प्राचीन भारतीय वेदों के पूरी तरह विज्ञान आधारित होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि जिन पांच तत्वों की बात वेदों में की गई है। उनके अलावा कोई भी छठा तत्व अभी तक आधुनिक विज्ञान तलाश नहीं पाया है। वेदों में समस्त ज्ञान इसलिए समाहित है क्योंकि यह भारतीयों के लाखों सालों के शोध और प्राकृतिक अनुभवों का निचोड़ है, जिसमें समस्त ज्ञान विज्ञान का निवास है।
भारत ने अपने वेदों के माध्यम से संसार को बहुत कुछ दिया है। वेद ज्ञान से संसार को पता चला है कि इस प्रकृति का निर्माण पांच तत्वों अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश से मिलकर हुआ है। विश्व ने भारत की इस बात को स्वीकार किया है। तभी तो संसार का कोई भी वैज्ञानिक ऐसा कोई छठा पदार्थ खोजकर नहीं ला सका-जिसे इन पांच तत्वों के साथ मिलाकर कहा जा सके कि प्रकृति का निर्माण पांच तत्वों से न होकर छह तत्वों से हुआ है।
संसार को आग के विषय में सबसे पहले हमने ही बताया। विश्व इतिहास को आप उठाकर देखें तो कई काल्पनिक बातें आपको तथाकथित विद्वानों की ओर से कही गयी मिलेंगी। जिनसे पता चलेगा कि पहले मानव जंगली अवस्था में था और उसे कोई ज्ञान नहीं था। जब उसे कुछ-कुछ ज्ञान होना आरंभ हुआ तो उसने जिन वस्तुओं को अपने लिए आवश्यक और उपयोगी माना उनमें अग्नि भी एक थी। अग्नि के लिए मनुष्य ने पत्थर को पत्थर से रगड़ा तो उसे ज्ञान हुआ कि इसमें अग्नि है। बाद में धीरे-धीरे उसने अग्नि की खोज की और उसका उपयोग अपने लिए भोजन पकाने के रूप में करना आरंभ किया।
हमने इस प्रकार की धारणा को काल्पनिक इसलिए माना है कि ऐसे अवैज्ञानिक ढंग से मानव का विकास पृथ्वी पर नहीं हुआ। ना ही उसे ईश्वर ने जंगली रूप में अर्थात असुरक्षित ढंग से कहीं से फेंक दिया था। यदि ईश्वर ने ऐसा किया होता तो उसकी व्यवस्था में अवैज्ञानिकता का दोष लगना निश्चित है। मनुष्य को ईश्वर ने अपनी ओर से ज्ञान-विज्ञान दिया। वेद के माध्यम से उसे अनेकों पदार्थों और तत्वों के विषय में गंभीर और सूक्ष्म ज्ञान प्रदान किया।