मसूद को बचाने वाला चीन पड़ गया है दुनिया मे अकेला

By Avdhesh Kumar  |  First Published Mar 16, 2019, 5:28 PM IST

क्या यह मान लिया जाए कि आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद  के आका मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् द्वारा आतंकवादी घोषित न किया जाना भारत की कूटनीतिक विफलता है? कम से कम कांग्रेस का आरोप तो यही है। लेकिन क्या यह सच है?  पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार का विश्लेषण- 

नई दिल्ली:  कांग्रेस के आरोपों का जवाब देने की बजाय इस घटना पर विश्व की कुछ प्रतिक्रियाओं का उल्लेख जरुरी है। फ्रांस ने स्वयं मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी मानकर कार्रवाई करने का फैसला किया है। फ्रांस अब मसूद की संपत्ति को जब्त करेगा। 

सुरक्षा परिषद यदि मसूद को आतंकवादी घोषित कर देता तो देश-विदेश में उसकी संपत्तियां जब्त हो जातीं, उसका विदेश जाना प्रतिबंधित हो जाता। यदि विदेश में मसूद और जैश की संपत्तियां जब्त होने लगे और देश उसे अपने यहां आने न दे तो बिना प्रस्ताव पारित किए ही वह आतंकवादी घोषित हो गया।

 फ्रांस सरकार के गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय द्वारा जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि फ्रांस मसूद को यूरोपीय संघ की आतंकवादी सूची में शामिल करने को लेकर बात करेगा। चीन अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल सुरक्षा परिषद में कर सकता है, यूरोपीय संघ में नहीं। यूरोपीय संघ में प्रतिबंधित होने का मतलब प्रमुख देशों के सबसे बड़े समूह द्वारा मसूद आतंकवादी घोषित कर दिया गया। उसके बाद इसी तरह दूसरे वैश्विक और क्षेत्रीय संगठनों द्वारा उसे वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। अभी जो हो रहा है उसके लिए तो भारत ने किसी से अनुरोध भी नहीं किया है। 

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सच यह है कि अड़ंगा डालकर चीन प्रमुख देशों के निशाने पर आ गया है। अमेरिका ने चीन को वर्चुअल तौर पर आतंक का समर्थक बताया है। अमेरिका का कहना है कि यदि चीन इसी तरह अड़ंगा लगाता रहा तो सदस्य देशों को दूसरे विकल्प पर ध्यान देना पड़ेगा। हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी के अध्यक्ष, सांसद इलियट इंगेल का बयान है-‘मैं निराश हूं कि चीन ने फिर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने के मार्ग में रोड़ा अटकाने का फैसला किया। इंगेल ने कहा, ‘चीन और पाकिस्तान के पास अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने के लिए बेहतर अवसर था।’ 

अमेरिका मे यह विचार किया जा रहा है कि अब आगे क्या किया जाए। संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति में होने वाला विचार- विमर्श गोपनीय होता है और इसलिए सदस्य देश सार्वजनिक रूप से इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते। 

मीडिया में सदस्य देशों के राजनयिकों का जो बयान आया उसमें चीन के खिलाफ गुस्सा है। यह बात अलग है कि उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुए भी नाम न देने का अनुरोध किया। इससे पता चलता है कि अंदर चीन की कैसी स्थिति हुई होगी। 

सुरक्षा परिषद के एक राजनयिक ने चीन को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि अगर वह इस कार्य में बाधा पैदा करना जारी रखता है, तो जिम्मेदार सदस्य देश, सुरक्षा परिषद में अन्य कदम उठाने पर मजबूर हो सकते हैं। ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। एक दूसरे राजनयिक ने सवाल के जवाब में कहा कि चीन की समिति को उस काम को करने से रोकना नहीं चाहिए, जो सुरक्षा परिषद ने उसे सौंपा है। उन्होंने कहा कि चीन का यह कदम आतंकवाद के खिलाफ लड़ने और दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के उसके खुद के बताए लक्ष्यों के विपरीत है। 

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता रोबर्ट पलाडिनो ने भी कहा कि अजहर मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने के लिए पर्याप्त कारण हैं। ट्रंप का तेवर तो अभी चीन के मामले में कुछ ज्यादा ही गरम है। अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य ब्रैड शेरमैन ने चीन के इस कदम को अस्वीकार्य करार दिया। उन्होंने चीन से अपील की है कि वह संयुक्त राष्ट्र को अजहर पर प्रतिबंध लगाने दे। हेरिटेज फाउंडेशन के जेफ स्मिथ और अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के सदानंद धूमे समेत अमेरिकी थिंक टैंक के कई सदस्यों ने चीन के इस कदम की निंदा की है। 

