महाराष्ट्र.  जालना शहर की मिस्बाह ने जब नीट क्वालीफाई किया तो उनके घर के बाहर बधाई देने वालों का तांता लग गया। मां बाप को रिश्तेदार नातेदार दोस्त फोन करके बधाई देने लगे। मिस्बाह की यह उपलब्धि अंधेरे में रोशनी की एक किरण की तरह थी, मिस्बाह के मां-बाप के लिए गुरबत की फटी चादर के दरमियान सीना चौड़ा कर के रईसी से फख्र करने का दिन था जो उनकी बेटी ने उन्हें अता किया ।मिस्बाह ने माय नेशन हिंदी के साथ यहां तक पहुंचने की पीछे के संघर्ष को बताया...।

कौन हैं मिस्बाह
मिस्बाह के पिता अनवर खान जालना शहर के मुजाहिद चौक पर पंचर की दुकान पर मोटरसाइकिल पंचर बनाने का काम करते हैं। मिस्बाह की मां एक साधारण हाउसवाइफ हैं। मिस्बाह तीन भाई बहन है। बड़ी बहन पढ़ने में बहुत तेज थी लेकिन 2018 में मिस्बाह के पिता का एक्सीडेंट हो गया, जिसके बाद घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया। आमदनी का कोई ज़रिया न होने की वजह से बहन की फीस नहीं जमा हो पाई और उसकी पढ़ाई छूट गई। बता दें, भाई कॉमर्स में ग्रेजुएशन कर रहा है।


बायोलॉजी है मिस्बाह का फेवरेट सब्जेक्ट
मिस्बाह पढ़ाई में हमेशा से अच्छी थी। वह हमेशा फर्स्ट क्लास पास होती थी। जब घर के हालात खराब थे, उस वक्त वो दिन-रात पढ़ाई करती थी। यह सोचकर कि पढ़ लिखकर कभी डॉक्टर बन गई तो घर के हालात बेहतर कर दूंगी। मिस्बाह ने दसवीं में 92% अंक हासिल किए थे। 12वीं में 86% और नीट की परीक्षा में 720 में 633 अंक हासिल किये। बायोलॉजी मिस्बाह का फेवरेट सब्जेक्ट है। इसमें उनके हमेशा अच्छे नंबर आते थे इसलिए मिस्बाह ने नीट की तैयारी करने का मन बनाया।

अंकुश सर ने किया हेल्प
मिस्बाह ने जब नीट की तैयारी के बारे में पिता से बताया तो वो परेशान हो गए। पंचर की दुकान से नीट की कोचिंग कराने का पैसा कहां से आता। मिस्बाह कहती हैं- मैंने अब्बू को बहुत परेशान देखा, जिस दिन मैंने नीट की कोचिंग के लिए उनसे कहा उस दिन वह रात भर सो नहीं पाए। मैं इस बात को समझ रही थी। हमारे घर में दो वक्त का खाना अच्छे से मिल जाए, यह बहुत बड़ी बात थी। ऐसे में नीट की कोचिंग करना गरीब मां-बाप के लिए मुश्किल नहीं बहुत मुश्किल है। इन्हीं सब उलझन के दरमियान मुझे कहीं से नेट की फ्री कोचिंग के बारे में पता चला। दरअसल, जालना शहर में अंकुश सर गरीब बच्चों को मुफ्त की कोचिंग देते थे। ढाई साल तक मैंने जालना में अंकुश सर की क्लास में निशुल्क नीट की तैयारी की। वह गरीब बच्चों को मुफ्त की कोचिंग देते हैं। उन्होंने मेरा मार्गदर्शन किया। इसके बाद मैं यह एग्जाम क्वालीफाई कर पाई।

एक कमरे के मकान में रहती है मिस्बाह
मिस्बाह कहती हैं मेरे अब्बू महीने में 12 से 15 हज़ार रुपये कमा लेते हैं। पिछले 30 साल से वह पंचर बनाने का काम कर रहे हैं। उनकी उम्र 53 साल हो चुकी है। उनके काम में भाई भी हाथ बंटाता है लेकिन अब्बू नहीं चाहते हैं कि उसका ध्यान पढ़ाई से भटके। बड़ी बहन की पढ़ाई छूटने के बाद शादी कर दी गई।अब्बू खुद 9वीं क्लास पास हैं। हमारा एक कमरे का मकान है, वह भी अब्बू के दादा का है।

बनना चाहती हूं डॉक्टर
मिस्बाह कहती हैं- मैं एमबीबीएस करके डॉक्टर बनना चाहती हूं। डॉक्टर बनकर लोगों की मदद करना चाहती हूं। खासतौर से गरीबों की क्योंकि मैंने गरीबी बहुत नजदीक से देखी है। मेरे अब्बू दिन रात अपनी दुकान पर मेहनत करते थे ताकि हम भाई-बहन अच्छे से पढ़ सकें। खुद भूखे रहे हैं लेकिन हमें कभी भूखा नहीं रहने दिया। अपने सारे दुख दर्द अम्मी से साझा करते थे। हम तक दुख का साया भी ना पड़ने देते थे। आज अगर मैं यह इम्तिहान पास कर पाई हूं तो उसमें मेरे मां-बाप और अंकुश सर का बहुत बड़ा योगदान है। अगर यह लोग ना होते मेरी जिंदगी में तो मैं कुछ ना कर पाती। 

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