अनहद नाद यानी बिना किसी स्रोत के आने वाली आवाज। यह हमेशा अंदर से आती है और मस्तिष्क के अंदर से सुनाई देती है। लेकिन क्या हर कोई इसे सुन पाता है। इसका जवाब है नहीं। क्योंकि यह किसी किसी को सुनाई देती है। अगर आप इसे अपनी मर्जी के मुताबिक सुनने की कोशिश करेंगे तो आपको लंबे समय तक अभ्यास करना होगा।
सदगुरूओं ने कहा है कि अनहद शब्द के अन्दर प्रकाश है और उससे ध्वनि उत्पन्न होती है यह ध्वनि नित्य होती रहती है प्रत्येक के अन्दर यह ध्वनि निरन्तर हो रही है अपने चित्त को नौ द्वारो से हटाकर दसवें द्वार पर लगाया जाय तो यह नाद सुनायी दोता है।
फ़कीर इसे अनहद कहते है अर्थात एक कभी न खत्म होने वाला कलाम(ध्वनि) जो फ़ना(नष्ट) होने वाली नहीं है।
अनहद नाद ही परमात्मा के मिलाप का साधन है इसके प्रकट होने पर आत्मा परमात्मा का रस प्राप्त करती है। गुरू मुख होकर इस शब्द को सुना जा सकता है इसके अभ्यास द्वारा पाप, मैल व सब ताप दुर होते है तथा जन्म-जन्मांतरों के दुखों की निवृति होकर आनन्द और सुख की प्राप्ति होती है। यह अपूर्व आनन्द की स्थिति होती है तथा निज घर में वास मिलता है संतो की आत्मा पिण्ड़(शरीर) को छोड़कर शब्द में लीन हो जाती है।
यह शब्द गुरू से प्राप्त होता है । हम जब ध्यान करने बैठते है तो बाहर कोई भी आवाज़(ध्वनि) हो वह हमें आकर्षित करती है जिससे हमारा चित्त उस ध्वनि की ओर आकर्षित होता है तथा ध्यान उचट जाता है यदि हम अंदर की ध्वनि को सुनने में चित्त को लगायेंगे तो हमारा ध्यान लगेगा क्योंकि चित्त ध्वनि की ओर आकर्षित होता है।
अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधी रखकर बैठ जाए अंगुठे या तर्जनी अंगुली से कान बंद कर दे या कानों में रूई डाल दे तथा हमारे मन को बाहरी ध्वनि से हटाकर अन्दर की ध्वनि सुनने की कोशिश करे। इसे दाहिने कान के अंदर सुनना है अर्थात चित्त को वहॉ लगाना है शुरू में आपको श्वास की आवाज़ सुनाई पड़ेगी आगे ओर गहराई में जाओंगे तो आपको अलग-अलग आवाज़े सुनाई पड़ेगी गहराई में जाते जाना है अन्त में मेघनाद सुनाई पड़ेगा तथा परमात्मा का दर्शन होगा।
नाद सुनने का अभ्यास करने पर मन थकता नहीं है तथा आनन्द आता है। पंच तत्वों का अभ्यास ही नाद से सिद्ध हो जाता है। जब नाद सुनाई देने लगता है तब बिना कानों में अंगुली ड़ाले सहज ही उसे सुन सकते है। मन को हमेशा नाद सुनने में लगाये रखे यही सच्ची भक्ति है तथा मुक्ति का साधन है।
बिना बजाये अंदर घंटे, शंख, नगाड़े बजते सुनाई देते है जिसे कोई बहरा भी सुन सकता है। जब हम शून्य के पथ पर आगे बढ़ते है तो पहले झींगुर की आवाज़ की तरह की आवाज़ सुनाई पड़ती है तथा जब चिड़िया की आवाज़ की तरह की आवाज़ सुनाई देती है तब पूरा शरीर टुटने लगता है जैसे मलेरिया बुखार हुआ हो।
जब घंटे की आवाज़ सुनाई पड़ती है तो मन खिन्न हो जाता है तथा जब शंख की आवाज़ सुनाई पड़ती है तब पूरा सिर भन्ना उठता है। ओर गहराई से जब वीणा की आवाज़ सुनाई देती है तब मन मस्त हो जाता है तथा अमृत प्राप्त होना प्रारम्भ हो जाता है जब बांसुरी की आवाज़ सुनाई पड़ने लगती है तब गुप्त रहस्य का ज्ञान हो जाता है तथा मन प्रभु के प्रेम में रम जाता है।
जब तबलों की आवाज़ अंदर सुनाई देती है तब परावाणी की प्राप्ति हो जाती है जब भेरी की आवाज़ सुनाई पड़ती है तब भय समाप्त हो जाता है तथा दिव्य दृष्टि साधक को प्राप्त हो जाती है तथा दिव्य दृष्टि साधक को प्राप्त हो जाती है तथा मेघनाद सुनाई देने पर परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। बिना सतगुरू के इस मार्ग के बारे में समझ नहीं सकते। पूर्ण सतगुरू हमें ह्दय में प्रभु के दर्शन करा देते है तथा अनहद धुन सुना देते है।