लखनऊ। अक्षय श्रीवास्तव ने जैविक खाद बनाने का काम शुरु किया तो फैमिली का प्रेशर बढ़ा कि पढ़ लिखकर तुम खाद ही बनाओगे तो पढ़ने की क्या जरुरत थी। घर वाले माने तो फिर आसपास के लोग कहने लगे कि इंजीनियरिंग करने के बाद गोबर का काम कर रहे हैं। साल 2020 के अंत में उन्होंने 10 हजार रुपये से काम शुरु किया। पहले 5 किलो जैविक खाद बनाया, रिस्पांस अच्छा मिला तो गाड़ी दौड़ पड़ी। वर्तमान में एलसीबी फर्टिलाइजर का 450 टन कैपिसिटी का प्लांट कुशीनगर में काम कर रहा है। कम्पनी की वैल्यूशन 40 करोड़ आंकी गई है। 

2107 से ही कर रहे थे फर्टिलाइजर पर काम

अक्षय श्रीवास्तव कहते हैं कि वह जैविक खाद पर साल 2017 से ही काम कर रहे थे। अपने आस पास खेती की दुश्वारियों को नजदीक से देखा। खेत में डाले जाने वाले खाद की लगातार बढ़ती मात्रा से उनके मन में सवाल उठते थे कि इसका क्या हल निकाला जा सकता है। साल 2016 में उन्होंने गोरखपुर के मंदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के पहले साल में रासायनिक खादों के साइड इफेक्ट के बारे में पढ़ाया गया। जिसकी वजह से रोग बढ़ रहे हैं। रासायनिक खादों के विकल्प की तलाश में पढ़ाई के दूसरे और तीसरे साल में रिसर्च किया।

10 हजार रुपये से पहली बार बनाई 5 किलो खाद

जनवरी 2020 में उन्होंने पहली बार 5 किग्रा का एक छोटा साल मॉडल बनाया। पर मार्च में कोरोना महामारी के समय लाकाडाउन की वजह से सब धरा का धरा रह गया। फिर 2020 के अंत में कॉलेज में इंटर्नशिप के दौरान मिले 10 हजार रुपये का यूज करके घर पर पहली बार 5 किलो फर्टिलाइजर बनाया। टेस्टिंग में उसमें वह सभी 9 तत्व पाए गए, जो पौधों को चाहिए होते हैं। फिर यह काम शुरु हुआ। 

कुशीनगर में 450 टन कैपिसिटी का प्लांट

अक्षय बताते हैं कि उनके पास पहला आर्डर एटा से आया था। बस और रेलवे के जरिए वह आर्डर भेजते रहें। फिर 40 किलो, 1000 और 10 हजार किग्रा फर्टिलाइजर बनाने का सेटअप तैयार किया। मौजूदा समय में एलसीबी फर्टिलाइजर का कुशीनगर में 450 टन कैपिसिटी का प्लांट है। उनके इस काम में आईआईटी कानपुर का अहम किरदार रहा है। 

पानी की बचत के साथ लागत में भी कमी

अक्षय कहते हैं कि सामान्य तौर पर किसान एक एकड़ में खाद, पानी की सिंचाई और मजदूरी मिलाकर 6600 रुपये खर्च करता है। उनके फर्टिलाइजर के यूज के बाद किसान का खर्च घटकर 3500 से 4 हजार रुपये के बीच आ जाता है। जैविक खाद के एक बैग की कीमत 300 रुपये है। एक एकड़ में तीन बैग खाद डालना होता है। उसके बाद कोई अन्य फर्टिलाइजर डालने की आवश्यकता नहीं होती है। उपज में भी 15 से 35 फीसदी की बढ़ोत्तरी होती है। उनका कहना है कि किसान हर 25 दिन के इंटरवल में खेतों में  पानी देते हैं, वह 30 से 35 दिन पर शिफ्ट हो जाता है। और 4 की जगह 3 सिंचाई में काम चल जाता है। इससे पानी की बचत होती है। उनकी अलग अलग फसल और अलग अलग समय के लिए फर्टिलाइजर डेवलप करने की भी योजना है।  

9 राज्यों में फर्टिलाइजर की सप्लाई

अक्षय बताते हैं कि हम अलग अलग किसानों के साथ एक अच्छा खासा मार्जिन देते हुए आउटलेट शुरु करा रहे हैं। जहां डिमांड है, वहां फैक्ट्री भी डाल रहे हैं। एक फैक्ट्री हमने कोल्हापुर महाराष्ट्र में डाली है। वहां से तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र को सप्लाई करते हैं। जबलपुर में सेटअप निर्माणाधीन है। वहां से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ को कवर करेंगे। कुल 9 राज्यों में हम फर्टिलाइजर की सप्लाई दे रहे हैं।