता है. इसलिए जब माकन अध्यक्ष थे तब विरोध करते थे और आज उनकी प्रतिद्वंद्वी शीला हैं तो वह समर्थक हो गए हैं ताकि शीला दोबारा उभरने ही न पाएं.

अब सवाल यह है कि आम आदमी पार्टी बार-बार कांग्रेस से समझौते के लिए इतने कातर भाव में विनती क्यों कर रही है. दरअसल यह बात कहकर केजरीवाल भाजपा विरोधी वोट बैंक जो कांग्रेस में जा सकता है उसे अपने पाले में कर रहे हैं. वह दिखाना चाह रहे हैं कि कांग्रेस विरोधी राजनीति से शुरुआत करने और अपने बच्चों की कसम खाकर कांग्रेस के साथ कभी समझौता नहीं करने का दम भरने वाले केजरीवाल मोदी को सत्ता में आने से रोकने के लिए अपमान का हर घूंट पीने को तैयार हैं पर कांग्रेस अपनी अकड़ छोड़ने को तैयार नहीं. इस तरह वह मोदी विरोधी वोटों को अपने पक्ष में लामबंद कर रहे हैं. वहीं कांग्रेस समझ रही है कि आप से गठबंधन का मतलब है उसे दिल्ली के बाद हरियाणा में भी खड़े होने का आधार दे देना. तो फिर कांग्रेस अपने वोटों की कीमत पर आप के साथ गठबंधन पर विचार ही क्यों करेगी?

दरअसल राहुल गांधी के साथ मीटिंग में एकतरह से तय हो चुका था कि कांग्रेस गठबंधन नहीं करेगी. केजरीवाल ने भी अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए थे और प्रचार भी शुरू हो गया था तभी माकन ने दिल्ली के प्रभारी पी.सी. चाको को गठबंधन के लिए राजी कर लिया. चाको ने कांग्रेस के शक्ति ऐप्प पर एक सर्वे कराया जिसमें आप के साथ गठबंधन की बात निकलकर आई. चाको इसी नतीजे के आधार पर माहौल बनाने में लग गए. शीला दीक्षित ने ऐप्प के सर्वे पर यह कहते हुए सवाल खड़े किए कि गठबंधन को लालायित आप ने अपने लोगों से इसमें वोट कराया है. बात ठंढी पड़ जाती उससे पहले चाको ने एक दूसरा सर्वे करा लिया और उसके रिजल्ट के आधार पर पार्टी के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल को समझा लिया कि दिल्ली और हरियाणा दोनों में आप को कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहिए अन्यथा भाजपा को फायदा होगा. सर्वे कहता है कि यदि दोनों दलों के बीच गठबंधन होता है तो दिल्ली में सातों सीटें गठबंधन की होंगी. अब फिर से चाको और माकन का पलड़ा भारी हो चुका है. 

अहमद पटेल द्वारा इस मामले पर स्टैंड लेने के बाद शीला भी नरम पड़ीं और उन्होंने कह दिया कि अब हाईकमान जो तय करेगा उन्हें स्वीकार है. ऐसी चर्चा थी कि राहुल गांधी रविवार को इस विषय पर फैसला करने वाले हैं और गठबंधन हो ही जाएगा कि इसी बीच कांग्रेस के बड़े नेता और राहुल-सोनिया दोनों के करीबी समझे जाने वाले कपिल सिब्बल ने ऐलान कर दिया कि आप से समझौता हो या न हो, वह तो हर हाल में चांदनी चौक से चुनाव लड़ेंगे. सिब्बल चांदनी चौक से दो बार सांसद रह चुके हैं और 2014 के चुनाव में उन्हें भाजपा विजय गोयल से शिकस्त मिली थी. यहां से आप के प्रत्याशी पंकज गुप्ता हैं जो केजरीवाल के उस जमाने के मित्र हैं जब वह अन्ना के साथ भी नहीं जुड़े थे. इसके अलावा वह पार्टी के सचिव हैं और अब तक कई लाख रूपए इस क्षेत्र में खर्च कर चुके हैं. इसलिए केजरीवाल गठबंधन की स्थिति में भी इस सीट को समझौते में कांग्रेस को देने को शायद ही तैयार हों. यानी पेंच तो फंसेगा ही और शायद ऐसा फंसे की गठबंधन अंतत सिरे ही न चढ़ पाए. केजरीवाल दिल्ली को एक युनिट के रूप में नहीं देख रहे. वह कांग्रेस के साथ दिल्ली के साथ-साथ हरियाणा और पंजाब को मिलाकर साझेदारी पर जोर दे रहे हैं और कांग्रेस के लिए यह एक बड़ी फांस होगी. 

दरअसल राहुल समझते हैं कि वह हरियाणा इकाई को तो एकबारगी इस समझौते के लिए राजी कर भी लें, कैप्टन अमरिंदर सिंह पर उनका जोर नहीं चल पाएगा. वैसे भी चर्चा है कि कैप्टन राहुल को ज्यादा भाव नहीं दे रहे. बहरहाल गंठबंधन होगा या नहीं इस पर अगले एक से दो दिनों में फैसला हो जाएगा. 

अगर गठबंधन होता है तो भी आम आदमी पार्टी का फायदा, अगर नहीं होता है तो भी आप के पास गंवाने को है ही क्या! यानी चित भी आप की, पट भी आप की. और कांग्रेस को क्या मिलेगा?   

संजय श्रीवास्तव

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनका पत्रकारिता का अनुभव तीस सालों से भी ज्यादा का है। वह माया, दिनमान जैसे कई संस्थानों में काम कर चुके हैं। 
 

click me!