अगर सुरक्षा परिषद के सदस्य देश ही चेतावनी दे रहे हैं कि चीन ऐसा करना जारी रहा हो तो उनके पास दूसरे रास्ते हैं तो फिर भारत के लिए इससे बड़ा संबल और कुछ हो ही नहीं सकता। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस तरह दुनिया के प्रमुख देश इस मामले में भारत के साथ खड़े हैं उस तरह हमारे देश के अंदर एकजुटता नहीं है। 

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पता नहीं इस तथ्य को क्यों भुलाया जा रहा है कि इस बार 27 फरवरी को सुरक्षा परिषद में भारत ने नहीं फ्रांस की अगुवाई में ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर प्रस्ताव पेश किया था। इसका आधार पुलवामा से लेकर जैश द्वारा भारत में किए गए उन आतंकवादी हमलों को बनाया गया था जिसकी सूची भारत ने बनाकर दिया था। 

सुरक्षा परिषद के पांच में से तीन स्थायी सदस्य देशों का प्रस्ताव लाना भारत की विश्वसनीयता और बढ़ी हुई अहमियत का परिचायकं है। वैसे भी सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव खत्म नहीं हुआ है। 13 मार्च को चीन ने वीटो के प्रयोग से इस पर तकनीकी रोक लगाया है। फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 अल कायदा सैंक्शन्स कमिटी के तहत अजहर को आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव 27 फरवरी को पेश किया था। 

अल कायदा प्रतिबंध समिति के सदस्यों को इस प्रस्ताव पर आपत्ति दर्ज करने के लिए 10 दिनों का समय दिया गया था। 10 दिनों की समय सीमा खत्म होने और प्रस्ताव पर फैसला होने से कुछ मिनट पहले चीन ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए टेक्निकल होल्ड पर डाल दिया कि उसे इसकी जांच करने के लिए और समय चाहिए। 

मसूद अजहर को सुरक्षा परिषद द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की राह में पिछले दस वर्ष में चीन ने चौथी बार अड़ंगा लगाया है। चीन 2009, 2016 और 2017 में भी मसूद को बचाने के लिए वीटो का इस्तेमाल कर चुका है। परिषद में चीन को छोड़कर सभी 14 सदस्यों ने इसका समर्थन किया था। ये सारे देश यदि भारत के साथ हैं तो इसका कारण भारतीय कूटनीति का प्रभाव ही है। 


दुनिया में इस समय खुलकर मूसद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जाने का विरोध करने वाला देश शायद ही कोई हो। चीन भी यह नहीं कह रहा है कि वह इसका विरोध कर रहा है। उसने अत्यंत ही सधा हुआ बयान दिया है। चीन ने कहा है कि मसूद आजहर पर प्रतिबंध से पहले जांच के लिए समय चाहिए ताकि सभी पक्ष ज्यादा बातचीत कर सकें और एक अंतिम निर्णय पर पहुंचे जो सभी को स्वीकार्य हो। 

जब इस बारे में पूछा गया तो चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने कहा कि चीन का फैसला समिति के नियमों के अनुसार है। चीन इस मुद्दे को ठीक से संभालने के लिए भारत सहित सभी पक्षों से संवाद और समन्वय के लिए तैयार है। 

हालांकि उसके इस बयान का कोई मतलब नहीं है क्योंकि मसूद अजहर आतंकवादी है और वह भारत में पिछले 19 वर्षों से हमले करा रहा है जिसकी सप्रमाण जानकारी दुनिया को मिल गई है। इस जानकारी को सही मानने के बाद ही तो इतने देश उसे वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए तैयार हुए। 

चीन की अपनी दुर्नीति है कि वह पाकिस्तान की पीठ पर खड़ा होकर एक साथ कई स्वार्थ साधने की रणनीति अपना रहा है।  पाकिस्तान को उसने इतना ज्यादा कर्ज दे दिया है कि वह उसके चंगुल से आसानी से निकल नहीं सकता। 

चीन की सोच है कि भविष्य में पाकिस्तान पर कर्ज के एवज में शर्तों के अनुसार कार्रवाई की नौबत आए तो आतंकवादी संगठन उसका विरोध न करे। पाकिस्तान आर्थिक गलियारा को भी चीन आतंकवादी संगठनों के हमलों से सुरक्षित रखना चाहता है। अफगानिस्तान के तालिबानों से अमेरिका पाकिस्तान के माध्यम से बातचीत कर रहा है। 

चीन मानता है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद वहां उसकी विस्तारित भूमिका में पाकिस्तान का साथ मिलने से विरोध या विद्रोह की स्थिति पैदा नहीं होगी। चीन अपने शिंकियांग प्रांत में उइगुर मुस्लिमों को जिस तरह कुचल रहा है, वहां आतंकवाद का जिस क्रूरता से दमन कर रहा है जेहादी संगठनों में नाराजगी है। शायद यह नाराजगी न बढ़े इसलिए भी वह ऐसा कर रहा है।

