जानिए डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं, जैसे संविधान सभा के सदस्य बनने से लेकर उपराष्ट्रपति बनने तक की यात्रा, शिक्षक दिवस की स्थापना और भारत रत्न से सम्मानित होने की कहानी।
Teacher's Day 2024: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की महान प्रतिभा का सम्मान स्वतंत्रता के बाद हुआ, जब उन्हें संविधान सभा का सदस्य चुना गया। वे 1947 से 1949 तक इस महत्वपूर्ण सभा के सदस्य रहे। इस दौरान, वे कई विश्वविद्यालयों के चेयरमैन भी नियुक्त किए गए। अखिल भारतीय कांग्रेस और विशेष रूप से पंडित जवाहर लाल नेहरू चाहते थे कि डॉ. राधाकृष्णन के विद्वता और आर्टरी स्किल का उपयोग संविधान सभा के ऐतिहासिक सेशन के दौरान 14-15 अगस्त 1947 की रात को किया जाए।
डा. राधाकृष्णन को आधी रात मिला ये अनोखा टास्क
इसके लिए डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को यह निर्देश दिया गया कि वे अपना सम्बोधन रात्रि के ठीक 12 बजे समाप्त करें। क्योंकि उसके पश्चात ही पंं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में संवैधानिक संसद द्वारा शपथ ली जानी थी। डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने भाषण को ठीक रात 12 बजे समाप्त किया। उसके बाद भारत ने स्वतंत्रता की ओर कदम रखा।
रात में 10 बजे के बाद होने वाली बैठकों में भाग नहीं लेते थे डा. सर्वपल्ली
राजनयिक कार्यों में योगदान स्वतंत्रता के बाद डॉ. राधाकृष्णन को सोवियत संघ में भारत के राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया। उनकी इस नई भूमिका को लेकर पहले कई लोगों को संदेह था, लेकिन उन्होंने मॉस्को में अपनी सेवा के दौरान अपनी कूटनीतिक क्षमताओं का प्रमाण दिया। उनकी अनूठी कार्यशैली और नेतृत्व ने उन्हें सबसे सफल राजनयिकों में गिना जाने लगा। वे रात में 10 बजे के बाद होने वाली बैठकों में भाग नहीं लेते थे, फिर भी उनकी कार्यकुशलता प्रशंसा के योग्य थी।
उपराष्ट्रपति के रूप में डा. राधाकृष्णन की भूमिका
1952 में सोवियत संघ से लौटने के बाद डॉ. राधाकृष्णन भारत के उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए। पं. जवाहर लाल नेहरू ने एक बार फिर उन्हें इस महत्वपूर्ण पद के लिए चुना, जिससे लोग चकित रह गए। उपराष्ट्रपति के रूप में डॉ. राधाकृष्णन ने राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में भी अपनी जिम्मेदारियां निभाईं और सभी को अपने कुशल नेतृत्व से प्रभावित किया। उनकी दृढ़ता, सदाशयता और विनोदी स्वभाव की आज भी सराहना की जाती है। शिक्षक दिवस और भारत रत्न डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, भारत सरकार उत्कृष्ट शिक्षकों को पुरस्कृत करती है। 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो उनके महान शैक्षिक और दार्शनिक योगदान का प्रतीक है।
डा.राधाकृष्णन अपनी सैलरी का दो तिहाई हिस्सा कर देते थे दान
1952 में वे भारत के पहले उपराष्ट्रपति बने और 1962 में वे स्वतंत्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने। एक और बात जो हम उनके बारे में नहीं भूल सकते, वह यह है कि जब वे भारत के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने 10,000 रुपये के वेतन में से केवल 2500 रुपये स्वीकार किए और शेष राशि हर महीने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में दान कर देते थे।
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Last Updated Sep 5, 2024, 11:00 AM IST