दिल्ली. मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग आते गए, कारवां बनता गया.. मजरूह  सुल्तानपुरी का ये शेर राजेश कुमार शर्मा पर एक दम सटीक बैठता है।  राजेश ने गरीब बच्चो को पढाने की एक छोटी सी मुहीम शुरू की थी। दिल्ली में मेट्रो फ्लाईओवर के नीचे उन्होंने  झुग्गी झोपडी के बच्चो के लिए फ्री स्कूल खोला, जिसमे पहले सिर्फ दो तीन बच्चे आते थे और आज उनके पास कम से कम 300 बच्चे पढ़ने आते हैं। माय नेशन हिंदी से राजेश ने अपने विचार साझा किये 

कौन है राजेश कुमार 

उत्तर प्रदेश के हाथरस के राजेश कुमार शर्मा की उम्र 53 साल है। इंजीनियरिंग करना चाहते थे लेकिन घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण शर्मा इंजीनियरिंग नहीं कर पाए। उनके परिवार में उन्हें मिलाकर 9 लोग थे। वो  गांव में  7 किमी दूर साइकिल से स्कूल से जाते है। अक्सर देर होने के कारण विज्ञान का क्लास छूट जाता था। इसलिए  हाईस्कूल में साइंस  में कम नंबर आए और वे इंजीनियरिंग में एडमिशन नहीं ले पाए। लेकिन उन्होंने किसी तरह से पैसे इकट्ठे करके यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। वे 40 किमी दूर बस से या साइकिल से कॉलेज जाते थे। लेकिन एक साल बाद परिवारिक समस्या के चलते उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

 

दिल्ली आकर बेचा तरबूज़ 

1995 में राजेश  दिल्ली आ गए। यहां तरबूज़ बेचने लगे। कभी-कभी मजदूरी का काम भी कर लेते थे। इन सब से उन्हें थोड़े बहुत पैसे मिल जाते थे। राजेश को ना पढ़ पाने का दर्द हमेशा से था इसलिए उन्होंने तय किया उन बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी लेंगे जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। और साल 2006 में उन्होंने दिल्ली में यमुना बैंक डिपो के पास मेट्रो फ्लाईओवर के नीचे कक्षा एक से आठ तक के लिए फ्री स्कूल चलाना शुरु कर दिया जिसमें यमुना नदी के पास झुग्गी बस्तियों में  रहने वाले छात्र आते हैं।इस स्कूल  का नाम रखा गया  ' फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज ' । राजेश कहते हैं पहले इस फ्री स्कूल में सिर्फ दो बच्चे थे। एक पेड़ था जिसके नीचे बैठकर मैं इन दोनों बच्चों को पढ़ाता था।  माउथ टू माउथ पब्लिसिटी हुई और बच्चों की तादाद बढ़ने लगी आज छात्रों की संख्या 300 हो गई । राजेश के इस स्कूल के बारे में यूनेस्को ने भी शेयर किया है। 

दो शिफ्ट में चलता है स्कूल 

राजेश ने यह बताया कि दो शिफ्ट में स्कूल चलता है पहली शिफ्ट सुबह 9:30 बजे से 11:00 बजे तक और दूसरी शिफ्ट 2:00 से 5:00 बजे तक चलती है। सुबह की शिफ्ट में डेढ़ सौ लड़कियां और शाम की शिफ्ट में डेढ़ सौ लड़के पढ़ते हैं वही जब उन्होंने स्कूल की शुरूआत किया था तो वह अकेले थे लेकिन अब कई  टीचर और हैं जो अपनी खुशी से बच्चों को पढ़ाते हैं।कई महिलाऐं भी बच्चो को अपनी ख़ुशी  पढाने आती हैं , उनका कहना है की घर पर खाली रहती थी तो इस वक़्त को इन बच्चो को देने से इनका भविष्य बन जाएगा। 

 

खुद ही करते हैं स्कूल की सफाई 

राजेश के स्कूल में साफ सफाई वो खुद  स्कूल के अन्य बच्चे और टीचर भी करने लगे। स्कूल  को सुंदर बनाने के लिए मेट्रो की सफेद दीवार को  रंगीन बनाया गया है सुंदर सुंदर चित्र बनाए गए हैं, राजेश की लगन को देख कर मेट्रो ने यहां ब्लैकबोर्ड बना दिया । राजेश  कहते हैं पहले सब कुछ खुद के दम पर करता था, पर अब बहुत से लोग मदद कर देते हैं। जैसे कुछ लोगों ने बच्चों को स्कूल यूनिफार्म दिया, किसी ने कॉपी किताब की ज़िम्मेदारी ले ली।  स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर्स कॉन्ट्री कर के बच्चो को  चीज़ें मुहैया कराते हैं। आज  राजेश के स्कूल के बच्चे यूनिवर्सिटी कॉलेज में पढ़ाई  कर रहे हैं। लोगों की मदद से स्कूल  शौचालय भी खुल गया है। राजेश के स्कूल का एक बच्चा इंजीनियर बन चुका है। 

 

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