भोपाल। लंदन की लाखों की नौकरी छोड़कर भारत वापस लौटें और आदिवासियों की लाइफ संवारने में जुट गए। मिलिए भोपाल, मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के रहने वाले अमिताभ सोनी (Amitabh Soni) से। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए अमिताभ सोनी कहते हैं कि विदेश में काम करने के दौरान तमाम लोगों की जीवन दृष्टि को समझने का प्रयास किया। यह समझ में आया कि सारी भूमियां ईश्वर ने भूख के लिए बनाई हैं। भारत पुण्य भूमि है तो साल 2014 में भारत लौट आया। आदिवासी जनजातीय गांव केकड़िया (Kekadia Village) में बच्चों को एजूकेशन देने लगा।

आसान नहीं था लंदन की नौकरी छोड़ने का फैसला

अमिताभ के लिए लंदन की नौकरी छोड़ने का फैसला आसान नहीं था। 30 साल की उम्र में लंदन गए थे। उसी समय उन्होंने कुछ समय बाद भारत वापस आने की ठानी थी। साल भर बाद पत्नी भी लंदन पहुंच गई। पर समय को मानो पंख लग गए थे। देखते-देखते 5 साल बीत गए। अमिताभ ने सोचा कि अब वापस चलते हैं तो पत्नी ने कहा कि अभी तो काम जमा है। फिर धीरे-धीरे 7 साल बीत गए। 

 

भारत लौटें तो साइड इफेक्ट भी झेला-पत्नी से तलाक

इस दौरान अमिताभ सोनी के मन में भारत लौटने का विचार चलता रहा। एक बार साल 2009 में वापस आएं। फिर साल 2011 में वापस आएं, पर 6 महीने बाद ही यह सोचकर फिर लंदन लौट गए कि अब वापस भारत नहीं आएंगे। पर उनका देश से जुड़ाव इतना गहरा था कि वापस भारत नहीं लौटने का दृढ़ निश्चय भी उसके सामने हार गया। साल 2013 में उन्हें फिर अपने देश की याद सताने लगी और आखिरकार साल 2014 के मध्य में वह फिर भारत लौटें तो कभी वापस लंदन नहीं गए। इसका साइड इफेक्ट भी उन्हें झेलना पड़ा। पत्नी से तलाक हो गया। वह लंदन में ही रहती हैं।

छुट्टियों में विदेश घूमने के बजाए करते थे भारत की यात्रा

आमतौर पर विदेश में रहने वाले लोग हॉलीडे में यूरोप के देशों की यात्रा पर निकल जाते हैं। पर अमिताभ सोनी छुट्टियों पर विदेश में घूमने के बजाए भारत की यात्रा करते थे। वह कहते हैं कि साल 2014 में जब वापस भारत आया तो एक घबराहट थी कि दो बार भारत में रूकने का फैसला करके आया था, पर वापस जाना पड़ा। कहीं तीसरी बार फिर ऐसा न हो जाए। 

 

शुरु किया आदिवासियों के बच्चों को पढ़ाने का काम

अमिताभ के मन में आदिवासियों का जीवन स्तर सुधारने की ललक थी। उनके सामने बड़ा सवाल यह था कि काम कहां से शुरु करें तो पहले उन्होंने आदिवासी गांव ढूंढ़ना शुरु किया। कई लोगों से पूछा तो उन्हें भोपाल के केकड़िया गांव के बारे में पता चला। वहां जाकर आदिवासी बच्चों को पढ़ाने का काम शुरु किया। 

सोशल मीडिया के जरिए लोगों ने की मदद की पेशकश

उनकी हैबिट थी कि वह जो भी काम करते थे। उस बारे में सोशल मीडिया पर अपडेट करते थे तो सोशल मीडिया के माध्यम से उनके जानने वालों को काम के बारे में पता चला और लोग मदद की पेशकश करने लगें। बस, यहीं से उनकी टीम बननी शुरु हुई, जिसने समय के साथ Abhedya के रूप में एक संस्था का रूप अख्तियार कर लिया। मौजूदा समय में उनकी टीम में युवा लोग भी जुड़े हैं, जो आदिवासियों के लिए किए जा रहे काम को आगे बढ़ा रहे हैं। 

