चंडीगढ़ के रहने वाले प्रिंस मेहरा साल 2011 में बच्चों के साथ फिरोजपुर गए थे। वहां डस्टबिन में इलेक्ट्रिक शॉक से मृत दो कबूतर पड़े देखें तो उनका दिल पसीज गया। मृत कबूतरों को पास ही गड्ढा खोद कर दफनाया। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहते हैं कि यदि कबूतर दो दिन कूड़ेदान में पड़े रहते तो बदबू आनी शुरू हो जाती। पर्यावरण को नुकसान होता,  साथ ही लोगों की सेहत पर भी असर पड़ता। 4 दिन बार घर वापस आया तो सोचा कि घायल और मृत पक्षियों के लिए कुछ करना चाहिए। बस वहीं से पक्षियों की मदद करने का बीड़ा उठा लिया। 

इश्तिहार दिया, साइकिल बनी एम्बुलेंस, अब कहे जाते हैं 'बर्ड मैन'

प्रिंस मेहरा कहते हैं कि इश्तिहार छपवाकर स्कूली बच्चों को बांटा, रिक्शे वालों से लेकर पान की दुकानों तक पर्चे दिए। इस सूचना के साथ कि यदि उन्‍हें कोई घायल या मृत पक्षी मिले तो दिए गए मोबाइल नंबर पर कॉल कर सूचना दें। अपनी साइकिल को ही एम्बुलेंस में बदल दिया। अब एक ई-बाइक भी बर्ड एम्बुलेंस के तौर पर काम करती है। उनसे प्रदूषण बिल्कुल नहीं होता। 12 साल से घायल पक्षियों के इलाज में लगे मेहरा को चंडीगढ़ में 'बर्ड मैन' भी कहा जाता है।

 

सुंदर लाल बहुगुणा से प्रेरित, 1990 से चलाते हैं साइकिल

दरअसल, प्रिंस मेहरा एक एनजीओ से जुड़े थे। जिसके 100 से ज्यादा स्कूलों में साइकिल क्लब थे। कैंप की शुरूआत के समय पर्यावरण-चिंतक और चिपको आंदोलन के नेता सुदंर लाल बहुगुणा को इनवाइट किया जाता था। बहुगुणा से प्रिंस मेहरा को पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने की प्रेरणा मिली और साल 1990 से रेगुलर साइकिल चलाना शुरू कर दिया। वह कहते हैं कि इससे पर्यावरण पर किसी भी तरह का बुरा असर नहीं पड़ता है।

1160 पक्षियों का इलाज, 1290 का अंतिम संस्कार

प्रिंस मेहरा चंडीगढ़ के एक वेटरनरी हॉस्पिटल में काम करते हैं। 8 घंटे की ड्यूटी के दौरान आने वाले कंप्लेन निपटाते हैं। ड्यूटी के बाद घायल या डेड बर्ड की कंप्लेन सीधे उनके पास आती है और वह मौके पर जाकर घायल बर्ड का इलाज करते हैं। जरूरत पड़ने पर अस्तपाल लाकर इलाज करते हैं और ठीक होने के बाद उन्हें आजाद कर देते हैं। अब तक 1160 घायल पक्षियों का इलाज कर उन्हें आजाद कर चुके हैं और 1290 पक्षियों का अंतिम संस्कार भी।

 

पक्षियों की मदद को छोड़ी बैंक की नौकरी

प्रिंस मेहरा कहते हैं कि साल 2016 से पहले वह ड्राइंग टीचर थे। साथ में पेंटिंग का काम भी करते थे। उस दौरान भी यदि बर्ड को लेकर कंप्लेन आती थी तो उनकी मदद के लिए निकल जाता था। बैंक में भी फोर्थ क्लास की नौकरी मिली थी। पर वह इसलिए छोड़ दी, क्योंकि बर्ड कंप्लेन निपटाने के लिए बाहर निकलने की अनुमति नहीं मिलती थी। वह कहते हैं कि जैसे हमारे रिलेटिव या परिवार में किसी की मौत हो जाती है तो मान्यताओं के अनुसार लोग हवन वगैरह कराते हैं। मैं भी मृत पक्षियों की आत्मा की शांति के लिए हर साल हवन कराता हॅूं। उसमें एनिमल हसबेंडरी डिपार्टमेंट के लोग, रिलेटिव और जान-पहचान वाले शामिल होते हैं।

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