  
ऐसे में चीन से उम्मीद नहीं कर सकते कि आसानी से वह मसूद को आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव का समर्थन कर देगा। उसकी नीति काफी पहले से तय है। उसमें कुछ आयाम जुड़ते जाते हैं। जो बयान चीन का अभी है ठीक वही 2 नवंबर 2017 को तीसरी बार प्रस्ताव को वीटो करने के समय भी था। तो वह एक रिकॉर्ड किया गया ऑडियो है जो हर बार बज जाता है। 

किंतु यह भारत की विफलता नहीं है। 2009 में भारत मसूद के खिलाफ प्रस्ताव पेश करने वाला अकेला देश था। आज दूसरे देश उसके लिए प्रस्ताव पेश कर रहे हैं, सारे देश उसका समर्थन कर रहे हैं और चीन के खिलाफ अब खुलकर बोल रहे हैं। इससे ज्यादा भारत को और क्या चाहिए? 

मसूद अजहर आतंकवादी है, पाकिस्तान उसे बचा रहा है और चीन अपने वीटो ताकत से उसकी मदद कर रहा है दुनिया इन तथ्यों से अवगत हो चुकी है। आज मसूद के मामले में दुनिया भारत के साथ खड़ी है और चीन पाकिस्तान के साथ अकेला है। उसे चेतावनी मिल रही है और उसका वह जवाब देने की स्थिति में नहीं। 

वैसे भी पुलवामा हमले के बाद सुरक्षा परिषद ने बाजाब्ता जैश का नाम लेते हुए प्रस्ताव पारित किया जिसमें जघन्य और कायरतापूर्ण हमला बताया गया था और चीन ने भी उस पर हस्ताक्षर किया। जब चीन पर प्रश्न उठा तो उसने जवाब दिया कि वह एक सामान्य प्रस्ताव था जिसका बहुत ज्यादा अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए। 

ठीक है प्रस्ताव सामान्य था लेकिन जैश का नाम तो था। तो हस्ताक्षर करने के बाद चीन कैसे कह सकता है कि वह जैश को आतंकवादी संगठन नहीं मानता? वैसे भी संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों में जैश-ए-मोहम्मद का नाम शामिल है। जो संगठन आतंकवादी है उसके प्रमुख को आतंकवादी नहीं तो और क्या कहा जाएगा। 


ऐसा भी नहीं है कि चीन के वीटो के साथ मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के रास्ते बंद हो गए। जब देश कह रहे हैं कि दूसरे विकल्प अपनाए जा सकते हैं तो उन्होंने इन पर अवश्य विचार किया होगा। संयुक्त राष्ट्रसंघ के नियम में एक अफर्मेटिव वोटिंग का प्रावधान है। इसके तहत यदि बहुमत से एक भी अधिक सदस्य ने मतदान कर दिया तो फिर चीन के वीटों का कोई मायने नहीं रहेगा। 

वीटो प्राप्त देश नहीं चाहते कि इस रास्ते को अपनाना पड़े क्योंकि भविष्य में फिर दूसरे के वीटो भी विफल हो सकते हैं। चीन के एक वीटो के समानांतर तीन या चार सदस्य अपने वीटो का इस्तेमाल कर दें तो नई स्थिति पैदा हो जाएगी। इसलिए यह मान लेना उचित नहीं होगा कि मसूद का अध्याय बंद हो गया है। 

चीन का अपना निहित स्वार्थ है और उसके तहत वह भूमिका निभा रहा है किंतु यह संभव नहीं कि भारत में आतंकवादी हमलों के खिलाफ वह पाकिस्तान को कुछ कहे ही नहीं। आखिर भारत ने 26 फरबरी को सैन्य विमानों से पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादी संगठनों पर बमबारी की और चीन ने केवल दोनों देशों से संयम रखने का अनुरोध किया। उसने सीमा पार करने की आलोचना नहीं की। तो आगे कुछ भी हो सकता है। 

वैसे भी सीमा पार आतंकवाद से हमारी लड़ाई मसूद अजहर को सुरक्षा परिखद द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित होने तक सीमित नहीं है। वह भी इसका एक भाग है। अब तो भारत ने अपने स्तर से ही उसे खत्म करने की ओर कदम बढ़ा दिया है। आप अड़ंगा लगा दीजिए। यदि पक्की खुफिया सूचना मिल गई कि मसूद अजहर किस जगह छिपा है तो भारत उसे वहीं खत्म करने की कार्रवाई करेगा। यह बदला हुआ भारत है। फिर तो कोई प्रस्ताव लाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। हां, इसके लिए राजनीतिक दलों को अपने देश की क्षमता पर विश्वास रखना होगा और इस मामले पर गंदी राजनीति से परे एकजुटता दिखानी होगी जो हो नहीं रहा। 

अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार औऱ स्तंभकार हैं)


 

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