 

बच्चों को फीस की भी टेंशन नहीं, अब तक 100 की फीस हो चुकी है स्पांसर

केकड़िया गांव की आबादी करीबन 1200 है। पहले गांव में महज 3 लोग ही शिक्षित थे। पर अब गांव में शिक्षितों का आंकड़ा 500 से ज्यादा है। बच्चों की स्‍कूल-कॉलेज की आगे की पढ़ाई के लिए फीस की व्यवस्था भी अमिताभ ही करते हैं। इसके लिए बाकायदा सोशल मीडिया पर लोगों से मदद मांगी जाती है। लोग बच्चों की एक साल की 20-25 हजार रुपये की फीस स्पांसर भी करते हैं। अमिताभ बताते हैं कि अब तक पढ़ाई के लिए करीबन 100 बच्चों को स्पांसर किया गया है। लोग सपोर्ट कर रहे हैं। हम लोगों से बच्चों की फीस स्पांसर करने के लिए आग्रह करते हैं। अमिताभ इस काम के लिए खुद कोई पैसा नहीं लेते हैं। 

इंटरनेशलन बिजनेस में डिग्री लेकर नौकरी करने गए थे लंदन

वैसे तो अमिताभ सोनी का जन्म इंदौर में हुआ। उनके पिता आर्मी में कार्यरत थे और भोपाल में घर बनवाया। पर अमिताभ ज्यादातर इंदौर में ननिहाल में ही रहें। आर्मी आफिसर पिता का अक्सर ट्रांसफर होता रहा तो इसी वजह से अमिताभ की पढ़ाई भी कई शहरों में हुई। बचपन से पढ़ाई में प्रखर अमिताभ ने इंटरनेशनल बिजनेस की डिग्री ली और लंदन स्थित एक बड़ी कम्पनी में नौकरी करने चले गए। इस दरम्यान उन्होंने ब्रिटिश सरकार की संस्था सोशल वेलफेयर में भी वर्क किया। पर अमिताभ को हमेशा अपने वतन की माटी की याद आती थी।

 

सामुदायिक भवन में बनाई आईटी लैब, क्लासेज में आने लगे बच्चे

अमिताभ सोनी ने पहले आदिवासी जनजातीय गांव केकड़िया के स्कूल की मरम्मत कराने के साथ उसे तमाम सुविधाओं से लैस किया। निजी स्कूल की माफिक क्लासरूम बनवाएं। गांव के सामुदायिक भवन में एक आईटी लैब बनवाकर बच्चों को कम्प्यूटर की शिक्षा देना शुरु कर दिया। एक सोलर प्लांट भी लगाया ताकि बिजली की जरुरत पूरी हो सके। समय के साथ अमिताभ की मेहनत भी रंग लाने लगी। गांव के जो बच्चे पहले पढ़ाई से दूर भागते थे। उनका मन पढ़ाई में लगने लगा। क्लासेज में बच्चों की उपस्थिति दिखने लगी।

आदिवासी युवक मुकेश ने बढ़ाया मान

केकड़िया गांव के आदिवासी बच्चों में शामिल मुकेश तोमर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, भोपाल से ग्रेजुएट है। जूडिशियरी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और कानूनी मसलों में अभेद्य (Abhedya) की मदद कर रहे हैं, साथ ही संस्था के सचिव भी हैं। नई पीढ़ी के आदिवासी युवक मुकेश अपने समुदाय के युवाओं को राह दिखा रहे हैं। अमिताभ सोनी की मुलाकात मुकेश से तब हुई थी। जब वह जमीन के एक मामले में परेशान थे। अमिताभ न्यायिक परीक्षाओं की तैयारी में जुटे मुकेश को भी सपोर्ट कर रहे हैं। 

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