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कुछ इस तरह रही शीला दीक्षित की राजनीतिक जीवन यात्रा

शीला दीक्षित का निधन 81 साल की उम्र में हुआ। उनका राजनीतिक जीवन बड़ा लंबा रहा। वह अपने दिवंगत ससुर उमाकांत दीक्षित की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए आगे आई थीं। जो अपने बेटे और शीला दीक्षित के पति विनोद दीक्षित की मौत के बाद टूट गए थे। शीला के पति भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे। एक नजर डालते हैं स्व. शीला दीक्षित की राजनीतिक जीवन यात्रा पर- 

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Team MyNation
Published : Jul 20 2019, 07:20 PM IST| Updated : Jul 20 2019, 07:21 PM IST
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भारतीय संसद में शीला दीक्षित का प्रवेश उत्तर प्रदेश के कन्नौज के रास्ते हुआ। वह 1984 में कन्नौज से सांसद चुनी गई थी। उस समय राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे।

भारतीय संसद में शीला दीक्षित का प्रवेश उत्तर प्रदेश के कन्नौज के रास्ते हुआ। वह 1984 में कन्नौज से सांसद चुनी गई थी। उस समय राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे।

भारतीय संसद में शीला दीक्षित का प्रवेश उत्तर प्रदेश के कन्नौज के रास्ते हुआ। वह 1984 में कन्नौज से सांसद चुनी गई थी। उस समय राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे।
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साल 1986 में उन्हें राजीव गांधी कैबिनेट में शामिल करके संसदीय मामलों के राज्यमंत्री की जिम्मेदारी दी गई।

साल 1986 में उन्हें राजीव गांधी कैबिनेट में शामिल करके संसदीय मामलों के राज्यमंत्री की जिम्मेदारी दी गई।

साल 1986 में उन्हें राजीव गांधी कैबिनेट में शामिल करके संसदीय मामलों के राज्यमंत्री की जिम्मेदारी दी गई।
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शीला दीक्षित गांधी परिवार के बहुत करीबी रही हैं। राहुल और प्रियंका के लिए वह एक मौसी की तरह थीं। खुद सोनिया गांधी से भी वह बेहद अनौपचारिक तरीके से मिलती रही हैं।

शीला दीक्षित गांधी परिवार के बहुत करीबी रही हैं। राहुल और प्रियंका के लिए वह एक मौसी की तरह थीं। खुद सोनिया गांधी से भी वह बेहद अनौपचारिक तरीके से मिलती रही हैं।

शीला दीक्षित गांधी परिवार के बहुत करीबी रही हैं। राहुल और प्रियंका के लिए वह एक मौसी की तरह थीं। खुद सोनिया गांधी से भी वह बेहद अनौपचारिक तरीके से मिलती रही हैं।
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साल 1998 में हुए चुनाव में कांग्रेस के जीत हासिल करने के बाद उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया। यह पद शीला दीक्षित को इतना रास आया कि वह अगले 15 सालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहीं।

साल 1998 में हुए चुनाव में कांग्रेस के जीत हासिल करने के बाद उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया। यह पद शीला दीक्षित को इतना रास आया कि वह अगले 15 सालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहीं।

साल 1998 में हुए चुनाव में कांग्रेस के जीत हासिल करने के बाद उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया। यह पद शीला दीक्षित को इतना रास आया कि वह अगले 15 सालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहीं।
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शीला दीक्षित 1998 से लेकर साल 2013 के लंबे समय तक दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर काम करती रहीं। इस दौरान दिल्ली में उल्लेखनीय निर्माण किए गए। लेकिन फिर आम आदमी पार्टी के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की आंधी में शीला की कुर्सी चली गई।

शीला दीक्षित 1998 से लेकर साल 2013 के लंबे समय तक दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर काम करती रहीं। इस दौरान दिल्ली में उल्लेखनीय निर्माण किए गए। लेकिन फिर आम आदमी पार्टी के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की आंधी में शीला की कुर्सी चली गई।

शीला दीक्षित 1998 से लेकर साल 2013 के लंबे समय तक दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर काम करती रहीं। इस दौरान दिल्ली में उल्लेखनीय निर्माण किए गए। लेकिन फिर आम आदमी पार्टी के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की आंधी में शीला की कुर्सी चली गई।
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केन्द्र में यूपीए शासनकाल के अंतिम समय यानी साल 2014 की शुरुआत में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाकर भेजा गया। लेकिन मई में मनमोहन सिंह की सरकार की हार के बाद शीला दीक्षित भी केरल से इस्तीफा देकर दिल्ली वापस आ गईं।

केन्द्र में यूपीए शासनकाल के अंतिम समय यानी साल 2014 की शुरुआत में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाकर भेजा गया। लेकिन मई में मनमोहन सिंह की सरकार की हार के बाद शीला दीक्षित भी केरल से इस्तीफा देकर दिल्ली वापस आ गईं।

केन्द्र में यूपीए शासनकाल के अंतिम समय यानी साल 2014 की शुरुआत में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाकर भेजा गया। लेकिन मई में मनमोहन सिंह की सरकार की हार के बाद शीला दीक्षित भी केरल से इस्तीफा देकर दिल्ली वापस आ गईं।
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इस साल यानी 2019 में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। उनके सिर पर दिल्ली में कांग्रेस के खत्म हो गए संगठन को फिर से जीवित करने की जिम्मेदारी थी। जिसमें वह जी जान से लगी हुई थीं।

इस साल यानी 2019 में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। उनके सिर पर दिल्ली में कांग्रेस के खत्म हो गए संगठन को फिर से जीवित करने की जिम्मेदारी थी। जिसमें वह जी जान से लगी हुई थीं।

इस साल यानी 2019 में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। उनके सिर पर दिल्ली में कांग्रेस के खत्म हो गए संगठन को फिर से जीवित करने की जिम्मेदारी थी। जिसमें वह जी जान से लगी हुई थीं।

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