लखीमपुर खीरी। यूपी के लखीमपुर खीरी के सैदापुर गांव की रहने वाली निर्मला की माली हालत ठीक नहीं है। उनका बेटा मजदूरी करता है। बहू ने तकरीबन 9 महीने पहले एक बच्चे को जन्म दिया था, जो इतना कुपोषित था कि डॉक्टरों ने भी साफ कह दिया था कि बच्चे का जीवित बचना मुश्किल है। पर जब बच्चे को पोषण पोटली के माध्यम से पौष्टिक आहार मिलने लगा तो वह सिर्फ 4 महीने में ही स्वस्थ हो गया। निर्मला के पोते की तरह जिले के हजारो बच्चे कुपोषण का दंश झेल रहे थे। यह आंकड़ा जब आईएएस महेंद्र बहादुर सिंह के सामने आया तो उनका माथा ठनका। 

700 लोग बच्चों को गोद लेने के लिए हुए तैयार

बच्चों को कुपोषण की गिरफ्त से आजादी दिलाने के लिए उन्हें एक तरकीब सूझी। उन्होंने आम लोगों से ऐसे बच्चों को गोद लेने की अपील की। उनकी अपील का असर भी दिखा। जिले भर से ऐसे 700 लोग सामने आए जो कुपोषित बच्चों को गोद लेने के इच्छुक थे। पोषण पोटली के नाम से एक विशेष डाईट चार्ट बनाया गया। इस पर तकरीबन 500 रुपये का खर्च आता था। जिसका खर्चा गोद लेने वाले को खुद उठाना होता था। पोषण किट में मूंगफली दाना (1 किलो), भुना चना या सत्तू ( 1 किलो), गुड़ (1 किलो), सोयाबीन (1 किलो) और लाइफब्वाय साबुन दिया गया। इसके अलावा किट के साथ ही मल्टीविटामिन सिरप और अन्य जरूरी दवाईयां भी दी गईं। 

1081 बच्चे थे कुपोषण का शिकार 

लोगों ने कुपोषित बच्चों को गोद लेना शुरु कर दिया और कुपोषण के शिकार बच्चों को पोषण पोटली के जरिए पौष्टिक आहार मिलना शुरु हो गया। 6 महीने बाद इसका असर भी दिखना शुरु हो गया। वर्तमान में 1081 कुपोषित बच्चों में से 85 फीसदी कुपोषित श्रेणी से बाहर आ गए। बच्चों के स्वस्थ होने पर उनके माता-पिता ने भी राहत की सांस ली है। 

5 महीने बाद बच्चा हुआ स्वस्थ

फूलबेहड़ विकासखंड के गांव मैनहा के रहने वाले रतिपाल दूध का व्यवसाय करते हैं। एक साल पहले उनके घर बच्चे का जन्म हुआ था, जो जन्म से ही कुपोषित था। उस बच्चे को गोद लिया गया तो पोषण पोटली के जरिए बच्चे को पौष्टिक आहार मिलना शुरु हुआ। रतिपाल की पत्नी पूनम का कहना है कि उन्होंने गर्भावस्था के दौरान खाने पीने का पूरा ख्याल रखा था। फिर भी उनका बच्चा कुपोषित पैदा हुआ। तकरीबन 5 महीने बाद अब उनका बच्चा स्वस्थ हो चुका है। 

कुपोषित पैदा हुए बच्चे तो टेंशन में आ गए थे तसव्वुर

मकसोहा गांव के रहने वाले प्राइवेट स्कूल के अध्यापक मोहम्मद तसव्वुर के घर करीब 8 महीने पहले जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ था। उनके स्वास्थ्य को लेकर चुनौती थी। बच्चे कुपोषण का शिकार थे। उन बच्चों को भी एक व्यक्ति ने गोद लिया और 5 से 6 महीने बाद दोनों कुपोषित बच्चे ठीक हो गए। बच्चों की मॉं रोशन के चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़ पड़ी है।

गोद लेने वालों ने बच्चों का भी रखा ख्याल

पेशे से शिक्षक अमित कुमार शुक्ला ने सफीपुर की एक अति कुपोषित बच्ची सोनिका को गोद लिया। खुद के खर्चे से उसे पोषण किट देना शुरू किया। बच्ची का ख्याल रखा। नतीजतन बच्ची कुपोषण के चंगुल से बाहर आ गई। ऐसे लोगों को प्रोत्साहित भी किया गया।

डीएम महेंद्र बहादुर सिंह ने क्या कहा?

डीएम महेंद्र बहादुर सिंह कहते हैं कि आम लोगों से कुपोषित बच्चों को गोद लेने की अपील करने बाद 700 लोग सामने आए और अति कुपोषित बच्चों को गोद लिया। इस प्रयोग के नतीजे चौंकाने वाले थे। 6 महीने बाद ही इसका असर दिखना शुरु हो गया। जिले में करीबन 85 फीसदी बच्चे अति कुपोषित श्रेणी से बाहर आ गए हैं।